Monday, September 24, 2018

बहन ने कहा

पानी खींचने की प्रतियोगिता चल रही थी
कोई विजेता खड़ा था, जिसका नाम भूल गया
फिर अगले साल एक और चैंपियन गोखड़ करके
लेकिन साफ-साफ दिखा दोनों बार कि पानी
उनके आगे डेढ़ेक बाल्टी से ज्यादा नहीं धरा था
बस इतने से पानी के लिए इतना सारा हंगामा?
पूछा तो पता चला कि चांद से निकाला गया था
पूरा साल लगाकर जो जितना निकाल पाया
उसको मिला उतना ही बड़ा पुरस्कार
एक-एक ग्राम की नापी है, घपला कोई नहीं
तीसरे साल की चैंपियनशिप मेरी बहन जीती
जिसे मेडल दिए जाते मैं नहीं देख पाया
घर लौटा तो पाया कि पर्दे में नहा रही है
भीतर से बोली, बाबू कपड़े तो उधर ही रह गए
उधर यानी चांद पर, लपक के लेते आना जरा
यह सब हो गया सुबह बमुश्किल पांच मिनट में
आंखें मलते मन ही मन बोला मैं घांव-मांव
चांद पर जाऊंगा रे बहन, कपड़े भी ले आऊंगा
लेकिन जिन चांद-तारों में गई तूं पैंतीस साल पहले
तुझे वहां से भला कैसे लेकर आऊंगा?

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/09/blog-post_24.html

Anita said...

वाह ! सपनों की दुनिया...