नारद पर मौजूद ब्लॉग जगत भोजपुरी भाषा से इतना परिचित हो चुका है कि हर किसी के लेखन में इसका कुछ न कुछ पुट दिखाई देने लगा है। समय आ गया है कि भोजपुरी में लिखी जा रही अच्छी रचनाओं को इस नई दुनिया में इज्जत से जगह दी जाए। बनारस के प्रकांड पंडितों के लिए धर्म के शायद वही अर्थ होते हों जो पूरे भारत में होने लगे हैं लेकिन एक ठेठ मिजाज के बनारसी के लिए और चीजों के अलावा धर्म का भी एक बनारसी रंग है, जिसमें देवगण भी गंगाघाट पर भांग छानते नजर आ सकते हैं। वैदिक युग का अवशेष कहे जा सकने वाले धर्म के इसी बनारसी रंग के चलते इस शहर के केंद्रीय आस्था स्थलों में एक समझे जाने वाले संकटमोचन मंदिर पर हुए बमविस्फोट के बाद भी वहां दंगे नहीं हुए। उल्टे हिंदुओं-मुसलमानों के बीच इस घटना के बाद ऐसा गहरा एका कायम हुआ, जिसकी मिसाल अन्यत्र नहीं मिलती।
हिंदी और भोजपुरी के महत्वपूर्ण रचनाकार प्रकाश उदय की इस कविता में शुरू में शंकर जी की पारिवारिक मुश्किलों की चर्चा है, जिनमें और चीजों के अलावा असाढ़ और सावन में हर सोमवार को भक्तों द्वारा कराया जाने वाला जबर्दस्त स्नान भी शामिल है। उधर विश्वनाथ मंदिर से थोड़ी ही दूर पर मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद में अल्लाह की मुश्किलें भी कम नहीं हैं, जिनके सिर पर माइक बांधकर हर रोज और खासकर जुम्मे के दिन श्रद्धालु जन अपार गदर काटते हैं। दोनों ईश्वरों के बीच चले इस संवाद का आनंद लें-
जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े
आवत बाटे सावन सुरू होई नहवावन
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े
एगो लांगा लेखा देह राखें राखी में लपेट
लोग धो-धा के उघारे प परल बाड़े
एते बरखा के मारे गंगा मारें धारे-धारे
जट पावें ना संभारे होत जाले जा किनारे
'सिव-सिव हो दोहाई मुंह मारीं सेवकाई'
उहो देवे प रिजाइने अड़ल बाड़े
बाटे बड़ी-बड़ी फेर बाकी सबका से ढेर
हई कलसा के छेद देखा टपकल फेर
'गउरा धउरा हो दोहाई' आ त- 'ढेर ना चोन्हाईं-
अबहीं छोटका क धोए के धयल बाटे'
-'बाड़ू ढेर गिर्हिथिन, खाली लइके क फिकिर '
-'बाड़ा बापे बड़ नीक, खाली अपने जिकिर'
-'बाड़ू पथरे क बेटी'-'बाड़ा जहरे नरेटी'
बात बाते-घाते बढ़त बढ़ल बाटे
सुनि बगल के हल्ला ज्ञानवापी में से अल्ला
पूछें- 'भइल का ए भोला, महकइला जा मोहल्ला
एगो माइक बाटे माथे एगो तहनी के साथे
भांग-बूटी-गांजा फेरू का घटल बाटे'
दूनो जना के भेंटाइल माने दुख दोहराइल
ई नहाने नकुआइल ऊ अजाने अंउजाइल
इनके लागेला सोमार उनके जुम्मा के बोखार
दुख कहले-सुनल से घटल बाटे
भोला जाड़े में असाढ़े से परल बाड़े
4 comments:
चंदू जी बाह
मजा आ गैल. अइसने काम के जरूरत बा.
दुख कहले-सुनल से घटल बाटे बहुत खूब!
ई नहाने नकुआइल ऊ अजाने अंउजाइल
इनके लागेला सोमार उनके जुम्मा के बोखार
भाई जी, कड़ी बढे़ त बन्हिया रही. बाकीर बा मजेदार. अइसन हमनी के ना सोच सकत रहनी ह सन.ई त पूरा सांप्रदायिक सौहार्दवाला मामला बा. तनी आउर होखे कभू. ई दूनो लोग आउर का सोचत बाडे़ इहो पाता चले.
बहुत सुंदर.
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