Wednesday, August 29, 2018

रतजगे की दास्तान

1.
कैसे सो रहे होगे कृष्णाजी, जवान बेटे की मौत के बाद
फोन पर तुमसे बात करने की हिम्मत अब तक नहीं जुटा पाया
घटना की वजह तो खैर बातचीत के बाद भी नहीं पूछ पाऊंगा
बीतती हुई रात में नींद, सपने और रतजगे के बीच
क्या सोचती होगी सात गोलियों से बिंधकर निकले सुफियान की बहू
शायद यही कि जिस सैलून से बच्चों का गुजारा होता है
वह अगला चुनाव बीतने तक सलामत रह पाएगा या नहीं
कुछ भी कहना, अच्छी धज में कहना, कविता में कहना
मेरे लिए कितना मानीखेज होगा, तुम्हीं लोग बताओ
जब इतनी सी जद में भी कुछ साफ-सुथरा देखना मुझसे नहीं हो पा रहा
2.
उमस से लदी अगस्त की रातें वैसे भी सोने कहां देती हैं
और अगर तुम दो-चार दिनों के लिए परदेस में हो
फिर तो मजे देखो सीपी की तरह हर ओर से घेरे मटमैले अगस्त के
अचानक नींद टूटी बाहर बेतरह मच रहे किसी शोर से
इतना हल्ला क्यों? कोई जुलूस निकला है, या रेड पड़ गई है?
हड़बड़ा कर बाहर निकला तो तड़ातड़ पड़ती बूंदें दिखीं
सोडियम लैंप की पीली रोशनी में भीगते दिखे होटल के घने पेड़
पीछे विशाल अंधियारा तट, आगे कमर तक चढ़े गन्ने के खेत
और समुद्र के स्वप्न देखती बया जैसी चिड़ियों के घोंसले
जिनमें यहां की फुरसत के मुताबिक दो-दो कोठे हुए करते हैं
घड़ी देखी तो साढ़े चार बज रहे थे, सुबह होने को ही है
लेकिन धत्तेरे की, साथ जुड़ा है डेढ़ घंटे का टाइम लैग
यह मॉरीशस है मेरे मालिक, अभी तो यहां रात के तीन बजे हैं
चुपचाप उठंगे हुए झेलो कमसकम ढाई घंटे का थकान भरा रतजगा
3.
गिरगिट एक सुंदर जानवर है, रंग बदलना उसकी जरूरत है
लेकिन इंसान को अपनी जेहनियत में भी ऐसा क्यों होना चाहिए
हां, छुपकर रहना या खुद को ज्यादा जाहिर न करना
एक अलग चीज है, जो हमेशा से मुझे खींचती रही है
जंगल में अपने धब्बों या धारियों या चित्तियों के साथ
खुद को जरा भी बदले बगैर अदृश्य रहना, यही मेरा काम्य है
इसलिए नहीं कि घात लगाकर पेट भर खाऊं और चैन से सोऊं
बल्कि इसलिए कि इतने विशाल तारों, ग्रहों-उपग्रहों के बीच
सब कुछ भोगने और देखने की जो सलाहियत
मुझे बख्शी गई है, वह सारी की सारी व्यर्थ न चली जाए
तो किनारे खड़ा होकर नहीं, तमाशा हमेशा घुसकर देखता हूं
बाहर जब भगदड़ मची हो तब भी किसी चतुर बच्चे की तरह
जहां-तहां पड़ी चीजों और भागती टांगों के बीच से निकल जाना
यह मेरी नौकरी नहीं, मिजाज है और यही मुझे अच्छा लगता है
4.
और उस दारुण दुख का क्या, जो यहां तक मेरे हिस्से आया है?
बहुत सारे मुझ जैसे लोग इसकी भरपाई सुख से करना चाहते हैं
मेरे लिए तो बस इतना कि दुख मुझे सीपी से बाहर जाना सिखाता है
‘मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए, मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो’
यह गाना मैं मन ही मन मुकेश की दर्दीली आवाज में नहीं
किशोर कुमार की ओडली-ओडली-ओए के साथ गाता हूं
खासकर अभी, इस टेढ़ी-मेढ़ी बरसाती रात में साढ़े तीन बजे
जब बाहर अंटार्कटिका से सीधे जाकर जुड़ा स्याही का समंदर
ठहाक-ठहाक की तालों के साथ पहले ही सुर में सुर मिला रहा है
5.
बस थोड़ी ही देर में अगस्त की एक और सुबह सामने होगी
वही अगस्त, जिसमें 71 साल पहले हिंदुस्तान से लेकर मॉरीशस तक
बंट गए थे न जाने कितने मंझे हुए मछेरे नूरुद्दीन और विनय कुमार
जिन्हें कुछ ही घंटे पहले मैंने साथ-साथ समंदर में कटिया डाले देखा था
वही मछली का कांटा अभी मेरे हलक में फंस गया है कृष्णाजी
बात तो तुमसे नहीं कर पाऊंगा, पर लिखकर इतना बोलूंगा
कि कलेजा फाड़ देने वाली इस तकलीफ में भी तुम जब-तब
सुफियान के बच्चों का हाल-चाल लेने जरूर जाना
इतने दिन हमने साथ में काम किया है तो जानते हैं
कि गले से लेकर दिल तक चुभा हुआ कांटा इससे निकले, न निकले
पर आराम जो भी थोड़ा-बहुत आना है, इसी तरह आएगा

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