एक बंद दरवाजा खुलता है
एक गहरा आंगन दिखता है
एक बड़ा पीतल का हंडा
एक चापाकल
एक चीनी की बोरी खुली हुई
नाबदान पर मांजने को
या चढ़ाने से पहले धोने को रखे बर्तन
यहां कोई आयोजन हो चुका है
या शायद होने वाला है
लेकिन मैं यहां क्यों हूं
पता नहीं चलता
एक उखड़े हुए सूखे पेड़ का तना है
कभी मैं उस तने पर होता हूं
कभी उसकी जड़ के करीब
पेड़ की टहनियां गहरे पानी में हैं
किनारा जिसका दूर है
पीछे जैसे कुछ है ही नहीं
उस पार ही मुझे जाना है
टहनियों के सिरे पकड़कर उतरूं
तो भी पानी में ही पहुंचूंगा
किनारे के शायद कुछ करीब
फिर भी पानी में
अंधियारे से घिरा यह जंडइल बरगद
शायद गांव की काली माई है
इसके नीचे शादी की बात हो रही है
मेरी अपनी शादी की बात
जिसके श्रोताओं में मैं भी शामिल हूं
यह जानता हुआ कि अभी क्या होने वाला है
सफेद थकी अंबेसडर बहुत तेज आती है
रास्ते में उसके बिना जगत का चौड़ा कुआं
और यह पागल उम्मीद कि
एक जोर में उसके पार निकल जाएगी
फिर गर्जना भरी एक उछाल
अंबेसडर के अगले पहिए कुएं के पार
फिर पिछले और फिर एक-एक कर अगले
कराहती खरोंचती आवाजों के साथ
धीरे-धीरे कुएं में जाते हुए
हिंसक बुलबुले फूटते हुए ऊपर आ-आकर
फिर इन्सानी आवाजों का इंतजार
जो नहीं आतीं नहीं आतीं
ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय
मैंने चीजों के सपने नहीं देखे
बस जगहों के देखे हैं
भेद भरी, खतरनाक जगहों के सपने
जहां अपना होना ही
सबसे बेतुकी चीज होता है
मैंने ब्रह्मांड फूटने का
समय के वापस शून्य में
लौट जाने का सपना देखा है
फिर लौटा हूं हकीकत में
अकेला...बहुरि अकेला
हर बार पहले से अधिक अकेला
5 comments:
खुद के उस अकेलेपन को बयाँ करती यह कविता मुझे अपनी ओर खींचती सी जान पड़ती है...
ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय
बहुत अच्छी पंक्तियां !!
ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय...
सच ही तो है।
अच्छी कविता है भाई।
http://bhadas4media.com/book-story/4234-anil-yadav-story.html
इस पते पर एक कहानी है। नजर मारिए। ई-मेल नहीं था सो चिट्ठी इस खिड़की से ही डाल दी।
सप्रेम
अनिल
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