Monday, October 25, 2010

भौतिक समय और जैविक समय

हममें से हर किसी के पास एक ही शरीर है। एक बार हमने जन्म लिया है, एक ही बार मरेंगे। एक बचपन, एक जवानी, एक ही बुढ़ापा भुगतेंगे। लेकिन क्या हो अगर इनमें से कोई एक अवस्था बहुत लंबे समय तक स्थायी बना दी जाए? या किसी को एक ही अवस्था में एक से ज्यादा बार जीने का मौका मिल जाए? बात इतनी अटपटी है कि इसकी कल्पना करना भी काफी मुश्किल है। कोमा में गए मरीजों के नाखून और बाल सामान्य रफ्तार से ही बढ़ते हैं। ज्यादा समय तक इस हालत में रह जाने वालों में दाढ़ी-बाल पकने जैसा उम्र का असर भी दिखाई पड़ता है। लेकिन कुछ जेनेटिक बीमारियों में बायलॉजिकल टाइमलाइन में विचलन देखने को मिल जाते हैं। आप चाहें तो इस साल की चर्चित फिल्म पा को याद कर सकते हैं, जिसकी कहानी तेजी से बूढ़े होते जाने की बीमारी प्रोजेरिया के इर्दगिर्द गढ़ी गई है। हॉलिवुड में बूढ़े से जवान होते जाने की कल्पना करके एक फिल्म द क्यूरियस केस ऑफ बेंजामिन बटन बनी थी।

लेकिन सामान्य जीवन में ऐसे मामले बीमारियों और दुर्घटनाओं से ही जुड़े होते हैं। स्वस्थ हालत में जीवन की सिर्फ एक अवस्था को समय में रोके रखने का उपाय अब तक किया जा सका है। यह है भ्रूण अवस्था। यानी वह अवस्था, जब आपका शारीरिक ढांचा नहीं बना होता, लेकिन उसका सॉफ्टवेयर तैयार हो चुका होता है। जीवन की गाड़ी यार्ड से निकल कर जन्म के डिपार्टिंग स्टेशन की तरफ बढ़ रही होती है। लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही चेन पुलिंग करके उसे रोक दिया जाता है। पिछले पखवाड़े जोन्स इंस्टिट्यूट, वर्जीनिया (अमेरिका) से खबर आई कि वहां 42 साल की एक महिला ने एक ऐसे शिशु को जन्म दिया, जिसका जुड़वां भाई इसी साल 20 का होने जा रहा है। यह किसी अवांगार्द वैज्ञानिक प्रयोग का नतीजा नहीं है। इस उलटबांसी की वजह यह है कि गर्भधारण के लिए महिला ने जिस भ्रूण का उपयोग किया था, उसे इंस्टिट्यूट ने अपने यहां 19 साल सात महीने पहले से फ्रीज करके रख छोड़ा था।

तीस साल पहले ईजाद हुई टेस्ट ट्यूब बेबी टेक्नीक या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से पैदा हुए लोगों की संख्या पूरी दुनिया में इस समय 40 लाख के आसपास है। संतानोत्पत्ति की इस विधि में सफलता की गारंटी हर पांच में से अधिकतम एक की हुआ करती है। जाहिर है, टेस्ट ट्यूब टेक्नीक के जरिए बच्चा पाने के इच्छुक दंपतियों को एक ही बार में कई सारे भ्रूण बनने लायक जेनेटिक मटीरियल सप्लाई करना होता है। आम तौर पर हर दंपत्ति के लिए सबसे स्वस्थ अंडाणुओं (ओवम) से पांच या छह भ्रूण बनाए जाते हैं, और उनमें भी सबसे अच्छी तरह विकसित हो रहे किसी एक को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। बाकी फ्रीज करके रख लिए जाते हैं और दाता दंपत्ति की मर्जी से उनका इस्तेमाल किसी अन्य इच्छुक दंपत्ति को संतान लाभ कराने में किया जाता है।

बीस साल के अंतर वाले जुड़वां के जन्म से जुड़े मामले में जोन्स इंस्टिट्यूट के पास 1981 में संरक्षित चार भ्रूणों में से सिर्फ एक ही पिछले साल तक बिल्कुल स्वस्थ रह पाया था। रिपोर्ट में ऐसी कोई जानकारी मौजूद नहीं है, जिससे पता चले कि पिछले पखवाड़े पैदा हुए शिशु को अपने से बीस साल बड़े बिल्कुल अपने ही जैसे भाई से मिलने का मौका कभी मिलेगा या नहीं। लेकिन मान लीजिए, अब से पच्चीस साल बाद अगर दोनों मिले तो अधेड़ बड़े जुड़वां को अपने जवान भाई से मिलकर काफी ईर्ष्या होगी।

सवाल यह है कि जन्म का 20 साल लंबा स्थगन क्या इस बच्चे के शरीर या दिमाग पर किसी तरह का असर डालेगा ? उसके जीवन की घड़ी, जो फ्रीजर में जाकर इतने साल से टिक-टिक करना भूल गई थी, क्या इस गुजरे हुए समय को किसी रूप में दर्ज करेगी? फ्रीजिंग की व्यवस्था सही रहे तो भ्रूण को अनंत काल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सवाल यह भी है कि अभी भ्रूण रूप में आकर सैकड़ों साल बाद की पीढ़ी के साथ जन्मने वाले लोग क्या पूरी तरह उन्हीं जैसे होंगे, या मौजूदा वक्त की कोई पहचान भी उनके साथ जुड़ी होगी?

