ब्यौरों को छोड़ दें तो सारे बलात्कार एक जैसे होते हैं
नतीजा भी उनका एक ही जैसा होता है
एक अदद टूटी-बिखरी जिंदगी
जिसके धागे पहले की तरह फिर कभी नहीं जुड़ते
लेकिन सारे बलात्कारी एक जैसे नहीं होते
कोई अभागा बलात्कार के दौरान भी
सोच रहा होता है कि वह किसी से प्रेम कर रहा है
या शायद किसी से भी प्रेम न कर पाने की भरपाई
बलात्कार के तुरंत बाद वह बदहवासी में भागता है
या किसी से कुछ न बताने के लिए
अपने शिकार के सामने रोता-गिड़गिड़ाता है
कुछेक तो बाद में खुदकुशी तक करते पाए गए हैं-
और सिर्फ सजा पड़ने के डर से नहीं,
पकड़े जाने का चक्कर ही खत्म हो जाने के बाद
लेकिन ये सब सिद्ध बलात्कारी होने के लक्षण नहीं हैं
वे तो मन के मामले में भी मास्टर क्राफ्ट्समैन होते हैं
सब कुछ ऐसे करते हैं, जैसे तफरीह पर निकले हों
बलात्कार के पहले, उसके दौरान और उसके बाद भी
दिल पर चिड़िया के पंख जितना भी बोझ नहीं लेते
पकड़े जाने पर कहते हैं, उन्हें फंसाया जा रहा है
या फिर यह कि अमुक जात, धर्म, इलाके के लोग
खासकर उनकी लड़कियां ऐसी ही होती हैं
यह भी कि वह नहीं, पर उनके जैसा ही कोई खून का सच्चा
इस लड़की से ठीक ऐसा ही बदला लेगा और बताएगा कि
इज्जतदार की इज्जत उतारने का अंजाम क्या होता है
ऐसे लोग तरक्की करते हैं, सत्ता की चोटी चढ़ते हैं
तॉल्स्तॉय जैसे नॉवलिस्ट उनपर ‘रिजरेक्शन’ लिखते हैं
और उनकी शिकार लड़कियां उन्हें नीचे से निहारती हुई
अपने औरत होने का मतलब समझती हैं
5 comments:
"ऐसे लोग तरक्की करते हैं, सत्ता की चोटी चढ़ते हैं/ तॉल्स्तॉय जैसे नॉवलिस्ट उनपर ‘रिजरेक्शन’ लिखते हैं"
बहुत उम्दा !
बहुत अच्छी कविता।
बेधक कविता
क्या कहें, तारीफ के लायक शब्दों की ज़बरदस्त कमी महसूस हो रही है।
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