Saturday, May 4, 2013

रिश्तेदारियां

मेरा हुलिया देखकर ज्यादातर लोग मुझे मामूली आदमी समझने की गलती कर बैठते हैं। आप तो ऐसा न करें। आम तौर पर मैं बताता नहीं, लेकिन मेरी रिश्तेदारी देश-दुनिया के  कई रसूखदार लोगों से है। गोरखपुर का एक क्रिमिनल मास्टरमाइंड, जो बाद में यूपी का उच्च शिक्षा मंत्री बना, मेरे सगे जीजा का फुफेरा भाई है। पहले मैं अपने इस कनेक्शन का जिक्र चलते-चलते कर दिया करता था। अब नहीं करता तो इसकी दो वजहें हैं। एक तो यूपी का क्रिमिनल कनेक्शन दिल्ली में ज्यादा काम नहीं आता। यहां सबका कोई न कोई लिंक है, किसका नाम लेकर किसे धमकाऊंगा? दूसरे, अपनी जिस इकलौती बहन के जरिए मेरा यह रिश्ता बना था उसे गुजरे इकतीस साल हो चुके हैं। लगातार आधे पेट खाकर और सालोंसाल जमा हुई भूख से जन्मी इतनी सारी बीमारियां बिना किसी दवाई के झेलकर चार जन्मों की तरह काटे थे उसने अपनी शादी के चार साल। उसी के नाम पर किसी के साथ, और फिर किसी और के साथ जुड़े रिश्ते को कितना वजन दे सकता हूं?

गांव के लोग पढ़े-लिखों के बीच अपना और अपने साथ-साथ मेरा भी रिश्ता राहुल सांकृत्यायन से जोड़ लेते हैं। बताते हैं- हमारे ही खानदान की एक शाखा छिटक कर चक्रधरपुर में जा बसी थी। यह गांव हमारे मनियारपुर से कोई बीस मील दूर आजमगढ़ जिले में ही पड़ता है, लेकिन इस रिश्ते की हकीकत पर मुझे हमेशा संदेह रहा। जो भी हो, हर रोज कच्ची-पक्की दारू पीकर पिछले साल लिवोसिरोसिस से मरे मेरे चचेरे भाई राहुल मिश्रा का नाम राहुल सांकृत्यायन पर ही रखा गया था। कहने को पिछले दस वर्षों से मेरा बेटा भी खुद को राहुल कहता है, लेकिन इसकी प्रेरणा उसे शाहरुख खान के निभाए किसी फिल्मी चरित्र से मिली थी। जहां तक राहुल जी से मेरे असल रिश्ते का सवाल है तो वह कुछ और ही ढंग का है। उनकी किताबें पढ़कर मैंने जाना कि मेरी रिश्तेदारियों का दायरा बहुत बड़ा है - हिमालय, हिंदूकुश, काकेशस पहाड़ों के पार ये मध्य एशिया तक फैली हैं।

मेरे दादा वासुदेव की उम्र के जोसफ स्टालिन हों, या उनके भी दादा काली प्रसाद की उम्र के अब्राहम लिंकन- दुनिया भर में पाए जाने वाले सारे काकेशियन मेरे सगे-संबंधी हैं। दागिस्तान देश के रहने वाले मेरे बाप की उम्र के रसूल हमजातोव तो बाद में मेरे सगों से भी ज्यादा सगे निकले। जब भी खबर सुनता हूं कि रूस की चेचेन बगावत का गढ़ अभी दागिस्तान ही हो गया है, मन में हचका सा लगता है कि रात की मुठभेड़ों के बाद वहां बर्फ पर पड़ी लाशों में त्सादासा गांव के हमजात खानदान का कोई जवान भी शामिल न हो। मैं आपकी मुस्कुराहट का मर्म समझ रहा हूं। आप शायद कहना चाहते हैं कि काकेशियन नस्ल अगर अटलांटिक पार करके लिंकन तक जाती है तो बीच में आर्यन रेस बनकर यह हिटलर तक भी जरूर पहुंचती होगी।

