Tuesday, May 1, 2007
छूट गया स्कूल
मेरे मोहल्ले के अकेले धोबी परिवार ने अपनी चारो बच्चियों कि पढ़ाई छुडा दी। इसका पता मुझे आज ही मई दिवस के दिन चला। बच्चियों कि माँ ने बताया कि ये हमारे जैसी ना हो इसके लिए इन्हें स्कूल भेज रहे थे लेकिन मैडम जी अब २००० रूपया मांगने लगी थीं और कपड़ा जूता मे भी हर महिने ४-५०० लग रह था। भैया, २० रुपया किलो कोयला आता है, दिन भर प्रेस करने के बाद ५०-६० रुपया बचता है। मोहल्ले की गाडियां धोने से कुछ कमाई हो जाती है नही तो ६ लोगों के परिवार का पेट भी नही भरता। ऐसे मे हर महीने पढ़ाई के लिए दो-ढाई हजार कहाँ से लायें । पूरे इलाक़े मे सरकारी स्कूल एक ही था, जो शायद बिल्डरों के घेरे मे आ गया। इसलिये स्कूल जाने की उम्र मे चार बच्चे सड़क पर आ गए हैं। काश, मजदूर दिवस देश के सभी संगठित-असंगठित मजदूरों की साझा तकलीफ का बयान बने और इसकी सद-चिद-वेदना उन सभी दिमागी जांगर खटाने वालों को भी करीब लाए जिनकी भावनात्मक साझेदारी अब औरों की तो बात ही छोड़ें, खुद के साथ भी मुश्किल से ही हो पाती है।
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1 comment:
दुखद है. आप पत्रकार हैं इस ख़बर पर करेंगे क्या? क्या यह ख़बर प्रसारित या प्रकाशित हुई? मुझे तो ब्लाग्स पर छपने वाली ख़बरों का असर दिखता नहीं.
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