Friday, April 13, 2012

बाज की अंतिम उड़ान

तितलियां उड़ रही थीं।

पूरी रात चली आंधी और असमय बारिश से ठंडी पड़ी जमीन पर
हल्की हवा में झूमती घासें अपनी धुन में मगन थीं।

उनसे सिर्फ दो फुट ऊपर पीली सफेद तितलियां
हवा के साथ ऊपर-नीचे होते भुओं से
खेलती हुई नाचती हुई उड़ रही थीं।

ऊपर हाई टेंशन तारों की सनसनाहट थी
लेकिन माहौल में कुछ सनसनी इसके अलावा भी थी।
पास के फुटपाथ पर एक बाज पड़ा था।

सबसे पहले कौओं को खबर लगी।
उन्होंने उसकी शक्ल पहचानी या शायद गंध से ही ताड़ गए।
बात की बात में पूरा इलाका जान गया कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

बाज को ऊपर जारी हलचलों का अंदाजा था
लेकिन उसके लिए यह कोई नई बात नहीं थी।
हलचलें हमेशा उसके साथ चलती थीं
सिर्फ उसका जमीन पर होना ही वहां एक नई बात थी।

थोड़ी देर में कुछ इंसान उधर से गुजरे
फुटपाथ पर लत्ते के ढेर सी पड़ी भूरी-सलेटी चीज पर उनका ध्यान गया।
ओह, यह तो चिड़िया है, शायद कोई चील
फिर वे उसकी चोंच पर अटक गए कि यह तो कुछ और ही है।

बाज ने उन्हें इतने करीब पाकर सिर उठाया।
अपनी खूंखार नजरों से उन्हें घूरकर देखा
और झुक गया यह सोचकर कि इससे ज्यादा अब उससे नहीं हो पाएगा।

पिछली रात का अंधड़ बहुत खतरनाक था
इंसानों ने बात की- यह बाज शायद उसी का मारा है।

एक ने कहा, यह बड़े शिकार मारने वाली ऊंचे पहाड़ों की चिड़िया है
गौरैया पकड़ने वाला कोई छोटा-मोटा बाज नहीं,
जो इस इलाके में आए दिन दिख जाते हैं।

दूसरे ने कहा, बड़ी चिड़ियों पर तो वैसे भी कजा मंडरा रही है
कहीं ऐसा तो नहीं कि यह अपनी नस्ल का अकेला जीव हो।
तीसरा बोला, यहां तो थोड़ी ही देर में कौए और कुत्ते इसे चीथ डालेंगे।
फिर वे वापस लौटे और बाज को उड़ाने की कोशिश करने लगे।

घायल बाज को लगा कि इतनी दुर्गत एक जनम के लिए काफी है।
हिम्मत करके उसने एक-दो डग भरे
फिर हुमक कर उड़ा
हवा के साथ भुओं और तितलियों को भी अपने पंख से पछोरता हुआ।

जमीन से सिर्फ दो फुट ऊपर अजीब लड़खड़ाहटों भरी
कोई दो सौ गज लंबी यह उसकी अंतिम उड़ान थी।

इतनी ही दूर खड़ी बेतरतीब झाड़ियां उसकी बाट जोह रही थीं।
अजनबी इलाके में हर ओर से घिरा अकेला पक्षी
किसी सनसनाते पत्थर की तरह झाड़ियों में गिरा
और अपनी कहानी के बेहतर अंत का इंतजार करने लगा।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
--
संविधान निर्माता बाबा सहिब भीमराव अम्बेदकर के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
आपका-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रवीण पाण्डेय said...

बाज को भी तेज हवाओं से जूझना पड़ता है..