Friday, June 8, 2012

अमलतास

सारे मौसम मेरे देश के मौसम हैं
लेकिन गर्मी मेरे देश के पसीने का मौसम है
पसीना जो अब अपने लोगों के बीच
श्रम के गौरव के लिए नहीं
बगल की बदबू के लिए जाना जाता है

पसीने से नावाकिफ एसी गाड़ियों से तो
अमलतास भी बाकी फूलों जैसा ही लगता है
हरे तारों पर पीली झूमरों का सिलसिला
लेकिन कभी सख्त धूप में बाहर निकलो
तो इसकी जरा सी छांह में थमकर देखना
तुम्हें यह फूल से कुछ ज्यादा लगेगा

सोचो तो कभी इसी के नीचे
भौंह का पसीना पोंछता कालिदास खड़ा होगा
कभी छांह के लिए भी छांह तलाशता सेनापति
कभी बेनूर आगरे में नूर उकेरता नजीर
अपने मौसम के ये इतने गहरे अपने लोग

धधकता हुआ सूरज जब
धरती के सारे रंगों को कुम्हला देता है
तब क्षितिज तक थरथराती थिर हवा को
डोल जाने का धीरज बंधाता अमलतास
जमीन से जमीन की उम्मीद की तरह उठता है

सोने से अलग सूरज से अलग
सरसों से अलग सिंह से अलग
दुनिया की हर पीली चीज से अलग
कुछ यूं उठता है यह अजब पीला रंग
जैसे देखने वाले को किसी और दुनिया का
छिपा हुआ रास्ता दिखा रहा हो

इधर आओ, इधर
जहां न सरकार आती है, न साहित्यकार
जहां फिल्मों के कैमरे पैकअप के बाद
और हादसों की टोह में निकले खबरनवीस
मैगसेसे या पुलित्जर की गुंजाइश
करीब लगने पर ही आते हैं

दुनिया के किसी देश, उसकी किसी चीज से
मुझे कोई शिकायत नहीं है
हो भी तो उसका मैं क्या बिगाड़ लूंगा
लेकिन अमलतास से मुझे शिकायत है
यह मेरा फूल है, मेरा पेड़ है
मेरा मौसम, मेरा दुख, मेरा देश भी यही है

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपना दुख अपना ही होता है..

रश्मि प्रभा... said...

धधकता हुआ सूरज जब
धरती के सारे रंगों को कुम्हला देता है
तब क्षितिज तक थरथराती थिर हवा को
डोल जाने का धीरज बंधाता अमलतास
जमीन की उम्मीद की तरह उठता है... वाकई

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/1.html