Monday, March 17, 2008

चिकोटी चिंतन

शाहदरा से नोएडा की डग्गामार बस में
बगल खड़ी लड़की के धोखे में
इतनी देर से आपको
चिकोटी काट रहे सज्जन की
क्या कोई पहचान है?
करने को ज्यादा कुछ है नहीं
आजिज आकर पीछे घूमें तो
तो हर कोई दिखता है वहां एक सा
डंडा पकड़े खड़ा चिंतन में लीन ।

ऐतिहासिक स्मारकों में, रेलवे के संडासों में,
कपड़े की दुकानों के ट्रायल केबिनों में
क्या कभी कोई पकड़ा जाता है?
दिखते हैं अलबत्ता हर जगह
हर किसी को शर्मसार करते
भय, अपराधबोध से भरते
उसी मिस्टर इंडिया के कृत्य।

मुझे अगर मिल जाए कोई अदृश्य चोगा
तो सबसे पहले मैं क्या करूंगा?
ऐसे ही लोगों पर नजर रखूंगा
अकेले जब वे कहीं बैठे होंगे
जाकर सुनाऊंगा वे कृत्य
जिनके बारे में सुनने की बात
उन्होंने सपने में भी न सोची हो।

मेरा ख्याल है
उनमें कुछ पढ़े-लिखे और ढीठ भी होंगे
जो मुझे मुखौटे की महिमा बताएंगे,
समझाएंगे एक ही इंसान में
जेकिल और हाइड दोनों होने का मर्म,
फिर फर्नांदो पेसोआ के तीन प्रतिरूप
अलमारी से निकालकर मेरे सामने रख देंगे
और तबतक मुस्कुराते रहेंगे
जबतक मेरा अदृश्य चोगा
पसीने से तरबतर न हो जाए।

अदृश्यता तब भी मेरे साथ रही तो
ज्यादा बहस करने की मजबूरी न होगी।
मैं उनसे कहूंगा-
तुम्हें तुम्हारी आजादी मुबारक
खुद को तुम चाहे जितने हिस्सों में फाड़ो,
लेकिन जो कुछ तुम कर रहे हो
उसका भोग तो तुम्हें भोगना ही होगा।

मुझे पता है, यह नायकत्व
ज्यादा समय मेरे साथ नहीं रहेगा।
अदृश्यता एक दिन
मेरी भी चेतना, मेरे भी ईमान से खेलेगी।
पांव के नीचे से ले ही उड़ेगी वह जमीन
जहां खड़े होकर हर गलती के बाद
मैं अपने किए पर पछताता हूं।

सिर्फ फिल्मों की चीज है
अदृश्यता की ताकत पाकर भी
बेचारगी में लौट जाने वाला मिस्टर इंडिया।
असलियत में तो यह वही है
जो इतनी देर से चिकोटी काटता हुआ
आपके पीछे खड़ा चिंतन कर रहा है।

4 comments:

azdak said...

चिंतन नहीं कर रहा है, कैसे-कैसे काटें की ही अंगड़ाइयां भर रहा है.. और चिंतन कर भी रहा है तो वह चिकोटी-चिंतन ही है.

सुनीता शानू said...

बहुत है मिस्टर इंडिया कहाँ तक पकड़ में आयेंगे...

बाजारों मे बसो में जो दिख जाते है
क्या वही मिस्टर इंडिया कहलाते है
जाने किस घर में बैठा है कौन
बनके मिस्टर इंडिया मौन
जब संत भी चिकोटी-चिन्तन बन जाते हैं
दयाबाई के जैसे दर्द दे जाते हैं...

Unknown said...

बढ़िया गुरुदेव - मुखौटे की महिमा में किनारे बैठ के कह सकते हैं - "रसगुल्ला घुमाय के मार दिया रे" [ :-)] - मनीष [ पुनश्च : वैसे मिस्टर इंडिया हमारे ज़माने में होता था - आजकल अदृश्य वाला हैर्री पॉटर कहाता है]

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