धीरे चलो
इसलिए नहीं कि बाकी सभी तेज-तेज चल रहे हैं
और धीरे चलकर तुम सबसे अलग दिखोगे
इसलिए तो और भी नहीं कि
भागते-भागते थक गए हो और थोड़ा सुस्ता लेना चाहते हो
धीरे चलो
इसलिए कि धीरे चलकर ही काम की जगहों तक पहुंच पाओगे
कई चीजें, कई जगहें तेज चलने पर दिखतीं ही नहीं
बहुत सारी मंजिलें पार कर जाने के बाद
लगता है कि जहां पहुंचना था, वह कहीं पीछे छूट चुका है
धीरे चलो
कि अभी तो यह तेज चलने से ज्यादा मुश्किल है
जरा सा कदम रोकते ही लुढ़क जाने जैसा एहसास होता है
पैरों तले कुचल जाना, अंधेरे में खो जाना, गुमनामी में सो जाना
इन सबमें उससे बुरा क्या है, जहां तेज चलकर तुम पहुंचने वाले हो?
8 comments:
बेहतरीन सोच
great thoughts..
http://prathamprayaas.blogspot.in/-सफलता के मूल मन्त्र
बहुत खूब ... अलग तरह कि सोच से निकली रचना ...
मगर जो ठहरे हुए दौड़ रहे हैं उनका क्या. माने दौड़ते हुए पूछ रहे हैं.
बहुत सुन्दर..
बहुत सुंदर सोच
सही फ़रमाया,'चीता'(भेड़ का विलोम)चाल से चल कर भी वहीँ पहुँचाना है तो जल्दी क्या है? मंजिल मरीचिका है, सफर हक़ीक़त.
सही फ़रमाया, 'चीता' ( भेड़ का विलोम) चाल से चल कर भी वहीँ पहुँचाना है तो जल्दी क्या है? मंजिल मरीचिका है, सफर हक़ीक़त.
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