बहुत दिनों से अटका काम शुरू कर रहा हूँ। बिना किसी तरतीब के थोडा-थोडा करके लिखूंगा, बाद मे बड़ा कर लूँगा।
आरा शहर मे पहली रात। जनमत के रिपोर्टर के रुप मे यहाँ कई बार आया था और १९८९ के लोकसभा चुनाव मे कुछ काम भी किया था लेकिन बतौर कार्यकर्त्ता यहाँ रहने की शुरुआत जून १९९१ मे हुई। पार्टी इस समय भूमिगत थी और जिला सेक्रेटरी दीना जी एक अचर्चित ठिकाने पर हमे अभी के हालात के बारे मे बता रहे थे। रात के कोई ९ बज रहे होंगे। आरा मे बिजली वाले घंटे २४ मे २-४ ही होते हैं। लग रहा था बहुत रात हो गई है। अचानक बाहर बहुत जोर का हल्ला मचा. हम लोग दुसरे या तीसरे तल्ले पर थे। दीना जी शोर सुनते ही बिल्ली की तरह चौकन्ने हो गए और खिड़की से या आंगन मे कूदकर निकल लेने का उपक्रम करने लगे। तभी नीचे नजर रखने के लिए लगाया गया एक लड़का दौड़ा हुआ आया और बोला कि नीचे कुछ बदमाश टाइप लोग किसी को धमका रहे हैं। जिन साथी के यहाँ हम रुके हुए थे वे नीचे गए और थोड़ी देर मे मामला रफा-दफा करके लौटे। पता चला कि नीचे कोई धन्दे वाली औरत अपनी बेटी के साथ रहती है। उसी के यहाँ कुछ बदमाश आये थे और औरत से लडकी को अपने साथ भेज देने के लिए झगड़ा कर रहे थे। औरत खुद उनके साथ जाने के लिए तैयार थी, आख़िर यही उसका पेशा था। लेकिन लडकी को वह इस काम से बाहर रखना चाहती थी। लोगों के जमा हो जाने के बाद मार-पीट पर उतारू गुंडे ठिठक गए लेकिन जाते -जाते धमकी देते गए कि रात मे १ बजे वे फिर आएंगे और लडकी को लेकर ही जायेंगे। दीना जी उसूलन जहाँ खाना खाते थे वहां ठहरते नहीं थे लिहाजा करीब ११ बजे हम वहां से उठे और थोड़ी दूर एक अन्य साथी के यहाँ जाकर सो गए। सुबह-सुबह टहलते हुए जब मैं और दीना जी रात वाली जगह पर पहुंचे तो वहां देर रात मे घटी घटनाओं की गंध मौजूद थी। ठीक १ बजे धमकी देने वाले वाले वहाँ आये, फायरिंग की, दरवाजा तोड़ा और लडकी को बाहर तक खींच लाए।नीचे किसी की हिम्मत नहीं पडी कि उनसे पंगा ले। तभी ऊपर से हमारे साथी गया जी ने फायर किया और चिल्लाये। रात मे दूर तक गूंजती हुई उनकी आवाज उनकी पुश्तैनी बस्ती तक
No comments:
Post a Comment