Monday, April 30, 2018

स्वप्न मुक्तक

मालिक बनकर हुकुम चलाना
यूं ही बिना बात चिल्लाना
सबको घूम-घूम गरियाना
किसका स्वप्न नहीं होता है?
पढ़ना-लिखना बहुत कठिन है
गुरुजन भाव नहीं देते हैं
अक्सर सिर दुखने लगता है
बातें भी सुननी पड़ती हैं
इस झंझट में फंसे बिना ही
ऊंचे बैठ ग्यान गुर्राना
वेद-शास्त्र की धौंस दिखाकर
लपक-झपक सबको जुतियाना
किसका स्वप्न नहीं होता है?

हिंदी उर्दू तमिल बांग्ला
असमी उड़िया और मराठी
सबकी अपनी झंकृतियाँ हैं
जिनमें अपना मन बसता है
लेकिन अगले थर्राते हों
कुर्सी छोड़ उछल जाते हों
यस्सर-यस्सर बर्राते हों
इनमें वैसी बात कहां है?
अपने बच्चे इंग्लिश बोलें
धरती को जूतों पर तोलें
नौकर आगे-पीछे डोलें
झुक-झुक कर दरवाजे खोलें
जाने भी दो रहने भी दो
हम भी सुर में मिसरी घोलें
देसी अनुभावों में लेकर
वैश्विक भावों की विनम्रता
लंडन से सिडनी तक जाएं
डरबन से दुबई तक आएं
वाशिंग्टन से वैंकूवर तक
हर गोरे का माथा खाएं
दुनिया के जोकर कहलाएं
किसका स्वप्न नहीं होता है?

जीने का सामान चाहिए
भोजन वस्त्र मकान चाहिए
इज्जत से हम-आप रह सकें
ऐसा नया विधान चाहिए
लेकिन कोई ऐन सामने
हाथ जोड़ गिड़गिड़ा रहा हो
मारें उसको या कि छोड़ दें
यह दुविधा भी आकर्षक है
इस दुविधा से रोज गुजरना
मानव हूं मैं या कि देवता
ऐसा प्रश्न हृदय में धरना
माफ़ी की महिमा अपार है
इस महिमा में जीना-मरना
फ्रायड जी के ग्रंथ बांचकर
अपने मन के भेद खोलना
कोई उंगली करे बीच में
कहना- 'की मैं झूठ बोलणा?'
किसका स्वप्न नहीं होता है?


1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दादा साहब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।