आते-जाते अनजाने में
हाथ का लोहा खड़खड़ करता है
शीत लहर में हवा चली है
दिल-दरवाजा भड़भड़ करता है
दूर-दूर तक कोई गहरी बात नहीं है
सबकुछ पटरा सबकुछ सरपट
या जैसे कह गए निराला-
खिन्न तन भग्न मन
जीवन विषण्ण वन...
या फिर कविवर आनंद बक्षी-
ऐसे नाता तोड़ गए हैं
मुझसे ये सुख सारे
जैसे जलती आग किसी वन
छोड़ गए बंजारे....
देखो-देखो दोनों जगह वन
तो क्या वन ही जीवन है
अब इस बारहमासी शीतलहर में?
1 comment:
अग्नि धधकती कहीं हृदय में,
इसी समय की राह देखती,
मन को तनिक सम्हालो प्यारे,
मन का संबल धारो प्यारे।
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