Wednesday, March 19, 2008

कल्पना का खोजी

90 साल की उम्र में आर्थर सी. क्लार्क का जाना मेरे लिए एक अतिरिक्त अफसोस का विषय इस मायने में है कि मैंने उन्हें उनकी मौत के साल में ही पढ़ना शुरू किया। साइंस फिक्शन में अपनी पुरानी रुचि के चलते उनका नाम तो मैं काफी पहले से सुनता आ रहा था लेकिन इससे आगे उनके बारे में जो कुछ जाना, नकारात्मक ही जाना। 1996 में पहली बार उनपर संपादकीय लिखने का मौका उनपर लगे बाल यौनाचार के आरोपों की पुष्टि के बाद मिला। यूरोप-अमेरिका के वैज्ञानिक परिवेश से दूर श्रीलंका में रह रहे एक बाल यौनाचारी साई-फाई लेखक के काम में भला कितनी दिलचस्पी ली जा सकती थी। वह भी खासकर तब, जब सिर्फ स्याह-सफेद में सोच सकने वाली एक विचारधारा का जादू सिर पर सवार हो!

अभी नवंबर-दिसंबर में किसी दिन क्रॉसवर्ड में यूं ही टहलते हुए 'रांदेवू विद रामा' उठाकर पढ़ने लगा तो तीन-चार पेज पढ़ते-पढ़ते खोपड़ी घूम गई। मैं तो यह माने बैठा था कि भारत में अस्सी के दशक से ही निकल रही राम-रथ यात्राओं वगैरह के असर में 'बालप्रेमी' बुढ़ऊ ने चोखी कमाई देखते हुए राम पर एक किताब ठोंक दी होगी। लेकिन राम तो यहां सिर्फ अंतरिक्ष की किसी अनजान जगह से आए और बिना धरती से कोई वास्ता रखे सूरज को रगड़ते हुए अपनी ही राह चले जाने वाले एक स्पेसशिप का नाम था- कल्पना सन् 2130 की है, जब अंतरिक्षीय पिंडों को दिए जाने वाले ग्रीक पौराणिक चरित्रों का कोटा खत्म हो चुका है और इस काम के लिए भारतीय मिथकशास्त्र से जुड़े नामों का उपयोग होने लगा है।

धरती से इतर जीवन की परिकल्पना पर यह मेरी अबतक पढ़ी सबसे अच्छी किताबों में से एक है। रामा करीब पचास किलोमीटर लंबा-चौड़ा एक बेलनाकार पिंड है, जिसके भीतर किसी तारे के करीब पहुंचते ही सक्रिय हो जाने वाली जटिल यांत्रिक प्रणाली और कुछ छोटे बायो-रोबोट भी मौजूद हैं, लेकिन जीवन का कोई चिह्न उसमें लाख कोशिशों के बावजूद नहीं खोजा जा सका। सिर्फ वहां मौजूद चिरंतन ठोस, लेकिन सूरज के करीब पहुंचते ही अचानक द्रव हो गए बेलनाकार समुद्र में न्यूक्लियोटाइड्स जैसी कुछ जीवन-पूर्व संरचनाएं ही मिल पाती हैं- और एक जड़ीभूत 'म्यूजियम', जिसमें एक विचित्र सभ्यता से जुड़े अजैविक उपादानों की होलोग्राफिक छवियां कैद हैं।

सबसे दिलचस्प हैं एक स्वयं-संपूर्ण बेलनाकार खोखली दुनिया में बिताए गए समय के ब्योरे। इस दुनिया के घूर्णन अक्ष पर शून्य गुरुत्व का अनुभव करते हुए आप अधर में लटके रह सकते हैं, जबकि इसकी भीतरी दीवार पर पहुंचते ही आप अपने वास्तविक भार में वापस आ जाते हैं। इस दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना एक अलग ही मुश्किल पेश करता है, क्योंकि जमीन से थोड़ा ऊपर जाते ही वहां गुरुत्वहीन आकाश शुरू हो जाता है!

जिस भी सभ्यता ने इस यान को बनाया है, उसमें 'तीन' को लेकर एक अद्भुत आग्रह मौजूद है- हर चीज तीन। होलोग्राम में जिस पोशाक की डिजाइन मौजूद है, उसमें तीन हाथों और तीन पैरों के लिए जगह बनी हुई है। जो बायो-रोबोट (बायोट) यान पर मिलते हैं, वे छोटी-छोटी तिपाइयों की तरह अपने तीन पैरों से चकरघिन्नी खाते हुए बड़ी तेज रफ्तार से दौड़ते हैं। सभ्यता के अवशेष के रूप में सिर्फ एक धात्विक फूल मिल पाता है, जो तोड़े जाने के थोड़ी ही देर बाद भुरभुरा होकर नष्ट हो जाता है।

इस किताब के नशे में काफी दौड़-भाग के बाद मैं इसका अगला खंड रामा-सेकंड (द्वितीय) ले आया, जिसे आर्थर सी. क्लार्क ने जेंट्री ली के साथ मिलकर लिखा है। ली हॉलीवुड के चर्चित स्क्रिप्ट राइटर हैं और किताब को फिल्मी बनाने के चक्कर में मुझे तो इसकी रेड़ पिटी हुई सी लग रही है। आधी पढ़ गया हूं और मजा बिल्कुल ही नहीं आया है। इस किताब की धारणा यह है कि साठ साल बाद, जब दुनिया मंदी और कई दूसरी आफतों से जैसे-तैसे उबर रही है, रामा जैसा एक और यान सौरमंडल में प्रविष्ट हुआ है।

