ऊंची नीरंध्र अपारदर्शी दीवारों से घिरे ये रास्ते हैं
सीधे सुरक्षित चिकने सरल सपाट रास्ते
जो बार-बार एक ही जैसे चौराहों में खुलते हैं
उतने ही सुरक्षित उतने ही बंद चौराहों में
ये रास्ते कभी हिलते नहीं डगमगाते नहीं
दीमक इन्हें खाते नहीं चरचरा कर ये टूटते नहीं
आवाज तक कभी कोई इनसे आती नहीं
कि जैसे यों ही थे, रहेंगे यों ही सदा सर्वदा
ऊपर आकाश होता है और दृश्य अदृश्य तारे
जो धीरे धीरे बगैर किसी रास्ते के चलते हैं
रास्तों पर चलते लोग जब तब तारों को देखते हैं
जड़ाऊ बेलबूटों से ज्यादा अहमियत उन्हें नहीं देते
एक दिन एक तारा टूटा और रास्ते पर आ गिरा
कुछ लोगों ने उसे उठाया और देर तक समझाते रहे-
गनीमत समझो कि रास्ते पर आ गए
सितारे के लिए लेकिन मुश्किल ही रहा
इस समझाइश को समझना
आकाश...बाहर...वहां...खुला आकाश
बीच आकाश में ये पिंजड़े नुमा लकीरें कौन खींच गया
और लकीरें भी ऐसी कि हिल गईं कभी झटके से
तो सबकुछ लिए दिए मुरमुरे सी बिखर जाएंगी
बड़ी देर तक सितारा राह चलतों से
बाहर निकलने का रास्ता पूछता रहा
लोग हैरान होते रहे सुन सुन कर उसके सवाल
रास्तों की दुनिया में तो रास्ते ही होते हैं
रास्तों से बाहर भला हो भी क्या सकता है
No comments:
Post a Comment