1. इधर की
ऐसी दुनिया में रहता हूं
जहां भावनाएं नाक तक भरी हैं
आक्रोश, करुणा और कौतुक की
हर तरफ विपुल भरमार है
लेकिन कुछ भी कर लेने से
जहां कुछ होता नहीं है
जहां भावनाएं नाक तक भरी हैं
आक्रोश, करुणा और कौतुक की
हर तरफ विपुल भरमार है
लेकिन कुछ भी कर लेने से
जहां कुछ होता नहीं है
कलेजा फाड़ डालने वाली
किसी बर्बर मध्यकालिक छवि के
बगल में यहां खुशी से छलछलाता
कोई ऐसा पोर्ट्रेट दिख जाता है
कि भरमाया मन एक देशकाल में
दोनों को स्थिर ही नहीं कर पाता
किसी बर्बर मध्यकालिक छवि के
बगल में यहां खुशी से छलछलाता
कोई ऐसा पोर्ट्रेट दिख जाता है
कि भरमाया मन एक देशकाल में
दोनों को स्थिर ही नहीं कर पाता
और मन भी ले-देकर यहीं का बना है
कोई पार्सल छुड़ाकर तो मंगाया नहीं
तो सब कुछ यहां यूं फटा-बिखरा है
कि पिद्दी सी खुदयकीनी के लिए भी
हम किसी और का मुंह देखते हैं
कोई पार्सल छुड़ाकर तो मंगाया नहीं
तो सब कुछ यहां यूं फटा-बिखरा है
कि पिद्दी सी खुदयकीनी के लिए भी
हम किसी और का मुंह देखते हैं
कोई पूछे, उसके पहले ही नाच-गाकर
सारे अपना अकीदा बयान करते हैं-
हम असल वेदपाठी हम पक्के परहेजगार
हम मार्क्स के मौसा हम दलित दर्द निहार
सारे अपना अकीदा बयान करते हैं-
हम असल वेदपाठी हम पक्के परहेजगार
हम मार्क्स के मौसा हम दलित दर्द निहार
इतना सारा आक्रोश, इतनी अर्जियां हमारी
आखिर किसके लिए हैं, कहां जाती हैं?
कौन जनता, कौन सरकार, कौन सा ईश्वर
इन्हें लेता है और खारिज कर देता है?
क्या यह ऐसी दुनिया है, सारे भाव जहां
सिर्फ अपने भीतर रखने के लिए हैं?
आखिर किसके लिए हैं, कहां जाती हैं?
कौन जनता, कौन सरकार, कौन सा ईश्वर
इन्हें लेता है और खारिज कर देता है?
क्या यह ऐसी दुनिया है, सारे भाव जहां
सिर्फ अपने भीतर रखने के लिए हैं?
2. और उधर की
गर्मियों में चांद भला कब डूबता है?
पसीने से भीगी रात घिस जाती है
अनदेखी से उदास तारे लुढ़क जाते हैं
आकाश भी हारकर रंग बदल लेता है
बस चांद ज्यों का त्यों पड़ा रह जाता है
पसीने से भीगी रात घिस जाती है
अनदेखी से उदास तारे लुढ़क जाते हैं
आकाश भी हारकर रंग बदल लेता है
बस चांद ज्यों का त्यों पड़ा रह जाता है
गुर्राते तेंदुए जैसा छलांगें मारता सूरज
अचानक ऊंघते पेड़ों के पार चला आता है
फिर भी बीच आकाश में ठहरा दिखता है
रूई के फाहे सा यह कोमल सफेद जीव
जिसकी धमनियों से गहरा नील झलकता है
अचानक ऊंघते पेड़ों के पार चला आता है
फिर भी बीच आकाश में ठहरा दिखता है
रूई के फाहे सा यह कोमल सफेद जीव
जिसकी धमनियों से गहरा नील झलकता है
आसमान में कहीं कोई रुकावट नहीं है
इधर से उधर तक एक फुट्टी बादल भी नहीं
मैं सोचता हूं, इसी वक्त अगर ऊपर पहुंच सकूं
तो चांद की झिर्रियों से उधर की दुनिया की
एक भरपूर झलक देख पाऊंगा
इधर से उधर तक एक फुट्टी बादल भी नहीं
मैं सोचता हूं, इसी वक्त अगर ऊपर पहुंच सकूं
तो चांद की झिर्रियों से उधर की दुनिया की
एक भरपूर झलक देख पाऊंगा
मेरे लिए वह जगह बिल्कुल अनजान नहीं
जो सपने सुबह याद नहीं रह जाते
उनका वक्त मैं वहीं गुजार कर आता हूं
काश अभी कुछ दिख जाय तो मालूम रहे कि
किसी दिन बाकायदा ठहरने के लिए जाऊं
तो क्या-क्या इंतजाम और करने होंगे
जो सपने सुबह याद नहीं रह जाते
उनका वक्त मैं वहीं गुजार कर आता हूं
काश अभी कुछ दिख जाय तो मालूम रहे कि
किसी दिन बाकायदा ठहरने के लिए जाऊं
तो क्या-क्या इंतजाम और करने होंगे
No comments:
Post a Comment