Monday, April 16, 2018

स्थगित नैतिकता

कोई कहे कि ऐसा क्यों कहा तो कह देना, बच्चे पालने थे
ऐसा एक बौद्धिक ने मुझसे बहुत पहले कहा था
उसके बच्चे अच्छी तरह पले और उसने कुछ ऊंचे पदों की शान बढ़ाई
हालांकि हर लाइन में शीर्ष पद उसकी पहुंच से बाहर ही रहा
बात उसकी बहरहाल समझ में मेरी न तब आई थी न अब आ सकी है
जो कुछ भी मुझे कहना होता है, अपने ही लिए कहता हूं
और उसका ताप अपनी खुद की चमड़ी पर महसूस करता हूं
बच्चे पालने के नाम पर या पारिवारिक जातिगत धार्मिक
वैचारिक राजनीतिक जरूरतों के नाम पर किसी भी बात का
औचित्य बताने या उसे नीचे सरकाने का कोई किस्सा कभी बना ही नहीं
गलत लोगों, गलत चीजों को मैंने कभी सही न बताया हो, ऐसा नहीं है  
कई बार बताया है, लेकिन अक्सर नासमझी में
दोष मेरा ऐसे मामलों में इतना ही था कि किसी रौ में बह गया
सच को जानने के लिए दिमाग का जो खुलापन जरूरी है
कुछ देर के लिए उसको किसी और के पास गिरवी रख दिया
ऐसी गलतियों के लिए आज भी मेरा मन छटपटाता है
किसी मजबूरी में नहीं, किसी जरूरतवश नहीं
एक सचेत फैसले के तहत एक दिन तय किया
कि मैं गोबर फेंकूंगा, ठेला खींचूंगा, तकियों पर बेलबूटे काढ़ूंगा
लेकिन कोई भी हवाला देकर किसी व्यभिचारी का बिस्तर नहीं बनूंगा
यह एक मामूली जीवन का मामूली फैसला था
ऐसे फैसलों का कोई आभामंडल नहीं होता, और होना भी नहीं चाहिए
आप काम के लिए घर से निकलते हैं और काम करके घर आ जाते हैं
इस भोली उम्मीद में कि ऐसा करके सच बोलने का हक कमा रहे हैं
अपने सारे दोस्तों से भी यही कहता हूं कि एक-दूसरे पर नजर रखो
जिसे तुम विरोधी मानते हो, उसकी तरफ से हुई कोई भी गलती
अगर अपनी तरफ से होने पर तुम्हें सही लगे तो उसे बारीकी से देखो
तुम्हें अगर लगता है कि तुम कोई सच की लड़ाई लड़ रहे हो
तो चुनी हुई या स्थगित नैतिकता के सहारे इसे कभी मत लड़ो
क्या पता, जब तुम्हें इसका पता चले तब तक बहुत देर हो चुकी हो!

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एयर मार्शल अर्जन सिंह जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।