Thursday, February 14, 2008

तुम्हारे लिए

बादलों तक विचरती
य' पतंग
तुम्हारे लिए

दिल में हुलस-हुलस उठती
य' तरंग
तुम्हारे लिए

मेरी देह
य' सरग नसैनी
तुम्हारे लिए

मेरी आत्मा
य' अगम बेचैनी
तुम्हारे लिए

6 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

अच्छा है. लिखते रहें

सुनीता शानू said...

दिल में हुलस-हुलस उठती
य' तरंग
तुम्हारे लिए
सुन्दर पंक्तिया है...

अमिताभ मीत said...

बढ़िया है भाई.

Udan Tashtari said...

मेरी कलम
य’ टिप्पणी
तुम्हारे लिए.....

:)

Unknown said...

बहुत खूब - अब सवाल ये है कि क्या निम्न लिखित पंक्तियाँ भी किसी १४ फरवरी की उत्पत्ति हैं कि उस समय जब सभ्यता के नए दरवाज़े की कुंडी दूर थी - "मौलसरी मौलसरी ओ दिलफरेब .." [:-)] - इंदु जी को नमस्कार कहियेगा - मनीष

चंद्रभूषण said...

मनीष जी, है तो यह किसी बसंत की ही, अब ठीक-ठीक 14 फरवरी की है या नहीं, कहना मुश्किल है। मेल का जवाब भी कभी-कभी दे दिया करिए भगवन।