Thursday, January 15, 2015

ट्रेन से उतरे, डर साथ लाए

इस ठंड में सुबह पांच बजे कॉलबेल की कर्कश आवाज से नींद खुलना किसी के लिए भी अच्छी बात नहीं हो सकती। थोड़ी झल्लाहट स्वाभाविक थी। पता चला, ऊपर वाले पड़ोसी किसी विपदा में पधारे हैं। बेटा-बहू और नन्हा सा पोता लखनऊ से आ रहे थे। रास्ते में किसी से झगड़ा हो गया। उसने गाजियाबाद स्टेशन पर देख लेने की धमकी दी है। कई जगह फोन करके बंदे भी बुला रखे हैं। यूपी के एक धकियल मंत्री को फोन करने की बात भी कर रहा था। अकेले जाने में डर लग रहा है, अगर साथ में चल सकें तो....

जैसे-तैसे तैयार हुआ। गाड़ी  कितने बजे पहुंचेगी गाजियाबाद? पूछा तो कई सारे फोन और एसएमएस कर डाले। फिर बोले, उठा नहीं रहे हैं अभी लेकिन शिड्यूल साढ़े छह और सात बजे के बीच का है। कैसे चलना है, तो ऑटो देखते हैं। इतनी सुबह ऑटो शायद ही मिले। फिर कोशिश करके एक ड्राइवर अरेंज हुआ और खुदा-खुदा करके दोनों लोग गाजियाबाद स्टेशन पहुंचे। रास्ते में मेरे पड़ोसी भारतवर्ष में मुसलमानों की बढ़ती आबादी को लेकर चिंता व्यक्त करते रहे। यह भी कहा कि हिंदू बेचारे अपनी आबादी कैसे बढ़ाएं, इतनी व्यवस्था ही नहीं रह गई है अब। जबकि इन्हें तो अल्पसंख्यक होने के इतने सारे फायदे मिल जाते हैं।

मुझे लगा, साक्षी महाराज और साध्वी प्राची जैसे आध्यात्मिक व्यक्तित्वों की बात को देश में काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। हमारे सीधे, सौम्य पड़ोसी का इसमें कोई दोष नहीं है। लेकिन गाजियाबाद स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंच जाने के बाद पता चला कि जिस व्यक्ति से उनके बेटे का झगड़ा हुआ है, वह मुसलमान है। यानी मुसलमानों की बढ़ती आबादी पर इनकी चिंता तात्कालिक है, इसका कोई गहरा वैचारिक संदर्भ नहीं है।

जिसकी किस्मत खराब हो, वही सुबह-सुबह गाजियाबाद रेलवे स्टेशन जाए। पटरियों के करीब पहुंचते ही बदबू का इतना भयानक भभका आया कि लगा, गलती से किसी विशाल शौचालय में घुस गए हों। स्टेशन करीब आते ही लोगों में निवृत्त होने का उत्साह कुछ ज्यादा ही जाग उठता है क्या? एक के बाद एक, सारी पटरियां मल-मूत्र से तर-ब-तर। और यह हाल तब है जब रेलवे स्टेशनों की हालत सुधारने, उन्हें इंटरनेशनल स्तर का बनाने की बात इतने मंचों से, इतने ऊंचे स्वरों में कही जा रही है।

एक बार फिर तसल्ली करनी चाही कि गाड़ी कितने बजे आएगी। पड़ोसी ने फिर कई सारे नंबर डायल किए, एसएमएस मारे और अपने बेटे-बहू को गालियां दीं कि ये कभी अपने फोन की बैटरी चार्ज नहीं रखते। करीब आधे घंटे बाद पता चला कि गाड़ी अभी हापुड़ में है और रुकी हुई है। उन्होंने बड़ी चिंता के साथ पूछा कि रास्ते में उस बंदे ने कुछ किया तो नहीं। बेटे का जवाब नहीं में आया तो वे कुछ आश्वस्त हुए। मुझे लगा कि चिंतित होने का समय मेरे लिए आ रहा है। लेट होती हुई गाड़ी अगर नौ-दस बजे आई तो आज मेरा दफ्तर गया।

बताने-समझाने को कुछ था नहीं, लेकिन मैंने यूं ही उनसे कहा कि डराने वाला खुद डरा हुआ हो, ऐसा भी तो हो सकता है। वैसे, वह अकेला है या साथ में कुछ और लोग भी हैं? वे बोले, उसके साथ में सोलह-सत्रह साल की एक लड़की है, और यही असली चिंता की बात है। ये लोग झगड़ा तो करते ही हैं, साथ में ओछे आरोप भी लगा देते हैं कि हमारी लड़की के साथ ऐसा कर रहे थे। सरकारी नौकरी में ऐसी बातें कितनी खतरनाक हो जाती हैं, आपको शायद इसका अंदाजा भी न हो। उन्होंने बताया कि उनके कई मित्रों के साथ और एक बार तो खुद उनके ही साथ ऐसा हो चुका है। मार-झगड़ा किया और लड़की छेड़ने का आरोप लगा दिया।

यहां से मुझे समझ में आया कि शायद मेरी मौजूदगी इस तरह की संभावना को खत्म करने या काफी कम कर देने के लिए जरूरी समझी जा रही है। अखबार में काम करने वाला एक बंदा साथ में होगा तो कोई अनाप-शनाप इलजाम लगाकर यूं ही नहीं निकल जाएगा। लड़ाई-झगड़े में मेरी कोई विशेष भूमिका अब नहीं हो सकती, इस बात का पिछले तीन वर्षों में मुझे पूरा इत्मीनान हो चुका है। लेकिन अपनी नौकरी की वजह से लोगों के किसी काम आ सकता हूं, यह बात थोड़ा सुकून देने वाली थी।

बहरहाल, गाड़ी करीब साढ़े आठ बजे आ गई। जिन यात्रियों का इंतजार था, वे सही-सलामत उतर चुके थे। मैंने पूछा, जिससे झगड़ा हुआ था, वह कहां है। उन्होंने सामान उठाकर कदम बढ़ाते हुए बिना पीछे देखे जवाब दिया, वो क्या है, सीट पर सोया हुआ। ऊपर उसकी लड़की है। और वे लोग, जिन्हें इसने गाजियाबाद स्टेशन पर बुला रखा था? इस सवाल का न किसी के पास कोई जवाब था, न जवाब देने की कोई जरूरत थी।

लौटते वक्त मैने कहा, आप लोग इतने परेशान क्यों हो गए थे, ट्रेन में बैठते वक्त इस तरह के झगड़े मेरे पचासों बार हुए होंगे और उनमें सब के सब ट्रेन में ही खत्म हो गए। कुछ मामलों में तो सुबह की चाय भी झगड़ा करने वाले पक्ष से ही पी गई। पड़ोसी ने कहा कि आप नहीं जानते, यह सब सरकारी मामला है न। जरूर वह बंदा यूपी गवर्नमेंट का कोई मुसलमान अफसर होगा, आजम खां से कहकर कोई भी तिकड़म करवा देगा। फिर बेटे से पूछा, ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने चार्ट में तुम्हारा नाम देखकर तुम्हारी रिजर्वेशन डिटेल्स निकलवा ली हो?’  

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