पचीस पार करने से पहले ही
औरों की मां को अपनी मां समझने लगा
और गजब यह कि मुझसे पहले
वे ही मुझे अपना बेटा मानने लगीं।
औरों की मां को अपनी मां समझने लगा
और गजब यह कि मुझसे पहले
वे ही मुझे अपना बेटा मानने लगीं।
इलाहाबादी रेल मजदूरों का क्वार्टर
भोजपुरिया पल्लेदारों की झोपड़ी
मानसा के बटाईदारों के खुरदुरे डेरे,
इतने सारे घरों में इतनी सारी मांएं।
भोजपुरिया पल्लेदारों की झोपड़ी
मानसा के बटाईदारों के खुरदुरे डेरे,
इतने सारे घरों में इतनी सारी मांएं।
एक को तो मेरे कुवांरे मरने के अंदेशे पर
मुंह फेरकर अपनी आंखें पोंछते
मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था,
अकेली पड़कर मरी हुई ओ मेरी मां!
मुंह फेरकर अपनी आंखें पोंछते
मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था,
अकेली पड़कर मरी हुई ओ मेरी मां!
कैसे समझाऊं कि घिस-पिट कर
इतना जरा सा तुम्हारे पास लौटना
मेरे लिए कितना मुश्किल था,
कितने तो मेरे जैसे कभी लौटे ही नहीं।
इतना जरा सा तुम्हारे पास लौटना
मेरे लिए कितना मुश्किल था,
कितने तो मेरे जैसे कभी लौटे ही नहीं।
खैर, अब जान गए हैं हमारे लोग
कि हमारा वह कृत्य अभारतीय था।
कि अगर हम धर्म का पूरा ध्यान रखते
और जाति की यूं अनदेखी न करते
तो हमारा जनम अकारथ न जाता।
कि हमारा वह कृत्य अभारतीय था।
कि अगर हम धर्म का पूरा ध्यान रखते
और जाति की यूं अनदेखी न करते
तो हमारा जनम अकारथ न जाता।
कभी तो मुझे तुम तक लौटना था
लेकिन इस हद तक नाकामी में नहीं
कि खुली आंखें लिए अंधेरे में बैठी तुम
मेरी ढिबरी की लौ खोज रही थीं,
जब एक झिरी से मैंने तुम्हें जाते हुए देखा।
लेकिन इस हद तक नाकामी में नहीं
कि खुली आंखें लिए अंधेरे में बैठी तुम
मेरी ढिबरी की लौ खोज रही थीं,
जब एक झिरी से मैंने तुम्हें जाते हुए देखा।
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंग दान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
वाह। ब्लॉग अनुसरणकर्ता बटन उपलब्ध करायें।
बहुत गहरी सोच से उपजी रचना ...
Post a Comment