पिछले सप्ताह दिवंगत हुए समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र ने करीब चार साल पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया से जुड़ा यह किस्सा मुझे सुनाया था। मैं और शशिधर पाठक उस वक्त सहारा समय साप्ताहिक में थे और लोहिया के जन्मदिन पर उनसे कुछ बातचीत करने गए थे। जनेश्वर जी मिठाई के भयंकर रसिया थे और उन्हें लोगों का अपने यहां आना इसलिए भी पसंद था कि उनके जलपान के लिए लाई गई मिठाइयों पर वे खुद भी हाथ साफ कर सकें। डायबिटीज की बीमारी के चलते घर में कोई उन्हें सीधे मिठाई नहीं दे पाता था, लिहाजा अपना शौक पूरा करने के लिए वह यह बाईपास तरीका अपनाते थे। बहरहाल, उस दिन बातचीत के क्रम में आया यह किस्सा यथासंभव उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है। इस वैधानिक क्षमायाचना के साथ इसमें किसी भी गलती की जिम्मेदारी मेरी है, क्योंकि ऐतराज जताने या इसकी गलतियां सुधारने के लिए जनेश्वर जी अब इस दुनिया में नहीं हैं।
नेहरू जी की मृत्यु के बाद उनके संसदीय क्षेत्र फूलपुर में मेरी पार्टी ने मुझे (जनेश्वर मिश्र को) कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार बनाया और मैं चुनाव जीत गया। जीत के बाद शपथ ग्रहण के लिए डॉक्टर साहब (डॉ. राम मनोहर लोहिया) के साथ मैंने दिल्ली के लिए जो गाड़ी पकड़ी, उसे रात दस बजे के करीब रामपुर में बदलना पड़ गया। अगली गाड़ी दो बजे आने वाली थी। हमने सोचा, चार घंटा स्टेशन पर पड़े रहने के बजाय बाहर चलकर टहलते हैं। बाहर थोड़ी ही दूर पर कव्वाली हो रही थी। हम वहीं खड़े होकर कव्वाली सुनने लगे। संयोग से वहां कुछ लोग डॉक्टर साहब को पहचानने वाले निकल आए। नेहरू जी की सीट जीतने की वजह से उनमें से कुछ ने मेरा नाम सुन रखा था, तो थोड़ी इज्जत मेरी भी हुई। हमारी अटैची वगैरह रखवाकर लोग कव्वाली सुनने के साथ-साथ हमसे बातें भी करने लगे।
समय यही जनवरी-फरवरी का था। रात की हवा में ओस थी और ठंड भी ठीकठाक थी। इतने में ठंड से दांत किटकिटा रहे एक अधेड़ मुस्लिम से डॉक्टर साहब ने कहा, मियां ठंड काफी है, बाहर निकलो तो कुछ पहन लिया करो। वह बोले, अरे डॉक्टर साहब, स्वेटर, जर्सी, कोट सब आप जैसों के लिए है, हम जैसे यह सब कहां पाएंगे। डॉक्टर साहब थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। फिर बोले, जनेश्वर, मेरी अटैची से एक स्वेटर लाओ। मैंने अटैची खोली तो उसमें दो स्वेटर पड़े थे- एक हल्का, दूसरा भारी और काफी महंगा। मेरे ख्याल से डॉक्टर साहब के किसी जर्मन दोस्त ने उन्हें दिया था।
मैंने हल्का वाला स्वेटर निकाला और लाकर उन्हें थमा दिया। यह गलती मेरे लिए बड़ी महंगी साबित हुई। डॉक्टर साहब ने वहीं सबके सामने मेरी इज्जत उतार दी। गधा, उल्लू, पाजी...क्या-क्या नहीं कहा। फिर खुद उठे और अटैची से महंगा वाला स्वेटर निकाल कर ठंड से कुड़कुड़ा रहे उन सज्जन को थमा दिया। बोले, मियां इसे अभी पहन कर दिखाओ। उन्होंने पहना और कहा, डॉक्टर साहब यह तो बहुत गरम है, लेकिन एक हमारे स्वेटर पहन लेने से देश में लाखों लोगों का जाड़ा तो नहीं जाएगा। लोहिया जी बोले, मियां अभी तो अपना देखो। अगर कभी हमारी सरकार बनी तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि देश में किसी को भी ठंड में ठिठुरना न पड़े।
