Friday, November 26, 2010

प्रेम से ज्यादा कमिटमेंट मांगती है जिंदगी

कृष्ण को राधा से प्यार था, लेकिन जब वे गोकुल छोड़कर गए तो फिर लौटकर नहीं आए। बाद में उन्होंने बहुत सी शादियां कीं और आठ तो उनकी पटरानियां थीं। राधा का नाम उनकी ब्याहताओं में नहीं था, न ही इस बात की कोई जानकारी है कि लड़कपन के उस दौर के बाद फिर कभी राधा से उनकी मुलाकात भी हुई या नहीं। लेकिन आज भी अपने यहां प्रेम का श्रेष्ठतम रूप राधा और कृष्ण के संबंध को ही माना जाता है।

सवाल यह है कि प्यार क्या एक ही बार होता है। क्या इसमें जुए या सट्टे जैसी कोई बात है, जो कभी एक ही बार में लग जाता है तो कभी हजार कोशिशों के बाद भी नहीं लगता।

कई लोग सोचते रह जाते हैं कि वह एक ही बार वाला कब होगा, पता नहीं कभी होगा भी या नहीं। उसे खोजने की कोशिश में ट्रायल एंड एरर में जुटे रहते हैं, जब तक बस चले और उमर साथ दे। लेकिन जिन्हें सालोंसाल यह लगता रहता है कि वे जीवन में एक ही बार होने वाले प्यार में हैं, वे भी जिंदगी का ग्राफ बदलने के साथ खुद को उसमें जकड़ा हुआ महसूस करते हैं और पहला मौका मिलते ही उससे जान छुड़ाने की कोशिश करते हैं। रिश्तों का इस तरह दरकना तकलीफदेह होता है।

वे किसलिए दंडित हैं? आखिर उनका दोष क्या है? प्रेम कमिटमेंट मांगता है। दोनों तरफ से कुछ-कुछ छोडऩे की गुजारिश करता है। लेकिन जिंदगी अक्सर प्रेम से ज्यादा कमिटमेंट मांगती है। पहले शायद कुछ कम से भी काम चल जाता रहा हो, लेकिन अब तो वह सर्वस्व मांगने लगी है। जरा सी चूक और डोर पकड़ में आते-आते रह गई। ऐसी नाकामियों का ठीकरा भी प्रेम के सिर फोड़ा जाता है। लगता है, ऐसी किचकिच से तो अच्छा था नाकामी में ही खुश रह लेते। बाकी जिंदगी के लिए झोली में कुछ अच्छी यादें तो होतीं।

अपने यहां लड़की और लड़के के लिए एक-दूसरे से प्रेम करना आसान कभी नहीं रहा। इसके लिए उन्हें बाकायदा एक जंग लडऩी पड़ती थी और ज्यादातर जगहों पर आज भी लडऩी पड़ती है। महानगरों में हालात कुछ बदले हैं, लेकिन इससे प्रेम करना आसान नहीं हुआ है। जब लड़कियां करियर-कांशस नहीं थीं, तब प्यार में घर से बागी हुआ लड़का कहीं झाडग़्राम में जाकर किरानी बाबू हो जाता था और भागी हुई लड़की उसके लिए रोटियां पकाने लगती थी। अब लड़के की जिंदगी उसे खदेड़कर बेंगलूर या बोस्टन ले जाती है तो लड़की को बड़ौदा या बर्लिन की राह पकडऩी होती है।

जिंदगी ढर्रे पर आते ही पुराने प्यार की तड़प उठती है। सात समंदर पार से लोग सब कुछ छोड़-छाड़कर दोबारा करीब आ जाते हैं। लेकिन उसके फैसले तय करने वाली जो ताकतें उन्हें दूर ले गई होती हैं, वे प्रेम कहानी के सुखद दि एंड के बाद भी अपना काम करती रहती हैं। ऐसे में बेहतर क्या होगा? प्रेम के लिए अपने व्यक्तित्व को ठहरा लेना या जिंदगी की जरूरतों के मुताबिक अपने प्रेम और बाकी रिश्तों को पारिभाषित करना। ज्यादा नैतिक क्या होगा?

