काले सलेटी आकाश के बीचो बीच
कलौंछ कत्थई लाल अँधेरा फेंकता
चाक जितना बड़ा कटे चुकन्दर जैसा सूरज
गीले चिपचिपे ग्रह का बहुत लम्बा बैंगनी सियाह दिन
देख रहे हो तुम उसे यहाँ से
देख रहा है वह तुम्हे वहाँ से
रह गये तुम रह गये भाई इसी इत्मीनान में कि
बीच में कसे हैं इतने सारे प्रकाश वर्ष
जान नहीं पाये तुम
ना ही तुम्हारे साथ खड़ा मैं-
कब आया कब बीत गया
इस ग्रह पर भी बैंगनी सियाह दिन
खीजते रहे यहाँ हम ठोंकते-रगड़ते अपना माथा
खोजते रहे हबड़-धबड़
मेज़ की दराज़ों में डिस्पिरिन-सेरिडॉन
पता नहीं चला कि कब हुआ अपना भी सूरज
चाक से बड़ा चुकन्दर सा कत्थई कलौंछ
मैंने कहा सुनते हो भाई, ओ दूरबीन वाले
बचे हैं अब यहाँ माथा रगड़ते सिर्फ़ हम दो जन
बाकी सब गिर गये कत्थई लाल अँधेरे में
पता नहीं चला कि
चुपचाप आये एक और ग्रह के बोझ से
कब हुई पृथ्वी इतनी भारी
कि कक्षा से टूट कर गिरी चली जा रही है
अनन्त अँधेरी रात में
नीचे, नीचे.. .. और नीचे
कलौंछ कत्थई लाल अँधेरा फेंकता
चाक जितना बड़ा कटे चुकन्दर जैसा सूरज
गीले चिपचिपे ग्रह का बहुत लम्बा बैंगनी सियाह दिन
देख रहे हो तुम उसे यहाँ से
देख रहा है वह तुम्हे वहाँ से
रह गये तुम रह गये भाई इसी इत्मीनान में कि
बीच में कसे हैं इतने सारे प्रकाश वर्ष
जान नहीं पाये तुम
ना ही तुम्हारे साथ खड़ा मैं-
कब आया कब बीत गया
इस ग्रह पर भी बैंगनी सियाह दिन
खीजते रहे यहाँ हम ठोंकते-रगड़ते अपना माथा
खोजते रहे हबड़-धबड़
मेज़ की दराज़ों में डिस्पिरिन-सेरिडॉन
पता नहीं चला कि कब हुआ अपना भी सूरज
चाक से बड़ा चुकन्दर सा कत्थई कलौंछ
मैंने कहा सुनते हो भाई, ओ दूरबीन वाले
बचे हैं अब यहाँ माथा रगड़ते सिर्फ़ हम दो जन
बाकी सब गिर गये कत्थई लाल अँधेरे में
पता नहीं चला कि
चुपचाप आये एक और ग्रह के बोझ से
कब हुई पृथ्वी इतनी भारी
कि कक्षा से टूट कर गिरी चली जा रही है
अनन्त अँधेरी रात में
नीचे, नीचे.. .. और नीचे
6 comments:
good one
स्वागत चंद्रभूषण जी, आज अभय जी के चिठ्ठे पर आपके आने की पदचाप सुनी. आपकी रचनायें पढ़ कर और भी अधिक अच्छा लगा
shri Dhurvirodhi
Aapke liye ek suchna--chandrabhushan ka naam mishra bhi hai.ab aapko adhik aashwasti milegi.Ab tak aap jaan gaye hoge ki Bodhi darasl Akhilesh Mishra hai jise Abhay Tiwari godi mein utha rahe hain.Ab doosri godi mein Chandrabhooshan Mishra ko uthaya.Dhurvirodhiji aap kya hai--Pandey,Dubey,Chaubey,Triwedi,Dwivedi...isi prakar ke kuchh?
Pratibhawan Pandit kavi sawdhan ho jayen ab abhay tiwari dwara aapko prastut kiye jaane ki sambhawanayein kam hai kyonki ab unki dono godiyan bhar chuki hain.Jagah milne par paas diya jaayega.
प्रिय साइमा.. आप क्यों जातिवाद फैलाने पर आमादा हैं..? क्या तक्लीफ़ है आपकी ? बयान करें अगर कर सका तो मदद करूँगा ..
Aapne achha pahchana.Aap jo faila rahe hain use aap hi nam de sakte the jo ki aapne de diya.Bhagwan kasam main to bas aapke koshishon ko ek sequence mein laga rahi thi.Dukh pahuncha to nahin bolungi.Bolun ya nahin instruct karein.(Man ne ya na man ne ka adhikar mera to rahega na).Aap mardon ko gusa bahut jaldi aajata hai.Is par pratyaksha ne kuchh lika?Maneesha ka to maloom nahin.Karwat ek achha blog tha Jyotiben ka lekin ab patanahin band hi hai.
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