Friday, July 13, 2007

पॉटर से पटी कैसे

कुछ तो मेरे साथ पसंद की मुश्किल है। मेरे सारे मित्र क्लास की पसंद वाले हैं और लिखने-पढ़ने में उनके जैसा या उनके करीब होना मेरी मजबूरी है। लेकिन यह पालन-पोषण की समस्या हो या कुछ और, मेरी अपनी पसंद अक्सर मास की, यानी सड़कछाप ही रही है। कभी-कभी लह जाता है तो उसी में से कुछ काम की चीज निकल आती है, नहीं लहता तो भी इतना मजा आ ही गया होता है कि पैसा तर जाए। हैरी पॉटर सीरीज के साथ अपने जुड़ाव को भी मैं इसी तरह लेता हूं।

इस किताब के हल्ले की जानकारी मुझे ज्यादा पहले नहीं, 2003 के अंत या 2004 की शुरुआत में हुई, जब सीरीज की शायद चौथी किताब और तीसरी फिल्म आने वाली थी। उस समय तक हिंदी में सीरीज की पहली फिल्म उपलब्ध थी, बच्चे के लिए मैं उसे ले आया। बहुत सिर-पैर समझ में नहीं आया लेकिन बच्चों के लिए बनने वाली भयानक हिंसक हॉलीवुड़ी फिल्मों से कुछ अलग किस्म का ऐक्शन और एक कमोबेश तार्किक कहानी खुद में इस फिल्म की बड़ी बात थी। इसके बाद तीसरी फिल्म हॉल में देखी, दूसरी को सीडी पर। फिर साल-साल भर के अंतर पर चौथे, पांचवें और छठें खंड की किताबें खरीदकर लाया।

ये तीनों किताबें जरूरत से ज्यादा मोटी हैं। एक सुपरस्टार बन गए लेखक की प्रतिष्ठा को पूरा चूस लेने के लिए और प्रोमोशन वगैरह का पूरा खर्चा शुरू में ही निकाल लेने के लिए एक खंड की दस पौंड (कोई आठ सौ रुपये) के लगभग प्राइसिंग प्रकाशकों को जरूरी लगी होगी। इसके लिए किताब में कम से कम छह-सात सौ पेज होना अपरिहार्य बताया गया होगा ( पांचवां खंड तो आठ सौ पेज का है)। इतनी फूली हुई और बचकाना ऐक्शन से भरी किताबें मुझे भला क्यों अच्छी लगीं, सोचने पर खीझ होती है।

दरअसल सारे फुलाव के बावजूद इन्हें पढ़ते हुए आप इनसे खुद का एक जुड़ाव महसूस करते हैं- या आपको एतराज हो तो कह दूं कि मैं इनसे जुड़ाव महसूस करता रहा। एक अच्छी फिक्शन-लेखक की तरह जेके राउलिंग अपने समय के भावबोध के साथ पूरी गहराई से जुड़ी हुई हैं और यही उनकी नाटकीयता को कोरे कौतुक में बदल जाने से रोक लेता है। आपको बुरा न लगे तो ऐसी एक-दो बानगी यहां पेश की जा सकती है।

पहले खंड (हैरी पॉटर ऐंड द फिलॉस्फर्स स्टोन) में एक मिरर ऑफ एरिजेड (शहिवाख् का दर्पण) है। इसमें देखने पर आपको अपनी सबसे गहरी ख्वाहिश साकार होती नजर आती है। (फिल्म में यह दर्पण सिर्फ क्लाइमेक्स में आता है और इसके संदर्भ बिल्कुल समझ में नहीं आते ।) संयोगवश दर्पण वाले कमरे में पहुंच गए अनाथ हैरी को इसमें अपने माता-पिता दिखते हैं और उनके बीच में हंसता-खिलखिलाता वह खुद नजर आता है। उसे यह दर्पण देखने का नशा सा हो जाता है और छुप-छुपाकर बराबर वहां पहुंचने लगता है तो एक दिन प्रिंसिपल ऐल्बस डंबलडोर वहां आते हैं और उसे बताते हैं कि अबतक न जाने कितने लोग यह दर्पण देख-देखकर पागल हो चुके हैं, क्योंकि इससे सिर्फ इंसान की गहरी से गहरी ख्वाहिशें ठोस होती जाती हैं- उसे हासिल कुछ नहीं होता।