इसके बाद दो घंटे हम वहां और रहे, लेकिन कौन क्या बोला, मुझे कुछ नहीं पता। वापस आकर ट्रेन पकड़ी तो भी डॉक्टर साहब की सामने वाली सीट पर मैं सिर झुकाए, रुआंसा, जुबान सिले बैठा रहा। इस बीच उनका गुस्सा उतर गया और बोले, जनेश्वर कुछ बात क्यों नहीं कर रहे हो। मैंने कहा, डॉक्टर साहब आप जैसे विद्वान से मैं क्या बात करूं। मैं तो गधा हूं, उल्लू हूं, पाजी हूं। वह बोले, जनेश्वर, बच्चों की तरह नाराज होना छोड़ो और समझदार आदमी की तरह कुछ ढंग की बात करो।
मैंने कहा, डॉक्टर साहब, आपने स्वेटर लाने को कहा, मैंने ला दिया। जो स्वेटर मैं लाया था, वह पाकर भी वह आदमी कम खुश नहीं हुआ होता। आप बड़े आदमी हैं, बड़ी चीज देने से ही आपके दिल को राहत मिलती है, लेकिन अपनी समझ से मैंने गलत क्या किया, जो दस आदमियों के बीच में आपने मेरी इज्जत उतार ली?
डॉक्टर साहब एक बार फिर खामोश हो गए। फिर बोले, गलत हुआ। थोड़ी देर बाद कहा, जनेश्वर, इस बात को मेरी चीज, तेरी चीज, की नजर से मत देखो। ये छोटी बातें हैं। उस आदमी ने हमसे कुछ मांगा तो नहीं था। सिर्फ एक बात कही थी, इस देश की गरीबी के बारे में एक सीधी, खरी बात। मेरे देने-लेने से उस बात का कोई मतलब नहीं। बस, स्वेटर देने का दिल किया, दे दिया। अगर तुम किसी को अपनी मर्जी से कुछ देना चाहते हो तो उसे सबसे अच्छी चीज दो। खराब चीज का देना तो अपना बोझ उतारना हुआ, देना नहीं हुआ।
11 comments:
लोहिया जी बोले, मियां अभी तो अपना देखो। अगर कभी हमारी सरकार बनी तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि देश में किसी को भी ठंड में ठिठुरना न पड़े।
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और ये समाजवादी सरकारें किनकी थीं? फुलवरिया और सैफई में भी ठण्ड से क्यों ठिठुर रहे हैं लोग!
kya baat kahi thi unhone
waah !
waise pandey ji ka sawal bhi durust hai
अगर तुम किसी को अपनी मर्जी से कुछ देना चाहते हो तो उसे सबसे अच्छी चीज दो। खराब चीज का देना तो अपना बोझ उतारना हुआ, देना नहीं हुआ।
बढ़िया बात ..याद रखने जैसी
सुन्दर संस्मरण! याद रखने लायक बात अगर तुम किसी को अपनी मर्जी से कुछ देना चाहते हो तो उसे सबसे अच्छी चीज दो। खराब चीज का देना तो अपना बोझ उतारना हुआ, देना नहीं हुआ।
बहुत प्रेरक संस्मरण। हमेशा याद रहेगा।
yad rahega ye prerak sansmaran
२५ जनवरी को एनबीटी के 'कॉमन रूम' में पढ़ा था. उम्दा संस्मरण!
लोहिया जी कम से कम यह दिली इच्छा तो थी!
ग्रेट!
gr8. Very inspiring and touching. Lohia Ji was really a great man.
Wonderful!
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