Tuesday, September 18, 2007

एक सचमुच का प्रेमपत्र

बैकफायर कर गए हाल के एक बहुचर्चित स्टिंग ऑपरेशन में सप्लाई की जाने वाली लड़की का लीड रोल निभाने वाली एक संभावनाशील रिपोर्टर का कुछ समय पहले किसी को लिखा गया एक प्रेमपत्र प्राप्त हुआ है। इसके प्राप्त होने के पीछे क्या राजनीति हो सकती है, इसका पता लगाया जाना चाहिए था, जो अबतक मुझसे नहीं हो पाया है। इजाजत के बगैर किसी के निजी दस्तावेज को सार्वजनिक करना नैतिक के अलावा अन्य दृष्टियों से भी अनुचित है, हालांकि यह विवाद अभी तक हल नहीं हो सका है कि कोई पत्र उसे भेजने वाले की संपत्ति माना जाए या पाने वाले की।

यहां इसके प्रकाशन के लिए दोनों में से मात्र एक पक्ष की ही अनुमति प्राप्त है, लिहाजा मैं आश्वस्त नहीं हूं। मुझे बताया गया है कि इस पत्र का संबंध नायिका के शुरुआत या अंत वाले नहीं बल्कि किसी बीच के प्रेम संबंध से है। ऐसे सीरियल प्रेम संबंधों का बखान मैं अबतक न जाने कितने लड़कों के मुंह से सुन चुका हूं लिहाजा किसी लड़की के मामले में इसे उसकी बदकारी के सबूत की तरह लेने का कोई मतलब नहीं बनता।

बहरहाल, इसकी भाषा इतनी दिलचस्प है कि इसे अपने ब्लॉग पर छापने का दिल कर रहा है। पत्र की शुरुआत कुल छह छोटे-छोटे दिल के निशानों से हुई है, जिन्हें यहां बना पाना मेरे वश की बात नहीं है। कृपया अंतर्वस्तु भूलकर सिर्फ भाषा के लिए इसे पढ़ें-

पूरे ग्लानिबोध के साथ
आपका....


जमाने के देखे हैं रंग हजार नहीं कुछ सिवा प्यार के
आके तु लग जा गले मेरे यार नहीं कुछ सिवा प्यार के

प्यार वो एहसास है जिसे व्यक्त नहीं किया जाता बल्कि महशुश किया जाता है। अगर तुम मन की आंखों से मेरे प्यार को टटोलो तो तुम्हारी ये गिला कि तुम प्यार नहीं करती, दूर हो जाएगी। (...) मैं सचमुच तुम्हें प्यार करती हूं। अच्छाई और बुराई हर इंसान में होता है। पर सच्चा प्यार वो होता है जो अपनी प्रेमिका की बुराई से प्यार करे क्योंकि उसके अच्छाई से तो सभी प्यार करेंगे। फिर क्या अंतर रहेगी प्रेमी और चाहने वालों में। अगर तुम यह कहते हो कि तुम मेरी भावनाओं का कद्र नहीं करती तो मैं कहूंगी तुम मेरे प्यार को समझ ही नहीं पाए। हां मैं मानती हूं कि मेरे में कुछ ऐसी आदतें हैं जिसकी वजह से मैं खुद भी परेशान रहती हूं। चाहते हुए भी मैं अपने-आपको बदल नहीं पा रही हूं। क्या करूं? मैं ऐसे ही हूं। इसलिए तुम अच्छी तरह सोच लो। एक प्रेमिका के नखरें झेलना असान होता है लेकिन जब वही पत्नी बन जाती है तो उसके हर नखरें, झगड़े में तब्दील हो जाती है। यह कोई जरूरी नहीं कि हमारा प्यार शादी के मंडप तक पहुंचे तभी सार्थक होगी। अगर ऐसा होता तो दास्ताने लैला-मजनूं, हीर-रांझा का प्यार के इतिहास में सुनहरे अक्षरो से नहीं लिखा जाता। मैं तुम्हारे सिवा कहीं नहीं जाऊंगी ये मेरा वादा रहा तुमसे।

वादा रहा प्यार से प्यार का
अब ना होंगे जुदा

आई ऐम आलवे'ज विद यू....(अस्पष्ट) (अंतिम तीनों लाइनें अंग्रेजी में)

3 comments:

अनिल रघुराज said...

प्यार की सच्ची भावना है...मैं जैसी हूं/जैसा हूं बिना शर्त उसे स्वीकार करना ही प्यार होता है। प्यार शर्तों में नहीं बंधा होता। कम से कम लड़की की यही सोच रहती है। बाकी पुरुष तो अक्सर खिलंदड़ होते हैं।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

चंदू जी ! ईमानदारी से सच-सच बताइए. किसी गीता-रीता-मीता की क़सम खाए बग़ैर - कि आख़िर मामला क्या है?

Udan Tashtari said...

सही है खत हाथ लग गया आपके तो हमने भी पढ़ ही लिया. :)

वरना तो ऐसे खत पढ़े जमाना गुजरा.