Tuesday, August 25, 2015

मां के किस्से

81वें साल में चल रही मेरी मां स्मृति और फैंटेसी के संधिक्षेत्र में जीने लगी हैं। उनकी बुद्धि हमेशा से बहुत तेज और याददाश्त कमाल की रही है, लेकिन इधर कुछ ऐसा हो रहा है कि उनकी बातों को बहुत ज्यादा क्रॉस करने की जरूरत मैं महसूस नहीं करता। उनके पास कहानियों का भी भरपूर भंडार है, लेकिन मेरी दिलचस्पी उनसे जीवन की असली कहानियां सुनने में ज्यादा है।

जब भी मौका मिलेगा, इस तरह के किस्से यहां दर्ज करने की कोशिश करूंगा। अलबत्ता उनके सुनाए किस्से मेरी भाषा में होंगे। यानी वे अपने किसी देवर का प्रसंग सुना रही हैं, लेकिन मेरे तो वे चाचा लगते हैं, ऐसे में कहानी सुनाते हुए मैं उन्हें चाचा ही कहूंगा। आज सुबह नाश्ते के वक्त ऐसे तीन प्रसंग निकले।

1. मां जैसी बीवी
दूधनाथ चाचा की शादी महज सवा आठ साल की उम्र में हो गई थी। बचपन में ही उनके मां-बाप दोनों गुजर गए थे। उनकी चाची यानी हमारी शिवराती अइया ने कुछ साल जैसे-तैसे उन्हें पाला। लेकिन वे खुद बालपन की विधवा थीं। ज्यादा पाल-पोस उनसे हो नहीं पाता था। गांव के लोगों ने कहा, किसी तरह इस बच्चे का भी घर बस जाता तो अच्छा था।

परंपरा के मुताबिक नौ साल से कम उम्र में शादी करना ठीक नहीं था। लिहाजा गर्भ के समय को जोड़कर जैसे ही नौ साल की सीमा पार हुई, उन्हें दूल्हा बनाकर मंडप में बिठा दिया गया।

जिनसे उनकी शादी हुई, प्रभावती देवी- मां के शब्दों में परभौता और हमारे लिए सिर्फ चाची- शादी के वक्त करीब बारह साल की थीं। शादी तय करने वालों का मानना था कि लड़की सयानी होगी तो जल्दी घर संभाल लेगी। ऐसा हुआ भी। बहुत जल्दी शिवराती अइया ने उन दोनों का हिस्सा अलग कर दिया। घर में भीतर का हिस्सा पति-पत्नी को मिल गया और खुद शिवराती अइया बाहरी अलंग में रहने लगीं, जिसमें रसोई के धुएं से बुरी तरह काला पड़ा ओसारा भी शामिल था।

आगे का किस्सा हम लोग भला कैसे जान सकते थे, लेकिन मां ने आज बताया कि परभौता चाची टुकड़ों-टुकड़ों में अपनी शादी के बारे में हंसते हुए उन्हें क्या-क्या बता चुकी हैं।

आठ साल की उमर कुछ भी नहीं होती। शादी के वक्त दूधनाथ चाचा वाकई बहुत छोटे थे। कई बार रात में उन्हें भूख लग जाती थी तो उठ कर रोने लगते थे। चाची ने इसका उपाय यह खोजा कि रोटी में गुड़ लगाकर रख लेती थीं और जब वे रोने लगते थे तो लेटे-लेटे ही उन्हें खिलाकर सुला देती थीं।

जब कपिलदेव भैया पैदा हुए तो चाचा को पंद्रहवां लगा था और चाची 18 साल की हो रही थीं। बाद में उन्हें एक बेटी और तीन बेटे और हुए, जो सभी फिलहाल बाल-बच्चों वाले हट्टे-कट्टे शानदार लोग हैं। लेकिन दूधनाथ चाचा जिंदगी भर दुबले और पेट की तरफ थोड़ा झुके हुए से ही रहे।

करीब बीस साल पहले परभौता चाची की कैंसर से मौत हुई और इसके बमुश्किल दो साल बाद दूधनाथ चाचा भी चल  बसे। दोनों को जिंदगी में कभी लड़ाई करते तो क्या, एक-दूसरे के साथ जोर से बात करते भी नहीं सुना गया। पता नहीं क्यों, चाची की मौत के साथ ही लगने लगा था कि चाचा बचेंगे नहीं। उनकी तकलीफ इतनी गहरी, इतनी जाहिर थी कि उस बारे में बात करने की कभी किसी को हिम्मत भी नहीं होती थी।

मां ने आज चाची की मौत पर दूधनाथ चाचा के विलाप के बारे में बताया- ‘मोरी माई क सधिया पूर कइलू हो रनिया’ (रानी, अपनी मां के साथ रहने की जो मेरी साध (अधूरी इच्छा) थी, उसे तुमने पूरा कर दिया)।


2.
बिस्कुट या साबुन
गुड़ लगी रोटी के जिक्र से मां को ध्यान आया कि पहले के लोगों के लिए बिस्कुट कितनी अजूबा चीज हुआ करती थी। उसके मायके, यानी मेरे नाना के गांव के मूल निवासी एक वकील साहब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आजमगढ़ शहर में रहा करते थे। एक बार वे अपनी बेटी को लिवाकर गांव आए और सुबह-सुबह नाश्ते के तौर पर उसे एक बिस्कुट पकड़ा दिया। लड़की की दादी ने उसे बिस्कुट खाते देखा तो छीन कर फेंकने लगीं। छीनाझपटी में लड़की का रोना सुनकर वकील साहब आए, सारा नजारा देखा और मां से पूछा कि क्यों छीन रही हो। लड़की की दादी ने कहा कि देखते नहीं, साबुन खाने जा रही है, छीनने पर रो रही है।

बाद में खुद बिस्कुट खा लेने के बाद ही उन्हें भरोसा हुआ कि उनकी पोती साबुन नहीं खाने जा रही थी।

3. टॉनिक वाला शैंपू
इस तरह का एक प्रसंग अभी कुछ साल पहले मेरी ताई जी के साथ भी हो चुका है। उन्हें लगता था कि उन्हें तो बुढ़ापे में इतनी कमजोरी हो रही है, जबकि उनकी बहुएं और पोतियां टॉनिक पी-पीकर मुटाती जा रही हैं। एक दिन मौका ताड़कर उन्होंने ताखे से टॉनिक जैसी कोई चीज उठाई और ढक्कन पर ढक्कन ढाल-ढाल कर पीना शुरू कर दिया। बताते हैं, तीसरे ढक्कन के बाद सीन बदल गया। गल-गल की आवाज सुनकर लोग बाहर से भागकर भीतर पहुंचे तो चाची के मुंह से झाग निकल रहा था, बगल में शैंपू की खुली शीशी लुढ़की पड़ी थी। जान बचाने के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। स्वस्थ होने के बाद उन्होंने खुद ही यह किस्सा बयान किया।

 
     


5 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वाकई ये सारे किस्से सहेजने योग्य हैं .... होंगें

Unknown said...

खूब...संजोइए सब. हमहूं कुछ बटोर रहे हैं. माई नयी बातें तो तुरत विस्मृत कर देती है पर पुराने किस्से अमिट हैं.

संजय श्रीवस्तव said...

खूब,

Unknown said...

सच में ये किस्से बेजोड़ है जो हमारे माता पिता हमे अपने समय के वाकयात सुनाते है ।

Unknown said...

सच में ये किस्से बेजोड़ है जो हमारे माता पिता हमे अपने समय के वाकयात सुनाते है ।