पैसे का क्या है
वो तो हाथ का मैल है
पता भी नहीं चलता और चिपकता जाता है
काफी जम जाए तो भी नजर नहीं आता
देखने में बिल्कुल साफ दिखते हैं हाथ
मगर पानी में डालो तो समझ नहीं पड़ता
कि कालिख इतनी कहां छिपी थी
पैसे का क्या है
इधर से आता है उधर चला जाता है
घेर-घार लेकिन इतनी मचाता है
कि दूर तक कुछ भी नजर नहीं आता
जब यार-दोस्त होते हैं, पैसा नहीं होता
जब दिल लगता है तो पैसा नहीं होता
जब खुद में खोए रहो तो भी वो नहीं होता
फिर पीछे पड़ो उसके
तो उठ-उठ कर सब जाने लगते हैं
पहले दृश्य, फिर रिश्ते, फिर एहसास
फिर थक कर तुम खुद भी चले जाते हो
दूर तक कहीं जब कुछ नहीं होता
तो पैसा होता है
पैसे का क्या है
वो तो.....
11 comments:
सुन्दर रचना है
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Tech Prevue: तकनीक दृष्टा
सत्य वचन!
थककर पता नहीं खुद से कितनी दूर निकल गया हूं, लेकिन पीछे पैसा रहा हो ऐसा भी नहीं है, फिर? पैसे का क्या है?
लेखनी प्रभावित करती है.
आधी उम्र बीतने को है लेकिन हाथ कोरे हैं. बहुत कोशिश करने पर भी मैल नहीं जमता. कीचड़ में उतरने का माद्दा नहीं है. कुछ करो प्रभु.
bahut gazab baat kahi hai aapne rachna mein
"पैसा चीज मजेदार है
पैना है धारदार है
जो बंद रख सडाते हैं,
उनको दहिया लगा अचार है
जो खर्चते हैं,
उनको व्यापार है .."
बाकी फिर कभी !
बेहतरीन रचना !
जबर्दस्त अभिव्यक्ति।
सब कुछ तो कह दिया आपने।
जावेद साहब का शेर याद आ रहा है
गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदुरा हुआ
जाती रही वो लम्स की नरमी, बुरा हुआ
@अजित जी, क्या हुआ?
पूछते हैं आप कि पैसे का क्या है?..... हज़ूर पैसे का ही तो सारा खेल है।
......बहरहाल, सच्ची बात कहती बहुत सुंदर कविता चंदू जी।
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