एक खेल वह है जो लगभग बराबर की ताकत वाले
खुले मैदान में एक-दूसरे के साथ खेलते हैं
लेकिन गौर से देखो तो यह सिर्फ एक ख्वाहिश है-
अन्यायी दुनिया में न्याय के साथ जीने की ख्वाहिश
हकीकत के खेल कभी वैसे नहीं होते
जैसा हम उनके बारे में जानते-समझते हैं
काश, हर पल हमारे चौगिर्द चला करने वाले
इन खेलों को भी हम खुली आंखों देख पाते
चीनी कहते हैं- खेलना हो तो तीन बातें पहले तय करो
खेल के नियम, दाव का आकार और हटने का वक्त
ये तीनों बातें शायद महाभारत के जुए में भी तय रही हों
लेकिन खेल का नतीजा कैसा रहा, सभी जानते हैं
अच्छी तरह पकड़ में आ गए चूहे के साथ
बिल्ली कैसे-कैसे खेल दिखाती है, इसका अंदाजा
टीवी पर मिकी माउस या टॉम एंड जेरी देखकर
बड़े हुए लोग आसानी से नहीं लगा सकते
इससे भी बेरहम खेल चीजें हमारे साथ खेलती हैं,
और यह कोई फिलॉसफी वाली बात नहीं है
जरा भी कमजोर पड़ने का मतलब है
किसी को खुद से खेलने का मौका देना
और तुम हमेशा, हर जगह, हर मामले में
मजबूत ही तो नहीं बने रह सकते
फर्श पर पड़ी पेंसिल तक तुम्हें कमजोर पाकर
तुम्हारे साथ कितनी बेदर्दी से पेश आ सकती है,
यह एहसास एक भी दिन मेरा पीछा नहीं छोड़ता
बुरी तरह टूटने के बाद जैसे-तैसे जोड़े गए हाथ से
जितनी बार इसे उठाने की कोशिश करता हूं,
दांव देकर दुष्ट हर बार कहीं और चली जाती है
और तो और, कमजोर पलों में
इंसान का मन ही उसके साथ खेलने लगता है
निराशा की कोई वजह नहीं, फिर भी खोज लाता है
जैसे यही उसके होने की सबसे जरूरी शर्त हो
ऐसे-ऐसे लोग, जिनके बारे में सोचकर लगता था कि
आशा के गीत गाने के लिए ही वे इस धरती पर आए हैं,
अपने ही मन के हाथों बेमौत मारे गए
लिहाजा, खेलना है तो अपनी ताब अपनी सरकशी से खेलो
वजह चाहे कुछ भी हो, किसी की बेकसी से क्यों खेलो
और अगर कभी तुम्हारा मुकाबला किसी राक्षस से हो
जैसे किसी असाध्य रोग, अन्यायी व्यवस्था
या समझ न आने वाली अपनी ही किसी दुश्चिंता से
तो छल-छद्म समेत हर संभव हथियार लेकर उससे लड़ो
काफी समय तक बराबर की टक्कर देने के बाद
तुम उसे हरा सकते हो या उसकी पकड़ से दूर जा सकते हो
लेकिन जीत की घोषणा जब तक हो सके, टाले रखो
लड़ने वाले जानते हैं कि युद्ध के कुछ दौर बीतने के बाद
दुश्मन की पीठ का एक बाल दिख जाने पर भी
जीत के नारे मुंह से फव्वारों की तरह फूटते हैं
लेकिन तुम अगर असली लड़वैये हो तो
जीत की छांह में जीवन गुजारने के लद्धड़ सपने छोड़ो
और लंबी लड़ाई की पेचीदगियों का आनंद लो
बिल्कुल संभव है कि बीच में तुम्हें थोड़ी राहत देकर
राक्षस तुम्हारे साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहा हो
और ऐन मौके पर तुम्हारी खुशी ही उसकी खुराक बन जाए
ऐसे न जाने कितने निर्मम खेलों से भरा है हमारा जीवन
जहां बड़े से बड़ा खिलाड़ी भी किसी न किसी मोड़ पर
खुद को एक साबुत या टूटा हुआ खिलौना पाता है
इसलिए दर्शक होने की गुंजाइश सदा अपने पास रखो
जब भी मौका मिले, देशकाल की अभेद्य दीवार में
दांतों और नाखूनों से अपने लिए कोई छेद बनाओ
जहां से औरों के साथ-साथ अपने भी खेल दिखते रहें
और अगर किसी असावधान क्षण में
तुम्हारा मन ही तुमसे खेलने को झपटे
तो घूर कर उसे देखो और दपट कर कहो कि
यह खेल तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं
1 comment:
ऐसे-ऐसे लोग, जिनके बारे में सोचकर लगता था कि
आशा के गीत गाने के लिए ही वे इस धरती पर आए हैं
अपने ही मन के हाथों बेमौत मारे गए
bahut sundar abhivyakti!
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