खामोशी...
एक अलग तरह की खामोशी
जो पहले करीब से गुजरी नहीं थी
और फिर बाईं तरफ से दर्द का रेला उठता है।
एक कुत्ते के भूंकने
एक गिद्ध के पंख फड़फड़ाने
दो अघाए कौओं के आपस में लड़ पड़ने के साथ
अचके में वापस लौटी एक नई जिंदगी की धड़कनें शुरू होती हैं।
किसी लाश के नीचे दबे हुए धड़ को बाहर खींचना
इस एहतियात के साथ कि कोई हिस्सा तुम्हारा वहीं न रह जाय
फिर सांस भर कर इस नतीजे पर पहुंचना
कि एक अकेली बांह के सहारे यह काम कितना मुश्किल था।
फिर सोचना कि ऐसे हाल में तुम्हारा हाल पूछने वाला कोई नहीं है
फिर थक कर पड़ जाना इस हतक में
कि सारे ओहदों और तमगों के बाद भी तुम एक सिपाही ही रहे
हुक्म पर लड़ने वाले और हुक्म पर हथियार झुका देने वाले।
पौ फट रही है और दूर कहीं नगाड़ों की आवाज आ रही है।
एक झीनी सी उम्मीद तुम्हारे मन में जागती है-
ये नगाड़े अगर तुम्हारी तरफ के हुए
तो मौत के ठंडे दायरों से हुई यह वापसी अकारथ नहीं जाएगी।
लेकिन नगाड़े बहुत दूर हैं
और तुम नहीं जानते कि वहां पहुंचने तक
जान और उम्मीद तुममें बची रही तो भी
वहां कोई उल्टा नतीजा दिख जाने का
सदमा तुम बर्दाश्त कर पाओगे या नहीं।
सुबह...
सिपाही, देखो सुबह हो रही है
जैसे किसी और दुनिया की शाम हो रही हो
इसी और दुनिया में तुम्हें अब जीना और खुश रहना है।
यहां से आगे तुम्हारी कोई फौज नहीं अफसर नहीं देश नहीं
कोई गौरव भी अब नहीं तुम्हारा, जिसका साझा करने आएंगे
हित-मित्र भाई-बंधु प्रेमी-कुटुंबजन।
बेहोशी और हताशा और आत्महीनता के गर्त से ऊपर उठो
कि कल तक जो तुम लड़ते रहे, वह किसी और का युद्ध था
तुम्हारा तो बस अभी शुरू हुआ है।
6 comments:
padhte padhte yesa laha ki main koi film dekh rahi hoon yahi to achche lekhan ki khoobi hoti hai.bahut achcha chitran kiya hai.
अपने और औरों के न जाने कितने युद्धों से सजे हमारा जीवन..
बहुत गहराई होती है आपकी कविताओं में..
बहुत सुन्दर भाव। धन्यवाद।
yudh or hinsatamak karvahi hame jeevan ka arth samjhati hai,or apne piche chod deti hai dukh or vitrashna.
yudh or hinsatamak karvahi hame jeevan ka arth samjhati hai,or apne piche chod deti hai dukh or vitrashna.
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