Saturday, May 19, 2012

देवता

कभी मेघ की तरह गरजता है
कभी सूर्य की तरह चमकता है
कभी कांटों भरी झाड़ियों में
सांपों से घिरे केवड़ा फूल की तरह
गमकता है मेरा देवता

दिल दिमाग दोनों एक तरफ रखकर
सिर्फ त्वचा पर उसे महसूस करो
जेठ के जलते पवन की तरह
हनकता है मेरा देवता

उसे पैसा कहूं तो उसकी इज्जत जाती है
उसे पावर कहूं तो मेरी इज्जत जाती है
उसे ग्लैमर कहूं तो सबकी इज्जत जाती है

और इज्जत बचाकर रखूं कोई नाम न दूं
तो एफएम रेडियो के एंकर की तरह
चौबीसो घंटे बेवजह बेबात
सिर चढ़ चहकता है मेरा देवता

कभी देवता से पूछो कि कैसे तुम्हें पूजें
काहे की हवि दें किसका अर्घ्य डालें
तो जवाब की उससे उम्मीद मत करना

मैंने एक बार पूछा और पछताया
देवता तो चुप रहा पुजारियों ने दौड़ाया-
तुम नहीं तुम नहीं तय करेगा वही
कौन उसे पूजे कैसे उसे पूजे
कौन कृपा पाए कौन लात खाए

उनके ऊंचे सुरों बीच बैठा किनारे
ठसकता है मसकता है कसकता है
मेरा देवता

भरी दोपहरी संसद से सटकता है
शाम ढले आईपीएल में अटकता है
सारी-सारी रात सूनी मंडी में मटकता है

इतना सब करके भी आठो पहर
किस विधि से मेरे मन में
भटकता है मेरा देवता
देवता...मेरा देवता




3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

खुद ही अपनी कैद में आवारा हम..

WomanInLove said...

You wrote it so well

azdak said...

वहां नहीं बैठा? नभाटा के दफ्तर में? डी डेवटा?