क्या किया?
थोड़ा एनिमल फार्म पढ़ा
थोड़ा हैरी पॉटर
कुछ पार्टियां अटेंड कीं
बहुत सारा आईपीएल देखा
एक दिन अन्ना हजारे के अनशन में गया
पूरे दिन भूखा रहने की नीयत से
लेकिन रात में आंदोलन खत्म हो गया
तो खा लिया- बहुत सारा
एक गोष्ठी में सोशलिज्म पर बोलने गया
पता चला, सूफिज्म पर बोलना था
सब बोल रहे थे, मैं भी बोला
फिर एक गोष्ठी में ज्ञान पर बोला
और इसपर कि इतने बड़े बाजार में
ज्ञान के कंज्यूमर कैसे पहचाने जाएं
उसी दिन ज्ञान गर्व से मुफ्त की दारू पी
और उससे बीस दिन पहले भी
कामयाब रिश्तेदारों के बीच
नाचते-गाते हुए, खूब चहक कर पी
दारू वाली दोनों रातों के बीच
एक सीधी-सादी सूफियाना रात में
घर के पीछे हल्ला करने वालों पर सनक चढ़ी
जबरन पंगा लेकर पूरी बरात से झगड़ा किया
रात बारह बजे दरांती वाला चाकू लेकर
मां-बहन की गालियां देता दौड़ा
किसी को मार नहीं पाया, पकड़ा गया
बाद में कई दिन भीतर ही भीतर घुलता रहा
जैसे जिंदगी अभी खत्म होने वाली है
इस बीच, इसके आगे और इसके पीछे
जागते हुए, नींद में और सपने में भी
नौकरी की....नौकरी की....नौकरी की
लगातार सहज और सजग रहते हुए
पूरी बुद्धिमत्ता और चतुराई के साथ
कि जैसे इस पतले रास्ते पर
पांव जरा भी हिला तो नीचे कोई ठौर नहीं
एक दिन मिजाज ठीक देख बेटे ने कहा,
पापा आप कभी-कभी पागल जैसे लगते हो
मैंने उसे डांट दिया
मगर नींद से पहले देर तक सोचता रहा-
इतना बड़ा तो कर्ज हो गया है
कहीं ऐसा सचमुच हो गया तो क्या होगा।
15 comments:
यही प्रश्न स्वयं से रह रहकर पूछता हूँ।
बहुत अच्छा लगा इस कविता को पढ़कर!
क्या किया ठीक है सब, मगर अभी और बहुत कुछ जो नहीं किया उसका क्या? बच्चे की आंख में हुए, सच्चे में पागल कहां हुए..
क्या बात है कह दिया - [वैसे ही डर बहत बहुत हैं भाईजान]
अहा!
bahut achhi kavita
सही किया.बेटे की कही बात तो प्राय: हम सब अपने आप को कहते हैं.
सोचती हूँ ऐसी सी कविता क्या स्त्री लिख पाएगी? लिख लेगी तो क्या पोस्ट कर पाएगी? या पहले वीरांगना बनना होगा उसे?
घुघूती बासूती
bahut badhiya.. baar baar padhne laayak hai!
बहुत सारे प्रश्न
उठाती एक अच्छी रचना....
आभार
Bahut achchhi kavita!
बहुत अच्छा लगा इस कविता को पढ़कर| धन्यवाद|
Badhiya!
बढिया तो आप लिखते ही हैं। उसमें नया क्या है। फिर भी बधाई।
क्या गज़ब कह गये..एकदम डर गये.
धांसू। ऐसा ही समाज विकसित हो रहा है।
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