Friday, April 18, 2014

गुजरते वक्त को इतने चटख रंगों में और किसी ने नहीं देखा

अपनी पहली नौकरी के दौरान 1996 में मुझे पहली बार एक ऐसे लेखक को पढ़ने का मौका मिला, जिसे पढ़कर लगा कि क्या ऐसा भी लिखा जा सकता है। पतली सी किताब ‘क्रोनिकल ऑफ अ डेथ फोरटोल्ड’, लेखक गैब्रिएल गार्सिया मार्क्वेज (बाद में इस शब्द का उच्चारण मार्खेज पता चला)। इसके दो साल बाद ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड’, छह-सात साल बाद ‘स्टोरी ऑफ अ शिपरेक्ड सेलर’ और अब से कोई दो साल पहले ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’। कहानियां अलबत्ता बीच-बीच में बहुत सारी पढ़ने को मिलीं। इनमें एक भी चीज ऐसी नहीं थी, जिसपर दूसरी की छाया हो। जिसे पढ़ने पर लगा हो कि यह न पढ़ते तो भी किसी और के साथ इसका इतना साझा है कि बिना पढ़े काम चल जाता। गुजरते वक्त को इतने चटख रंगों में और किसी ने नहीं देखा। व्यास और वाल्मीकि ने नहीं, शेक्सपीयर और टॉल्स्टॉय ने भी नहीं। आज मार्खेज की मृत्यु की खबर मिली, लेकिन मुझे लगता है, यह लेखक कई हजार साल जिएगा।

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