स्वप्नदर्शी की सुझाई अर्न्स्ट मेर की किताब 'इट इज बायलोजी- द साइंस ऑफ लाइफ' के कुछ हिस्से पढ़ रहा था। वाकई यह अद्भुत किताब है, लेकिन प्राकृतिक दर्शन से जुड़ी गणित, भौतिकी और रसायनशास्त्र की मूलभूत चिंताओं के साथ इसकी प्रस्थापनाओं के रिश्तों के बारे में बात कभी बाद में की जाएगी। सेंटर फॉर फिलॉस्फिकल ऐंड साइंटिफिक स्टडीज ने हाल में इस श्रेणी में आने वाली अद्यतन प्रस्थापनाओं का एक संकलन 'माइंड, मैटर ऐंड मिस्ट्री' नाम से छापा है, जिसका हिंदी अनुवाद मेरा किया हुआ है। इनमें से एक, 1977 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त रसायनज्ञ इल्या प्रिगोजिन की कुछ बातों का जिक्र यहां करना चाहूंगा।
पहले एक छोटा सा परिचय। 1917 में पैदा होकर 2003 में मरे इल्या प्रिगोजिन रूसी मूल के रसायनशास्त्री थे। उनके प्रोफेसर पिता ने रूस की सोवियत क्रांति के बाद बेल्जियम में शरण ली थी लिहाजा प्रिगोजिन की ख्याति बेल्जियन रसायनशास्त्री के रूप में ही बनी। उनका काम रसायनशास्त्र के कई क्षेत्रों में रहा, लेकिन नजर गड़ी बेलूसोव-झाबोतिन्स्की अभिक्रिया (बीजेड रिएक्शन) पर, जिसे विज्ञान के लिए एक चमत्कार ही माना जाता था (कुछ लोग आज भी इसे ऐसा ही मानते हैं)।
पचास के दशक में खोजी गई इस अभिक्रिया में बहुत हल्के सल्फ्यूरिक अम्ल में तैयार किया गया पोटैशियम ब्रोमेट, सीरियम सल्फेट और प्रोपेन्डिओइक अम्ल का मिश्रण अंतहीन रूप से एक बार गहरा पीला और फिर बिल्कुल रंगहीन होता रहता है। इसकी रासायनिक व्याख्या अपेक्षाकृत आसान है। सीरियम का चार संयोजकता वाला आयन रंगहीन और तीन संयोजकता वाला आयन पीला रंग उत्पन्न करता है। यानी इस मिश्रण में लगातार इन्हीं दोनों आयनों के बीच आवाजाही लगी रहती है। लेकिन इसकी भौतिक व्याख्या मान्य धारणाओं के तहत लगभग असंभव है।
सारी रासायनिक क्रियाएं किसी उत्प्रेरक की मौजूदगी में और एक निश्चित ताप-दाब की स्थिति में एक ही दिशा में चलती हैं। इनकी दिशा बदली जरूर जा सकती है, लेकिन इसके लिए अलग ताप-दाब और उत्प्रेरकों का इस्तेमाल करना होता है। जेडबी रिएक्शन से पहले ऐसी किसी रासायनिक अभिक्रिया के बारे में जानकारी नहीं थी, जो स्थितियों में कोई बदलाव किए बगैर आगे-पीछे होती रहे। बाद में इस तरह की और भी कई रासायनिक क्रियाएं खोजी गईं और उन सभी को जेडबी रिएक्शन के वर्ग में वर्गीकृत कर दिया गया। कुछ लोग इन्हें रासायनिक घड़ियों (केमिकल क्लॉक्स) का नाम भी देते हैं।
इल्या प्रिगोजिन ने इस समस्या का समाधान एक क्रांतिकारी प्रस्थापना के जरिए दिया। उन्होंने कहा कि अपवाद स्वरूप ही सही, लेकिन पदार्थ में खुद को संगठित करने का भी एक गुण मौजूद होता है। भौतिकी की एक सर्वमान्य धारणा यह है कि पदार्थ लगातार अपघटन की ओर, सरलतर संतुलन की तरफ बढ़ता है। इसे ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम कहते हैं और भौतिकी के कुछ मूलभूत नियमों में इसकी गणना की जाती है। भौतिकी में समय के बिल्कुल सीधे तीर की धारणा भी इस नियम से ही निकलती है। इल्या प्रिगोजिन की प्रस्थापना इस नियम के विरुद्ध खड़ी होती है।
बाद में प्रिगोजिन ने अपनी धारणा को और विस्तार देते हुए डिसीपेटिव स्ट्रक्चर्स (अपसारी संरचनाएं) की परिकल्पना प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने बीजेड रिएक्शन के अलावा साइक्लोनों, हरीकेनों और स्वयं जीवन को भी शामिल किया। जीवन पर ज्यादा ठोस रूप से बात करें तो प्रिगोजिन के मुताबिक यह एक ऐसा डिसीपेटिव स्ट्रक्चर है, जो कम से कम तीन अरब अस्सी करोड़ साल से खुद को जारी रखे हुए है और लगातार सरलतर होते जाने के बजाय लगातार जटिलतर होता जा रहा है। भौतिकी के लिए इसकी व्याख्या तभी संभव है, जब वह ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम से निकले समय के सीधे तीर की मार से खुद को आजाद कर ले।
प्राकृतिक दर्शन में रुचि रखने वाले चोटी के वैज्ञानिकों की नजर में इल्या प्रिगोजिन का काम बीसवीं सदी में विज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हुए सर्वाधिक क्रांतिकारी कामों में एक है, जिसके वास्तविक महत्व का पता इक्कीसवीं सदी में ही चल सकेगा, जो वैज्ञानिकों के बीच बन रही एक आम राय के मुताबिक 'जीव विज्ञान की सदी' होने जा रही है।
3 comments:
इतनी जटिल प्रस्थापना को ऐसे आसान शब्दों में समझाने का शुक्रिया. इस विषय पर अगर आप विस्तार से लिखें तो हम जैसे पाठकों को लाभ होगा. जैसे कि इस प्रस्थापना से पूर्व- स्थापित किसी/किन्हीं दार्शनिक/जैविक मान्यताओं पर क्या असर हो सकता है.
ये आपने अच्छी ज़गह से शुरुआत की. बहुत बढिया. पोपुलर भाशा मे विग्यान के बारे मे लिखना, आपसे सीखना चाहिये. मेरी मुश्किले यही से शुरु होती है, कि कहा से शुरु किया जाय? हिन्दी मे कविता कहनिया तो बहुत है, पर बहुत कुछ इस क्षेत्र मे नही है.
Hi
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