एक पलटे हुए शाप से अपने शरीर समेत अपनी सारी शक्तियां खो चुका खलनायक वॉल्डेमॉर्ट किसी तरह फिलॉस्फर्स स्टोन हथियाने की कोशिश में जुटा है ताकि उसकी मदद से दुबारा जिंदा हो सके। इसके लिए वह हॉगवर्ट्स स्कूल के सबसे लिजलिजे, कुंठित शिक्षक को अपना औजार बनाता है। डंबलडोर ने इस पत्थर को कई बाधाओं के बाद शहिवाख् के दर्पण के पास छुपा रखा है- इस शर्त के साथ कि यह खोजने वाले को तुरंत मिल जाए लेकिन कब्जा करने वाले को किसी भी सूरत में न मिले। क्लाइमेक्स के वक्त हैरी पॉटर और उक्त शिक्षक के दूसरे चेहरे के रूप में उसके भीतर मौजूद वॉल्डेमॉर्ट दोनों शहिवाख् के दर्पण के सामने खड़े हैं, दोनों को दर्पण में पारस पत्थर अपने पास नजर आ रहा है, लेकिन इस समय तक पत्थर हैरी की जेब में आ गया है, और वॉल्डेमॉर्ट के पास अपना आपा खोकर हैरी पर झपट पड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

किताब के अंत में हैरी डंबलडोर से पूछता है कि आखिर वॉल्डेमॉर्ट उसको छूते ही इतना भुरभुरा कैसे हो गया, तो डंबलडोर बताते हैं- 'तुम्हारे पास उससे बड़ी एक ताकत है हैरी। हर अत्याचारी और तानाशाह इसे बिल्कुल नहीं समझ पाता और भीतर ही भीतर इससे बुरी तरह डरता है। यह प्यार की ताकत है हैरी, जो तुम्हारे पास है। '

राउलिंग की सारी जादुई युक्तियां आधुनिक समस्याओं को संबोधित हैं। तीसरे खंड में आए डिमेंटर्स- सड़ी लाशों जैसी शक्ल वाली शैतानी शक्तियां, जो किसी भी व्यक्ति को दिखते ही उसकी सारी खुशियां मार देती हैं और कोई रोक न हो तो उसके होंठ चूमकर उसकी आत्मा चूस लेती हैं - डिप्रेशन और इसके करीब पड़ने वाली कुछ अन्य असाध्य मनोवैज्ञानिक बीमारियों को प्रतीकित करते लगते हैं। इनका सामना करने के लिए आपको अपने सबसे ज्यादा खुशियों वाले क्षण बहुत ही शिद्दत से याद करने होते हैं और पेट्रोनॉस मंत्र पढ़ना होता है, जिसका मतलब होता है- मेरे पितृगण मेरी रक्षा करें (अनूदित पुस्तक में इसके लिए पितृदेव संरक्षणम् का इस्तेमाल किया गया है)। हैरी पॉटर के लिए यह काम बहुत कठिन है क्योंकि वह कुछ दिनों का था, तभी उसके मां-बाप मार दिए गए थे। महानगरीय बच्चों में- और बड़ों में भी- डिप्रेशन जिस तरह घर जमाता जा रहा है, उससे जूझने की कला सीखने में इस बीमारी से खुद लड़ चुकी राउलिंग का साहित्य मददगार लगता है।

डिमेंटरों से लड़ने की कला हैरी पॉटर को सिखाने वाला शिक्षक लूपिन खुद एक नर-भेड़िया (वेयरवॉल्फ) है। घरेलू यौन हिंसा या साइकोपैथ किस्म के यौन दुराचारियों का शिकार हुए- और खुद भी बीच-बीच में ऐसी ही मनोविकृतियों को अपने ऊपर हावी होते हुए महसूस करने वाले- व्यक्ति के अंतर्द्वंद्व और असुरक्षाएं उसके भीतर जाहिर होती हैं। हैरी पॉटर सीरीज की फिल्मों में सिर्फ तीसरी- हैरी पॉटर ऐंड द प्रिजनर ऑफ अजकाबान- मुझे पसंद है और इसमें जिस अभिनेता ने (नाम ध्यान नहीं) लूपिन का रोल किया है, उसकी अभिनय प्रतिभा का मैं कायल हूं। डिमेंटरों का सामना करने से पहले लूपिन हैरी और उसकी कक्षा के अन्य बच्चों को एक जादुई युक्ति के सामने खड़ा करता है जो आपके सबसे बड़े भय को आपके सामने मूर्तिमान कर देती है। भय से लड़ने का मंत्र रिडिक्कुलस (हास्य-रूपांतरण) है- यानी पूरी शक्ति लगाकर आप अपने सबसे बड़े भय को हास्यास्पद मानने में जुट जाएं तो भय का नाश निश्चित है- बशर्ते वह भय वास्तविक नहीं, किसी भ्रम की उपज हो।

