Tuesday, November 13, 2007

उधर नंदीग्राम इधर कोसांबी

कुछ समय पहले जैसे निगेटिव वाइब्स अभय को तंग कर रहे थे, वैसे ही इधर कुछ दिनों से मुझे भी तंग करने लगे थे। अनिल भाई के साथ खामखा की एक अरुचिकर बहस और इस बहस से बिल्कुल अलहदा, किसी दूसरे ही छोर से न जाने किस वजह से कुछ मित्रों का मेरी गैरमौजूदगी में मुझे कुछ भला-बुरा कहना इसकी वजह बना। अपने भीतर खुद को नायक या खलनायक महसूस करना, दोनों ही मेरे लिखने-पढ़ने में बाधक होते रहे हैं। अब यही मेरी सामाजिकता है। मित्रों, लिखने-पढ़ने के अलावा कुछ और कर पाने की स्थिति में मैं अभी नहीं हूं। अगर अपने लिखे-पढ़े में मैं आपको कोई नुकसान पहुंचाऊं तो मुझे जी भरकर गरियाएं, लेकिन अगर आपकी नाराजगी सिर्फ इस वजह से है कि मैं आपके साथ उठ-बैठ नहीं पाता या आपकी किसी और उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाता, तो कृपा करके मुझे माफ कर दें। ऐसा मैं कोई अपनी मर्जी से या इसे बहुत अच्छा समझकर नहीं कर रहा हूं। मैं बहुत बुरी तरह घिर गया हूं। नौकरी मेरी जान ले ले रही है और जिंदा रहने का इसके अलावा और कोई जरिया भी मेरे पास नहीं है- करूं तो क्या करूं।

वाम आंदोलन के साथ मेरा जुड़ाव किसी वैचारिक बहस-मुबाहसे तक सीमित नहीं है। जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा इस आंदोलन में गया है। आज भी सबसे ज्यादा खुशी और सबसे ज्यादा दुख इस आंदोलन से जुड़ी खबरों से ही होता है। नंदीग्राम में सीपीएम के लोग और उसकी सरकार जो कर रहे हैं, वह खून खौला देने वाला है। लेकिन मेरे लिए इसमें चौंकाने वाली कोई बात नहीं है। नक्सल आंदोलन की शुरुआत से ही इस पार्टी का ठीक यही रवैया देखा जा रहा है। करीब दस साल पहले नदिया जिले में पोलिंग के समय लिबरेशन के असर वाले एक गांव पर हमला करके उन्होंने कई लोग मार दिए थे और फिर अस्पताल में भर्ती पांच लोगों की अस्पताल में ही घुसकर हत्या कर दी। जो सुमन चट्टोपाध्याय आज पश्चिम बंगाल में टीवी पर अकेले सीपीएम विरोधी सांस्कृतिक स्वर बने हुए हैं, उनकी पहली सार्वजनिक उपस्थिति- बांग्ला पॉप म्यूजिक के दायरे से निकलकर- इसी घटना में देखने को मिली थी।

अपने और पराये का एक ऐसा बोतलबंद नजरिया इस पार्टी ने बना रखा है कि बिल्कुल आंख के सामने घटित हो रही घटनाएं इसके नेतृत्व को दिखाई नहीं देतीं, या उनकी मनमानी व्याख्याएं करके यह अपने कैडर या जनाधार के सामने पेश कर देता है। 1991 में पटना में तिसखोरा जनसंहार हुआ था, जिसमें कुम्हार और चमार बिरादरी के पंद्रह गरीब किसान और खेतमजदूर मारे गए थे। इस घटना में तब लालू यादव के करीब जाने की कोशिश कर रहे कांग्रेसी नेता रामलखन सिंह यादव का नाम अखबारों में खुलेआम लिया जा रहा था। सीपीएम पोलिट ब्यूरो ने इस घटना की जांच की जिम्मेदारी अपने दो युवा नेताओं प्रकाश करात और सीताराम येचुरी को सौंपी थी। मैं 'लोकलहर' में इस रिपोर्ट के अंश पढ़कर दंग था, जिसमें कहां गया था कि माले के लोग इस जनसंहार में रामलखन यादव का नाम सिर्फ इसलिए ले रहे हैं कि वे कांग्रेस में रहते हुए मंडल संस्तुतियों के पक्षधर हैं।

मुझे पक्का यकीन है कि सोवियत संघ के फर्जी तामझाम की तरह यह पार्टी भी भारत के वामपंथी आंदोलन के लिए बड़ी खतरनाक भूमिका निभाने जा रही है। देर-सबेर बाकी के दो राज्यों की तरह प. बंगाल में भी इसकी सरकार ढोल बजाकर जाएगी, लेकिन इसका धक्का भारत के वाम आंदोलन को कुछ यूं लगेगा, जैसे अबततक इसी ने यहां इस आंदोलन की धर्म ध्वजा थाम रखी हो।

संतोष की बात सिर्फ एक है कि आजकल डीडी कोसांबी को पढ़ना हो रहा है- और उन्हीं पर कुछ लिखना भी। अगर भारत में श्रीनिवास रामानुजन जैसे दो-चार आधुनिक जीनियसों की सूची आपको बनानी हो तो इसमें एक नाम कोसांबी का भी शामिल करना न भूलिएगा। क्या कमाल का विषय है गणित और क्या कमाल के आदमी हैं कोसांबी, जो यहां से अर्जित दृष्टि को प्राचीन भारतीय इतिहास की गुत्थियां सुलझाने में कुछ यूं आजमाते हैं कि डैन ब्राउन जैसे कोड-क्रैकर फिक्शन राइटर पानी भरें। आज ही समकालीन जनमत के लिए कोसांबी पर डेढ़ हजार शब्दों का एक पीस लिखा। उसका सार-संक्षेप कल यहां देना चाहूंगा, बशर्ते आपको अच्छा लगे!

4 comments:

अभय तिवारी said...

कोसांबी के लेख का स्वागत है.. आने दीजिये.. इसके अलावा.. सत्तर के दशक में कलकत्ता में नक्सलबाड़ी आन्दोलन का सिं शं राय ने जिस तरह दमन किया था.. और हजारों नौजवानों की हत्या की गई थी.. उसमें माकपा की क्या भूमिका रही थी.. उस पर भी कुछ लिखिये..

Srijan Shilpi said...

आपकी मन:स्थिति जानी। सत्य को समझने के लिए जो पहले से किसी रास्ते को सही मानकर आगे बढ़ता है उसे कभी न कभी मोहभंग होना तय है। जिसके लिए अपना स्वार्थ, अपनी शक्ति और अपना सुख ही मकसद हो उसके लिए न्याय और नैतिकता के कोई मायने नहीं।

आप कौशांबी को पढ़ने में लगे हैं, यह जानकर अच्छा लगा। उन पर आपके लेख का इंतजार है।

Avinash Das said...

ये अच्‍छा लिखा कि नयी बात नहीं लिख रहा। गुंडागर्दी सीपीएम की फितरत है- जो नक्‍सलबाड़ी से लेकर नंदीग्राम तक जारी है।

अनुनाद सिंह said...

यही बात तो अपने लौह पुरुष भी कह रहे हैं।

कम्युनिस्टों ने भारत के साथ युद्ध का बिगुल बजा दिया है।
CPI-M has declared war on India: Advani
http://www.rediff.com/news/2007/nov/13nandi12.htm