Saturday, April 7, 2012

मुझे तुमसे अपनी खबर मिल रही है

कोई बदला नहीं चाहिए
कुछ कहने की जरूरत भी नहीं
दोस्त हूं तुम्हारा
रिश्तेदार नहीं कि कल को
मेरी बीबी तुम्हें ताना देने आ जाएगी।

सातवीं क्लास में एक जरूरी मदद के बाद
जगदीश ने ऐसा कहा
फिर मिला सत्ताइस साल बाद
अचानक मेरे ही गांव में
घंटी बजाकर छोटे-छोटे बच्चों को
दस-दस पैसे की मिठगोलियां बेचता हुआ।

साइकिल पर बकुची लादे
कंधे पर दूर तक चिरा कुर्ता टांगे
एक बूढ़े आदमी ने
हिली हुई आवाज में मेरा नाम लेकर पुकारा
फिर कहा कि मैं जगदीश हूं
तुम्हें शायद याद न हो
लेकिन सातवीं तक हम साथ पढ़ते थे।

दो मिनट की बेचारगी रही हमारे बीच
फिर धीरे-धीरे सुर पड़ा कि हम दोस्त थे
यह सुविधा हमारे बीच अब भी है कि
एक-दूसरे से जो कहना होगा, हमीं कहेंगे
हमारे नाम पर हमारा कोई तरफदार
अगले को तकलीफ पहुंचाने न जाएगा।

पिछले एक महीने में
दिल्ली की चार वारदातें ऐसी पढ़ चुका हूं
जिनमें दोस्त ने दोस्त की जान ली है
किसी उत्तेजना में नहीं, आक्रोश में नहीं
बिल्कुल ठंडे दिमाग से
किसी प्लॉट या कुछ पैसों के लिए।

सोचता हूं, क्या हुआ होगा
जब मरने से पहले दोस्त ने
दोस्त की आंखों में देखा होगा
उसकी अंतिम बेचारगी
तब वैसी तो न रही होगी
जैसी उस दिन की मुलाकात में
कुछ देर जगदीश की आंखों में थी।

3 comments:

Shalini Khanna said...

बहुत बढिया....

प्रवीण पाण्डेय said...

बेचारगी मित्रता की सीमाओं में बनी रहे, जगदीश जैसे व्यक्तित्व बचपन से अन्त तक एक से रहते हैं।

दीपिका रानी said...

अब रिश्ता कोई भी भरोसेमंद नहीं.. न खून के, न दोस्ती के.. मगर कुछ अपवाद अब भी दुनिया को एक हसीन जगह बनाए रखते हैं।