रात का राही
अच्छा है. लिखते रहें
दिल में हुलस-हुलस उठतीय' तरंगतुम्हारे लिएसुन्दर पंक्तिया है...
बढ़िया है भाई.
मेरी कलमय’ टिप्पणीतुम्हारे लिए.....:)
बहुत खूब - अब सवाल ये है कि क्या निम्न लिखित पंक्तियाँ भी किसी १४ फरवरी की उत्पत्ति हैं कि उस समय जब सभ्यता के नए दरवाज़े की कुंडी दूर थी - "मौलसरी मौलसरी ओ दिलफरेब .." [:-)] - इंदु जी को नमस्कार कहियेगा - मनीष
मनीष जी, है तो यह किसी बसंत की ही, अब ठीक-ठीक 14 फरवरी की है या नहीं, कहना मुश्किल है। मेल का जवाब भी कभी-कभी दे दिया करिए भगवन।
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6 comments:
अच्छा है. लिखते रहें
दिल में हुलस-हुलस उठती
य' तरंग
तुम्हारे लिए
सुन्दर पंक्तिया है...
बढ़िया है भाई.
मेरी कलम
य’ टिप्पणी
तुम्हारे लिए.....
:)
बहुत खूब - अब सवाल ये है कि क्या निम्न लिखित पंक्तियाँ भी किसी १४ फरवरी की उत्पत्ति हैं कि उस समय जब सभ्यता के नए दरवाज़े की कुंडी दूर थी - "मौलसरी मौलसरी ओ दिलफरेब .." [:-)] - इंदु जी को नमस्कार कहियेगा - मनीष
मनीष जी, है तो यह किसी बसंत की ही, अब ठीक-ठीक 14 फरवरी की है या नहीं, कहना मुश्किल है। मेल का जवाब भी कभी-कभी दे दिया करिए भगवन।
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