इस बार दुनिया उसे शुक्र तक पहुंचते-पहुंचते घेर लेने की तैयारी में है, ताकि उसमें मौजूद सुरागों से उसकी निर्माता सभ्यता के बारे में कुछ तो जाना जा सके। अभी तक जितना पढ़ा है, उससे तो नहीं लगता कि 2192 में भी दुनिया अभी की अपनी मूरखताओं से जरा भी उबर पाई है, न ही इसका कोई इत्मीनान बन पा रहा है कि रामा सभ्यता के बारे में इसके खोजी रामा द्वितीय या उसके बाद की दो किताबों में ज्यादा कुछ जान पाएंगे। मेरा ख्याल है, जेंट्री ली का हॉलीवुड आर्थर सी. क्लार्क की कल्पनाशीलता के लिए भी कुछ ज्यादा ही भारी पड़ गया।

एच. जी. वेल्स और जूल वर्न जैसे अपने से पहले के साई-फाई लेखकों की तुलना में क्लार्क की खासियत यह थी कि वे अपने लेखन में वैज्ञानिक तर्कशीलता का दामन कतई नहीं छोड़ते थे। इसी लिए उनकी विधा में काम करने वाले फ्रेड हॉयल और कार्ल सागान जैसे खगोल विज्ञानी भी उन्हें किसी वैज्ञानिक जैसा ही सम्मान दिया करते थे।

दूरसंचार उपग्रह की परिकल्पना उन्होंने '2001- अ स्पेस ओडिसी' की मूलकथा 'द सेंटिनल' में ऐसे उपग्रहों के आने के पंद्रह-एक साल पहले ही पेश कर दी थी। उनकी एक और परिकल्पना- कृत्रिम उपग्रह से टंगी अंतरिक्ष को धरती से जोड़ने वाली एक सीढ़ी- भी कार्बन नैनोट्यूब्स पर चल रहे काम की रोशनी में साकार होने की कगार पर है। ऐसे कल्पना के धनी क्लार्क का जाना- भले ही 90 साल का होकर- उनके हर चाहने वाले के तकलीफदेह तो होगा ही।

5 comments:

Ghost Buster said...

सुंदर और जानकारीपूर्ण लेख. धन्यवाद. आर्थर सी. क्लार्क से हम अब तक कैसे वंचित रहे ये सोच रहे हैं.

आईजक एसीमोव पर आपके विचार पढ़ना भी दिलचस्प होगा. कभी लिखेंगे क्या?

रवीन्द्र प्रभात said...

रोचक है, बढिया है , महत्वपूर्ण जानकारी से लबरेज है.....!

CG said...

निश्चित ही क्लार्क Hard Science Fiction के एक महत्वपूर्ण रचियता हैं. लेकिन If you really wish to get dazzled by hard science, look for Larry Niven. यह मूलत: कहानीकार हैं, उपन्यासकार नहीं. इनके कथा-संग्रह, कैसे भी, कहीं से भी खोज के पढ़ें. इनके अलावा Robert A Heinlein और Philip K. Dick भी ज़रूर पढ़ें.

उन्मुक्त said...

मेरे पास कलार्क की लिखी सारी पुस्तकें हैं और मैंने सबको पढ़ा है। इसमें शक नहीं कि वे एक बेहतरीन लेखक थे। हां कुछ पुस्तकें बेहतरीन होती हैं कुछ उतनी अच्छी नहीं। उनकी पुस्तकों में अक्सर हिन्दू देवी देवताओं का नाम रहता था और उन्हें इसके बारे में जानकारी भी रहती थी।

अक्सर विवाद इस लिये नहीं किये जाते कि उनमें सत्यता है पर किसी दूसरे कारण - कलार्क के साथ विवाद के लिये यही बात थी।

जिस पुस्तक का आप जिक्र कर रहे हैं उसका नाम रांडवू विथ राम नाम इसलिये रखा गया था क्योंकि उपन्यास में इसका पता, सीता (SITA) नामक स्पेस प्रोब (Space probe) से चला था। इस पुस्तक के बाद की कहानी के रूप में, कलार्क ने तीन पुस्तकें निम्न नाम से लिखी हैं।
राम ॥
द गार्डेन ऑफ राम
राम रिवील्ड

मैं अपने उन्मुक्त चिट्ठे पर 'बाईबिल, खगोलशास्त्र, और विज्ञान कहानियां'नाम की श्रंखला लिख रहा हूं। आने वाले समय पर, इस श्रंखला में उनकी लिखी पुस्तकों की चर्चा भी करूंगा।

Arvind Mishra said...

आपने क्लार्क और उनकी कृति पर बहुत अछा लिखा है -एक और क्लार्क प्रेमी-प्रकारांतर से विज्ञान कथा प्रेमी को सलाम .क्लार्क पर बाल यौनाचार क्या एक विवादित मुद्दा नही है ?यह कैसे मना जा सकता है कि महज अपने इस मोह के लिए वे अपना वतन छोड़ सेरेंदीप चले आये -उनके आकर्षण का विषय कुछ और ही रहा होगा -समुद्र ?