'वूहान च्या योऊ'
'दीए में तेल जरा और बढ़ाओ वूहान'
शाम आठ बजे एक-दूजे को आवाज देता
लड़ रहा है उत्तर-पूरब में वह अकुलाया शहर
डिब्बाबंद, पूरी दुनिया से छिनगाया शहर
एक नई-नकोर, लाइलाज महामारी से
जिसका सिर-पैर अभी डॉक्टर भी नहीं जानते
शाम आठ बजे एक-दूजे को आवाज देता
लड़ रहा है उत्तर-पूरब में वह अकुलाया शहर
डिब्बाबंद, पूरी दुनिया से छिनगाया शहर
एक नई-नकोर, लाइलाज महामारी से
जिसका सिर-पैर अभी डॉक्टर भी नहीं जानते
हम भी लड़ रहे हैं एक लंबी, कठिन लड़ाई
कुछ और खौफनाक अपनी ही एक बीमारी से
जो हमीं से निकल कर हम पर राज कर रही है
रोज हमारे आगे जो एक शत्रु खड़ा करती है
और हमारे मन का एक हिस्सा बंजर कर देती है
रोज लोग सोचते हैं, इतने शत्रुओं से घिरे हम
आखिर बचे कैसे रह गए इतने हजार साल!
कुछ और खौफनाक अपनी ही एक बीमारी से
जो हमीं से निकल कर हम पर राज कर रही है
रोज हमारे आगे जो एक शत्रु खड़ा करती है
और हमारे मन का एक हिस्सा बंजर कर देती है
रोज लोग सोचते हैं, इतने शत्रुओं से घिरे हम
आखिर बचे कैसे रह गए इतने हजार साल!
गलियों चौबारों में, टीवी पर, अखबारों से
बिंदास झांकते हैं हाथ जोड़े चटक चतुर चेहरे
मुस्कुराते हुए समझाते हैं, देश खतरे में है जी
फिर बेझिझक हर तरफ बारूद बिछाने लगते हैं
काश, रोज शाम ढले हम भी खिड़कियां खोलकर
इस कठिन लड़ाई में एक-दूजे का हौसला बढ़ाते,
पर मन का वायरस क्या कभी हमें यह करने देगा?
बिंदास झांकते हैं हाथ जोड़े चटक चतुर चेहरे
मुस्कुराते हुए समझाते हैं, देश खतरे में है जी
फिर बेझिझक हर तरफ बारूद बिछाने लगते हैं
काश, रोज शाम ढले हम भी खिड़कियां खोलकर
इस कठिन लड़ाई में एक-दूजे का हौसला बढ़ाते,
पर मन का वायरस क्या कभी हमें यह करने देगा?
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