Wednesday, September 28, 2016

पिद्दी सी शहराती सुबह

कहीं कोई अलग हरकत नहीं
ज्यों के त्यों थे रात के सारे रहस्यमय रंग
हवा तनिक ठंडी जरूर हो गई थी
पर सरसराहटें उसकी पहले जैसी ही थीं
कि तभी न जाने कौन सी भनक पाकर
युकलिप्टस की ऊंचाइयों पर कौआ जग पड़ा
गजब कि उसकी कांव सुनने के पहले ही
दिहाड़ी पर खटने वाला अखबार का हॉकर जगा
सीधे अपनी चलती हुई साइकिल की सीट पर
फिर एक खाली प्लॉट में कटने से बचे बेर के पेड़ में
ठाकुरजी या सेत्ताराम गोहराता भुजंगा जगा
पास के प्लास्टिक पटे नाले में बनमुर्गी जगी,
जागते ही दौड़ी सूखी जलकुंभियों के जाल पर
फिर छोटे स्कूली बच्चों की माएं जगीं
गैस लाइटर की क्लिक पर एकदम से जाग पड़ीं
एक साथ उनकी न जाने कितनी रसोइयां
तब धीरे-धीरे करके चकित हुए से कबूतर जगे
और उनका प्रणय नृत्य शुरू होने के पहले ही
चायं-चायं की आवाज से पूरी दुनिया को जगाती
पार्क के पेड़ों से निकलीं हजारों-हजार अबाबीलें
कुछ यूं झपाटे से, जैसे रात दोबारा वापस आ रही हो
इस तरह जब लगा कि हर कोई जाग चुका है
तब पछताते हुए से जगे टीवी के डेस्क जर्नलिस्ट
जो देर रात डांट-डपट के चखने के साथ
सस्ती दारू का पौआ निपटाकर ही घर लौटे थे
बिस्तर में लेटे-लेटे टीवी ऑन किया तो स्क्रीन पर
दिख गए पाकिस्तान को लताड़ते हुए बॉस
और नीचे रेंगता हुआ गलत-सलत टिकर का अंबार
दिमाग में घंटी बजी कि आज का भी इंतजाम हो गया
उधर 7, जन कल्याण मार्ग में सत्ताशीर्ष के भी
बाहर निकलने का समय आ गया था
इस तनावपूर्ण दौर में हर दिन 21 घंटे काम करके
कुछ देर आंख मूंदने का हक उनका भी बनता था
पावर नैप के बाद पावर वाक की तैयारी थी
सो गुडमॉर्निंग के गुंजार के साथ 7 नंबर में
हर किसी ने दोहराई अभी-अभी सुबह होने की भंगिमा
इस तरह नीचे से ऊपर तक सारा देश जाग गया
तो सोने का जुगाड़ भिड़ाने में जुटे कुछ लोग
जैसे आधी रात से ही मुंह दाबकर उलट-पुलट होते बुजुर्ग
जैसे बिना किसी कौरे या शाबाशी की उम्मीद के
यूं ही रात भर भूंक-भूंक कर हलकान हुए कुत्ते
जैसे खर्चे-पानी की चिंता और पुरस्कारों की फिक्र से
परे जाकर नियति के हवाले हुए अकेलखोर कवि
जो मान चुके थे कि उनके मन के भीतर
बज रही भैरवी से ही संभव हो पाई है
हस्बेमामूल पिद्दी सी यह शहराती सुबह

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