Thursday, November 14, 2019

मूषक अ-जातक

एक बन्द झोले में मैंने बहुत लंबी यात्रा की
घुच्ची आंखों वाले उस बेचैन दफ्तरी पुरुष में 
कुछ ऐसी पेचीदा उत्सुकताएं दिख गई थीं 
जिन्हें शांत करना मुझे जरूरी लग रहा था
वह सारनाथ में कई सारे भिक्षुओं से मिला
उनकी जीवनचर्या को लेकर लोगों से बातें कीं
विद्वानों से पूछा- बुद्ध के धर्म का यह हाल क्यों?
मैं उसके साथ-साथ चलता रहा और हंसता रहा
कुछ कहने से पहले उसका हाल भी जानना था
तो उसके झोले में बैठकर मैं दिल्ली चला आया
जिसकी आबोहवा पर कुछ मुझे नहीं कहना
क्योंकि यह तो सदा तुम्हारे चित्त से ही बनती है
घर और मन अब प्रायः लोगों के बन्द रहते हैं
तो संवाद या आतिथ्य की अपेक्षा कम रहती है
कोई घटना हो तो बात हो, नहीं तो चुप ही चुप
ऐसे में बात करनी है तो कोई घटना घटानी होगी
हर बार बात यहीं आकर फंसती है, हे भिक्षुओं
कि घटनाएं आततायियों के घटाए ही घटती हैं
और बातें भी अभी उन्हीं के कराए की जाती हैं
ऐसे में क्या करूं, कैसे करूं कि कुछ बात हो
अगहन की उजेली रात में काली ओस से घिरा
फूलों के एक गमले में खुल्ला बैठा मैं सोचता रहा
मेरे रोएं खड़े होते रहेऔर शरीर कुड़कुड़ाता रहा
घटना मेरे साथ घटित हो रही है, कहां जानता था
कुल 541 जातकों में अधिकतर बलिदान के हैं
यह तो इस तरह मरना था जिसमें कोई दान नहीं
निष्क्रिय मृत्यु से भला क्या किसी को समझाऊंगा
इसे तो मूषक जातक कहना भी उचित नहीं होगा

2 comments:

Narender Singh said...

अति उत्तम रचना....ये भी देखें >>कबीर के दोहे Kabir Ke Dohe are simple but meaningful.

Hindi World Info said...

बाल गंगाधर तिलक भारत के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वह एक भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे। जिन्होंने हजारों लोगों को इस नारे से प्रेरित किया - "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा"। अंग्रेजों के विरोध में बाल गंगाधर तिलक ने कई स्कूलों की स्थापना की और विद्रोही समाचार पत्र प्रकाशित किए। Bal Gangadhar Tilak के अनमोल विचार के कारण लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे और उन्हें अपने नेताओं में से एक मानते थे, इसलिए उन्हें लोकमान्य तिलक कहा जाता था।