Tuesday, August 4, 2015

आता रहूंगा तुम्हारे पास

आ रहा हूं आ रहा हूं
आता रहूंगा तुम्हारे पास

लहरों की तरह तरंग में उड़ती
असंख्य पीली तितलियों पर
पेट के बल पसरा हुआ
नीचे फैली जन्नत निहारता

या कालिख पुती शक्ल में
काने गधे पर बिठाकर
जहन्नुम की हद तक
खदेड़ा जाता हुआ

सारे अतिरेकों और अतिवादों पर
सरपट सवारी करता 
तुम्हारे ही पास आऊंगा

और यह कोई बताने की बात नहीं
कि मेरी बांसुरी
सिर्फ तुम्हारे लिए बजती है

फूल जब मेरी आंखों के सामने होते हैं
उनका खिलना उनकी गमक
उनकी सारी की सारी खामोश तानें
तुम्हारे ही लिए होती हैं

इस दुनिया की गिचिर-पिचिर से
बाहर जाने के जो भी दरवाजे
नजर वालों के लिए खुलते हैं,
तुम्हारी मेहरबानी से
मुझ नाचीज की पहुंच भी
उन तक अपने आप बन जाती है

इन दरवाजों से होकर
मुझे और कहीं नहीं जाना
मेरी पहली और आखिरी मंजिल
तुम हो

और सुनो,
इस बियाबान से निकलने का
कोई जरिया मुझे नहीं मिला
तो भी मैं ज्यादा देर भटकूंगा नहीं

अपनी थकी हुई पीठ
किसी अंधियारे पेड़ से टिकाकर
चैन से आंखें मूंद लूंगा
और उंगली तक हिलाए बगैर
तुम तक पहुंच जाऊंगा

आ रहा हूं आता रहूंगा
इस तरह
और न जाने किस-किस तरह
तुम्हारे पास