एक बात तो तय है कि भौतिक समय के विपरीत जैविक समय में भूत और भविष्य एक साथ रह सकते हैं। एक टेबल के एक तरफ दादा, पिता और बेटा, और दूसरी तरफ अलग-अलग पीढ़ियों में पैदा हुए दादा के तीन जुड़वां भाई एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं। टेबल की दोनों तरफ आमने-सामने बैठी अलग-अलग उम्र की तीनों जोड़ियों में किस-किस तरह के फर्क होंगे, यह जानने की बात है। समस्या की जटिलता को समझने के लिए एक भिन्न संदर्भ से सोचना शुरू करें। ह्यूमन क्लोनिंग को अभी दुनिया के किसी भी देश में कानूनी इजाजत नहीं मिली हुई है, लिहाजा मजबूरी में हमें किसी और जीव से शुरू करना होगा।

क्या आपको डॉली की याद है ? वह भेड़, जिसे उसकी मां के थन से ली गई कोशिकाओं से क्लोन करके बनाया गया था। 1996में स्कॉटलैंड के रोजेलिन इंस्टिट्यूट में जन्मा संसार का पहला स्तनधारी जीव, जो नर और मादा के संसर्ग के बगैर पैदा हुआ। बाद में डॉली को सामान्य प्रजनन से तीन बार में कुल छह बच्चे हुए लेकिन 2003 में मात्र सात साल की उम्र में, यानी किसी औसत भेड़ की कुल आयु के लगभग अधबीच में, उसकी मौत बुढ़ापे की दो बीमारियों फेफड़े में सूजन और गठिया से हुई। मौत से दो साल पहले ली गई तस्वीरों में भी वह किसी बूढ़ी भेड़ जैसी ही दिखती है, लेकिन उसे बनाने वाले इयान विल्मुट और उनकी टीम के लोग कभी यह मानने को तैयार नहीं हुए कि डॉली की मौत में बुढ़ापा कोई फैक्टर थी।

जैविक समय के स्केल पर हर जीव की एक शून्य आयु, जीरो एज दर्ज होती है, जहां से वह एककोशीय स्थिति से आगे अपना जीवन शुरू करता है। किसी बच्चे के पहले बर्थडे पर उसकी कुल उम्र एक साल, नौ महीने, कुछ दिन और कुछ घंटे-मिनट-सेकंड मानकर देखें तो इससे उसकी शून्य आयु का अंदाजा हो सकता है। कुछ वैज्ञानिकों की राय है कि क्लोनिंग में जीव की शून्य आयु ठीक से दर्ज नहीं हो पाती। वह अपनी मां और पिता की संतान नहीं, बल्कि उन्हीं में से किसी एक का एक्सटेंशन हुआ करता है, लिहाजा अपनी पिछली पीढ़ी की कुछ उम्र भी वह अपने साथ लिए आता है। ऐसा न होता तो शायद यह गुलाब की टहनी से एक नया गुलाब उगा लेने जैसा होता। फ्रीज करके रखे गए मानव भ्रूण पर भी उसके जन्म तक गुजरे सालों की कोई छाप रह जाती है या नहीं, इसका जवाब जानने के लिए हमें जोन्स इंस्टिट्यूट में पिछले पखवाड़े पैदा हुए बच्चे के बड़े होने का इंतजार करना होगा।

(नोटः मेरा यह लेख किसी अन्य शीर्षक से कहीं अन्यत्र प्रकाशित है लिहाजा शायद शीर्षक के साथ इसमें पर्याप्त न्याय किया गया न लगे। भौतिक समय और जैविक समय के बीच तुलना एक दिलचस्प विषय है, जिसपर कई लोगों ने काम किया है और मेरी भी करने की इच्छा है। कुछ ढंग की बातचीत अगर यहां शुरू हुई तो सिलसिला अभी आगे बढ़ जाएगा, अन्यथा कभी बाद में।)

3 comments:

स्वप्नदर्शी said...
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स्वप्नदर्शी said...
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स्वप्नदर्शी said...

This is interesting. Living cells have many mechanisms to count the biological age. For instance, each time a somatic cell divides, the end of chromosomes(telomeres) which consists of non-coding repeats become shorter, and after many repeated cycle of cell division, almost all the repeats are gone and cells fail to divide. the special enzyme telomerase (that has capacity to replicate telomeres) is expressed differentially in different cell types, typically expressed enough in germs cells. Over-expression of telomerase in somatic cells is often linked to cancers when cell division cycle is messed up.

Also huge networks of gene regulation operate at different developmental stages of a being, their is age dependent switch on/off of various genes.

Certainly there is a biological clock. We do not know if it completely stops in case of frozen embryos.