Friday, August 3, 2018

बाप

आगे की तरफ कुछ देर
पूरे जलाल पर कौंधता तारा
जो मद्धिम पड़े बगैर
अचानक ऐसे गायब होता है
जैसे कभी था ही नहीं
जब तक वह करीब होता है
चमक आंख को चुभती है
गर्दिशें उसकी दिखतीं नहीं
कि अपनी गर्दिशों से ही
कोई छूट कहां मिलती है
फिर उसके जाने के अर्से बाद
किसी चौकस चटख दोपहरी में
मार-तमाम अंधियारी रातें
हर ओर से जब तुम्हें घेरती हैं...
तब यह सोच कर तुम
सुकून महसूस कर सकते हो
कि यह पीछे आने वालों के लिए
कुछ देर क्षितिज का तारा बनकर
नीचे ढुलक जाने का वक्त है...
जैसे गए दिनों के आकाश में
कोई तुम्हारे लिए टंगा रहता था
और जिसके दफा हो जाने से
राहियों की राह नहीं रुक जाएगी

1 comment:

रश्मि प्रभा... said...

https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/08/blog-post_4.html