Saturday, February 20, 2010

सपनों की बात

एक बंद दरवाजा खुलता है
एक गहरा आंगन दिखता है
एक बड़ा पीतल का हंडा
एक चापाकल
एक चीनी की बोरी खुली हुई
नाबदान पर मांजने को
या चढ़ाने से पहले धोने को रखे बर्तन
यहां कोई आयोजन हो चुका है
या शायद होने वाला है
लेकिन मैं यहां क्यों हूं
पता नहीं चलता

एक उखड़े हुए सूखे पेड़ का तना है
कभी मैं उस तने पर होता हूं
कभी उसकी जड़ के करीब
पेड़ की टहनियां गहरे पानी में हैं
किनारा जिसका दूर है
पीछे जैसे कुछ है ही नहीं
उस पार ही मुझे जाना है
टहनियों के सिरे पकड़कर उतरूं
तो भी पानी में ही पहुंचूंगा
किनारे के शायद कुछ करीब
फिर भी पानी में

अंधियारे से घिरा यह जंडइल बरगद
शायद गांव की काली माई है
इसके नीचे शादी की बात हो रही है
मेरी अपनी शादी की बात
जिसके श्रोताओं में मैं भी शामिल हूं
यह जानता हुआ कि अभी क्या होने वाला है

सफेद थकी अंबेसडर बहुत तेज आती है
रास्ते में उसके बिना जगत का चौड़ा कुआं
और यह पागल उम्मीद कि
एक जोर में उसके पार निकल जाएगी
फिर गर्जना भरी एक उछाल
अंबेसडर के अगले पहिए कुएं के पार
फिर पिछले और फिर एक-एक कर अगले
कराहती खरोंचती आवाजों के साथ
धीरे-धीरे कुएं में जाते हुए
हिंसक बुलबुले फूटते हुए ऊपर आ-आकर
फिर इन्सानी आवाजों का इंतजार
जो नहीं आतीं नहीं आतीं

ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय

मैंने चीजों के सपने नहीं देखे
बस जगहों के देखे हैं
भेद भरी, खतरनाक जगहों के सपने
जहां अपना होना ही
सबसे बेतुकी चीज होता है
मैंने ब्रह्मांड फूटने का
समय के वापस शून्य में
लौट जाने का सपना देखा है
फिर लौटा हूं हकीकत में
अकेला...बहुरि अकेला
हर बार पहले से अधिक अकेला

5 comments:

अनिल कान्त said...

खुद के उस अकेलेपन को बयाँ करती यह कविता मुझे अपनी ओर खींचती सी जान पड़ती है...

संगीता पुरी said...

ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय

बहुत अच्‍छी पंक्तियां !!

Pooja Prasad said...

ऐसे ही मेरे सपने हैं
ऐसा ही मेरा होना है
ऐसा कोई सपना मैंने कभी नहीं देखा
जिसमें मानवता हंसती हो
न ही कोई ऐसा
जो स्वेट मॉर्डन या शिव खेड़ा की तरह
नींद उड़ा दे, सोने ही न दे
जब तक हाथ न लग जाय...

सच ही तो है।

शरद कोकास said...

अच्छी कविता है भाई।

Unknown said...

http://bhadas4media.com/book-story/4234-anil-yadav-story.html
इस पते पर एक कहानी है। नजर मारिए। ई-मेल नहीं था सो चिट्ठी इस खिड़की से ही डाल दी।

सप्रेम
अनिल