प्रेम एक ही बार होता है, ऐसा मानते हुए शाश्वत प्रेम के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देना या पुराने रिश्तों के प्रति शुभकामना रखते हुए नए रिश्तों के लिए दिल के दरवाजे खोल देना?

शाश्वत प्रेम असंभव नहीं, लेकिन वह आपसे बहुत ज्यादा मांगता है। और अगर आप उसे अपना सब कुछ सौंप दें तो भी उसके होने के लिए कई सारे संयोगों की जरूरत पड़ती है। लेकिन कृष्ण की तरह बिना किसी से कोई छल किए जिस प्रेम को छोड़कर आप आगे बढ़ जाते हैं, उसकी भी एक अलग शाश्वतता होती है।

बिना कुछ खोने का गम या कुछ पाने की लालसा के, दिल पर कोई बोझ लिए बगैर, बिछडऩे के अरसे बाद अपने प्रिय को भरा-पूरा और खुश देखना भी सच्चे प्यार की एक नियामत है- भले ही यह निस्संगता हासिल करने के लिए आपको दूसरे, तीसरे या चौथे प्रेम से ही क्यों न गुजरना पड़ा हो।

11 comments:

Rangnath Singh said...

शीर्षक पसंद आया।

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब। कुछ अलग सा लगा यह आलेख। इसे डूब कर पढ़ना होगा। आपकी बहुमुखी कलम की एक और मिसाल।
बकलमखुद के पाठक अगली कड़ियों के लिए व्यग्र हो रहे हैं।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आपने तो शीर्षक में ही सब कुछ समेट लिया ..... सच यही है..... प्रभावी पोस्ट

चंद्रभूषण said...

अजित भाई, आपको पता ही है, इधर कैसी समस्याओं से घिरा रहा हूं। हालात कुछ सुधरे तो संकोच ने घेर लिया। अब आपने कह दिया तो अगले दो ही चार दिन में शुरू करता हूं।

vandana gupta said...

गज़ब का नतीज़ा निकाला है और ज़िन्दगी का सच भी कह दिया………………सुन्दर और सटीक सोच का परिणाम है ये लेख्।

Dorothy said...

आलेख का शीर्षक ही सब कुछ कह देता है. जिंदगी की सच्चाईयों को खूबसूरती से उकेरती सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद. आभार.
सादर
डोरोथी.

प्रवीण पाण्डेय said...

दोनों ही कँटीली राहें हैं।

umesh said...

Gender का अंतर होने से जिंदगी अक्सर प्रेम से ज्यादा कमिटमेंट मांगती है।

शोभना चौरे said...

बहुत सुन्दरता के साथ आज के संदर्भ में प्रेम का विश्लेष्ण |

प्रतिभा सक्सेना said...

आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ ,बहुत संतुलित विचार हैं ,एक दम कनविंसिंग.ज़्यादा कमिटमेंट माँगती है ज़िन्दगी ,इसीलिए कृष्ण ने निर्लिप्त हो कर कर्म करने की बात कही .सचमुच कृष्ण अनुकरणीय है !

Raja Puniani राजा पुनियानी said...

आप में वह हिम्मत है उस सच्चाइ को उलिच के बाहर करने का, जिसे सब जानते हुए भी या तो नाजानने का अभिनय कर चुप्पी साध के बैठे हुएँ है या जिसे सब नजानते हुए भी जानने का ढोङ करते हैं...
सच्चाइ अगर विष भी है तो उसे स्वीकर करने का और वह सेहतमन्द पेय है तो उसे ग्रहण गरने का क्षमता का विकास आज के समय में गुरुत्वपूर्ण है...
आप चीजों को देख सकते हैं, और दिखा भी सकते हौं...इसी तरह लिखते रहिएगा, निरंतर...