चलिए, हिटलर को मैं अपने रिश्तेदारों में नहीं मानता। जब आमोस ओज का काम हिटलर के बगैर चल जाता है- जिनके सगे उसकी सनक के शिकार हुए- तो मेरा भी चल जाएगा। आमोस जर्मनों, अरबों और यहूदियों के नहीं, इंसानों के किस्से लिखते हैं। फलस्तीन-इजराइल टकराव को धर्म-संस्कृति का नहीं, जमीन-जायदाद का झगड़ा मानते हैं। दुनियावी मामलों में इस सपाट समझ के साझे के अलावा मेरा एक रिश्ता उनसे चुप्पी का भी है। हम दोनों ने कम उम्र में अपने रक्त-संबंधियों की खुदकुशी देखी है। असह्य उदासी से भरी उनकी स्याह परछाइयां हमारी लिखाई में डोलती हैं। मैंने हिसाब लगाया है- हिटलर से मेरी दूरी करीब सौ पुश्तों की और आमोस ओज से सवा सौ पुश्तों की है। सिर्फ पचीस पुश्तों के फासले पर एक तरफ कहानियां और दूसरी तरफ इंसानों की चर्बी से बनी मोमबत्तियां रखी हों तो क्या आप अंधेरे में कहानी सुनना ज्यादा पसंद नहीं करेंगे?

और सुनिए, मेरे पास तो इस बात का भी पक्का हिसाब है कि प्रशांत महासागर में पांच-पांच हजार मील के धावे मारने वाली दुनिया की सबसे खतरनाक जिंदा चीज ह्वाइट शार्क महज ढाई लाख पीढ़ी दूर पड़ने वाली मेरी ही रिश्तेदार है। और हिमालय की सबसे ऊंची तलहटी में सिर्फ महीने भर की गर्मियों में खिलकर बर्फ हो जाने वाला दुनिया का सबसे सुंदर और नशीला फूल भी मेरे रिश्ते में पड़ता है, हालांकि उसके और मेरे बीच की दूरी कोई पांच करोड़ पुश्तों की है। बहरहाल, बायोमैथ की इन भूलभुलैयों में आपको भटकाना मेरा मकसद नहीं है। मेरे ज्यादा नजदीकी लोगों के बारे में जानना चाहते हैं तो दिल थामकर बैठिए। पहली बार किसी को बता रहा हूं कि रिश्तेदारी मेरी नेल्सन मंडेला से भी है।

विनी मंडेला का- मैंने क्रांति से ब्याह किया है- पढ़कर ही मैंने अपने लिए इश्क के मायने तराशे, शादी के सपने बुने। राजनीति में ज्यादा दूर नहीं चल पाया, लेकिन जिंदगी में जहां तक हुआ, नेल्सन के ही रास्ते पर  चलने की कोशिश की। अब इसका क्या करें कि जोहानिसबर्ग में क्रांति  संपन्न होने से पहले ही नेल्सन विनी से अलग हो गए और इसके कुछ साल बाद मोजंबीक की क्रांतिकारी ग्राचा मैशेल के साथ रहने लगे। नब्बे से ऊपर की उम्र में बुड्ढे-बुढ़िया जिंदा हैं खुश हैं, इतना मुझे उनके करीब बनाए रखने के लिए काफी है। इधर प्रॉपर्टी को लेकर नेल्सन की लड़कियों की मुकदमेबाजी और विनी के बारे में कई उल्टी-सीधी बातें सुनकर अफसोस जरूर होता है, लेकिन पब्लिक लाइफ में यह सब चलता है।

कृपा करके इस बेलगाम बकबक में वसुधैव कुटुंबकम के लिए कोई गुंजाइश न खोजें। मेरे कुटुंब वालों को अगर इसका पता चल गया कि उस रात दोपहर से ही तड़की हुई भूख में अनवर साहब के साथ आरा की एक मुस्लिम बोर्डिंग में मैंने क्या खाया था, तो वे शायद मुझे वसुधा से ही बाहर निकाल दें। और एक अंतिम बात यह कि मेरे सबसे गहरे रिश्तेदार हैं कॉमरेड रामनरेश राम उर्फ पारस जी, जिन्होंने एक पूरी रात मेरी ऐसी ही बकबक सुनने के बाद मुझमें यह उम्मीद जगाई कि रिश्ते बदल भी सकते हैं। दुनिया से विदा होने के पहले, बिना कुछ बोले, सिर्फ अपने कर्म से मुझे अपनी जमीन का और उससे ज्यादा अपने जमीर का सगा होना सिखा गए, ताकि निहत्था, अकेला और कमजोर होने का डर कभी सताए तो  रिश्तेदारियां दिखाने के लिए चोर-बदमाशों के नाम न गिनाने पड़ें।



4 comments:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

कमाल का लिखते हैं जी.

मनोरमा said...

Bahut Badhiya, maza aa gaya padhkar, bahut saargarvit vyang!

bagi said...

वाह चन्‍द्रभूषण मजा आ गया।

अनूप शुक्ल said...

अद्भुत लगा इसको पढ़ना। कई बार पढने के बाद आज फ़िर से इसे पढ़ा और बहुत अच्छा लगा।