बैल बेचने जा रहे दढ़ियल व्यापारी को
हाट से जरा पहले नामनिहाद जंगल के पास
पकड़ कर दम भर मारा, फिर बैल का लंबा पगहा
आदमी के गले में डालकर ऐसी गांठ मारी
जो किसी भी जिंदा चीज के गले में नहीं मारी जाती
वह पगहा एक पेड़ की नीची शाख से डका कर
150 सीसी की एक रेसिंग बाइक के फ्रेम में बांधा गया
फिर दो किक, एक हुंकारा और फुल थ्रोटल विद फुल वेट
घूं-घूं घुर्र-घुर्र की विकट आवाजों के साथ
बमुश्किल डेढ़ मिनट और बारह फुट लम्बी चली
जिंदगी और मौत की वह विचित्र रस्साकशी
और जब इंजन बन्द हुआ तब रस्सी के एक ओर थी
बित्ता भर खिंची जुबान और दूसरी तरफ
न जाने किन-किन देवी-देवताओं के जैकारे,
थाना-कचहरी पुलिस-पोस्टमार्टम की रस्में-कसमें
और कुछ महीने बाद चॉकलेट केक पर चेरी जैसा
ऑक्सफ़ोर्ड का पढ़ा हुआ एक केंद्रीय मंत्री
जिसके हाथों में थमी गेंदे की मह-मह महकती मालाएं
कैमरों के सामने एक-एक कर पड़ीं उन्हीं की गर्दनों में
जिनके अथक प्रयासों से कुछ महीने पहले
मुंह दाबकर थूरे हुए एक इंसान की गर्दन
बमुश्किल आध इंच लंबी हो पाई थी
गर्दन नपने का मुहावरा मैंने स्कूल में पढ़ा था
क्या पता था कि कभी कविता जैसे नफीस काम के लिए
मुझे भी एक निर्दोष आदमी की गर्दन नापनी होगी
हो सके तो हमें माफ कर देना मानस पिता भवभूति,
मृत्यु के इस महा-महोत्सव में बख्श ही देना
कि मुझे पक्का यकीन है जो यह छोटा सा जीवन
और भी कितने हंसोड़ मुहावरों को नष्ट करते बीतेगा
हाट से जरा पहले नामनिहाद जंगल के पास
पकड़ कर दम भर मारा, फिर बैल का लंबा पगहा
आदमी के गले में डालकर ऐसी गांठ मारी
जो किसी भी जिंदा चीज के गले में नहीं मारी जाती
वह पगहा एक पेड़ की नीची शाख से डका कर
150 सीसी की एक रेसिंग बाइक के फ्रेम में बांधा गया
फिर दो किक, एक हुंकारा और फुल थ्रोटल विद फुल वेट
घूं-घूं घुर्र-घुर्र की विकट आवाजों के साथ
बमुश्किल डेढ़ मिनट और बारह फुट लम्बी चली
जिंदगी और मौत की वह विचित्र रस्साकशी
और जब इंजन बन्द हुआ तब रस्सी के एक ओर थी
बित्ता भर खिंची जुबान और दूसरी तरफ
न जाने किन-किन देवी-देवताओं के जैकारे,
थाना-कचहरी पुलिस-पोस्टमार्टम की रस्में-कसमें
और कुछ महीने बाद चॉकलेट केक पर चेरी जैसा
ऑक्सफ़ोर्ड का पढ़ा हुआ एक केंद्रीय मंत्री
जिसके हाथों में थमी गेंदे की मह-मह महकती मालाएं
कैमरों के सामने एक-एक कर पड़ीं उन्हीं की गर्दनों में
जिनके अथक प्रयासों से कुछ महीने पहले
मुंह दाबकर थूरे हुए एक इंसान की गर्दन
बमुश्किल आध इंच लंबी हो पाई थी
गर्दन नपने का मुहावरा मैंने स्कूल में पढ़ा था
क्या पता था कि कभी कविता जैसे नफीस काम के लिए
मुझे भी एक निर्दोष आदमी की गर्दन नापनी होगी
हो सके तो हमें माफ कर देना मानस पिता भवभूति,
मृत्यु के इस महा-महोत्सव में बख्श ही देना
कि मुझे पक्का यकीन है जो यह छोटा सा जीवन
और भी कितने हंसोड़ मुहावरों को नष्ट करते बीतेगा
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