राउलिंग की ऐसी अनेक जादुई युक्तियां हैं, जिन्हें बदली हुई शब्दावली में हम मनोचिकित्सकीय युक्तियां भी कह सकते हैं। पांचवें खंड में अपने दिमाग को किसी बाहरी हस्तक्षेप से पूरी तरह मुक्त रखने और किसी अन्य व्यक्ति के दिमाग में घुस जाने की दो युक्तियां- ओक्लूमेंसी और लेजिलिमेंसी- हैरी पॉटर को सिखाने का आदेश एक ऐसे शिक्षक को दिया गया है जिससे हैरी पॉटर के पिता की दुश्मनी थी। हैरी लाख कोशिश के बाद भी ये युक्तियां सीख नहीं पाता, बल्कि सीखने को राजी ही नहीं होता और इसके चलते बाद में उसे अपने गॉडफादर सिरियस ब्लैक को खोना पड़ता है।

मुझे ये दोनों युक्तियां बड़े काम की लगीं। शायद भारतीय योगपद्धति में इससे मिलती-जुलती कुछ यौगिक युक्तियां उपलब्ध हों। किसी दूसरे व्यक्ति के दिमाग में घुस जाना, यानी परकाया प्रवेश एक मिथकीय बात लगती है, हालांकि सम्मोहन के जानकार लोग एक हद तक यह काम करते ही हैं। लेकिन जहां तक सवाल अपने दिमाग को बाहरी प्रभावों से मुक्त रखने का है तो शवासन के वक्त अपना दिमाग पूरी तरह खाली करने और पूर्णतया प्रभावमुक्त रखने की युक्ति सिद्ध लोग बाकायदा सिखाते हैं। यह काम अत्यंत कठिन है, इसीलिए किसी आम आदमी को सबसे आसान लगने वाला शवासन सभी आसनों में सबसे कठिन माना जाता है। परकाया प्रवेश न सही, शवासन ही अगर अच्छे से सीखा जा सके तो शायद बहुत सारी मनोशारीरिक बीमारियों से हम बच जाएं।

बहरहाल, यह सब कहने के पीछे मेरा मकसद इस पुस्तक श्रृंखला को लेकर अपनी पसंद को जायज ठहराना भर है। वरना हैरी पॉटर की किताबों और फिल्मों का प्रोमोशन पहले ही क्या कोई कम हो रखा है जो इस शामिल बाजे में मैं भी अपना नाम जुड़वाने को उतावला हो रहा हूं?

5 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बहुत ही बढिया विश्लेषण है. इस क्रम को और आगे बढाइये.

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया!!

Nitin Bagla said...

बढिया लिखा।

अभय तिवारी said...

आप के हैरी पॉटर पर लिखने से मैं इतना दुखी हूँ कि बिना पोस्ट पढ़े टिपिया रहा हूँ.. ये दुख प्रगट करने के बाद अपने पूर्वाग्रह को आपके विचारों से टकराने दूँगा..

अभय तिवारी said...

चन्दू भाई आपने काफ़ी निर्मल मन से इस सीरीज़ का विश्लेषण किया है.. फिर भी मुझे लगता है कि आप थोड़ा भावुक हो रहे हैं..
मैंने चार साल तक बच्चों का सीरियल सोनपरी लिखा है.. और किस तरह से ये सारे हथकण्डे बच्चों के कच्चे दिमाग को प्रभावित करने में अपनाए जाते हैं खूब समझता हूँ..
भयंकर बाज़ारीकरण के बावजूद हर कलाकार, लेखक अपनी कृति में कुछ सच्ची बात कह डालना चाहता है.. राउलिंग भी एक करोड़पति होने के पहले और बाद और साथ साथ एक रचनाकार भी हैं..
आप बधाई के पात्र इसलिए हैं कि आप ने उन बातों को पकड़ लिया जो शायद राउलिंग को अपने कृतित्व में सबसे सार्थक लगती होंगी.. ऐसे ही कुछ बिन्दु पकड़ कर हम भी मन को समझाया करते थे..कि एक्दमै गाली खाएं लायक काम नहीं कर रहे हैं..
किताब और फ़िल्म का जो बाज़ारी पहलू है उस को नज़र अंदाज़ मत कीजिए.. आपके ब्लॉग का नाम ही यही है...