श्रीमानजी,
आज आपके श्रीमुख से काफी घुमा-फिरा कर यह सुनना अच्छा लगा
कि स्वयं को आप मालिक की नाक का बाल समझते हैं।
मैं आपको बताऊंगा नहीं, लेकिन हकीकत यही है
कि यहां काम करने वाले लोग आपको कहीं और का ही बाल समझते हैं-
इतनी गर्हित जगह का, कि कभी उसे जताना भी ठीक नहीं समझते।
खुद मालिक आपको कहां का बाल समझता है, यह तो रहने ही दें
इस दुनिया में कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें इंसान खुद से भी छुपाता है-
आपकी भंगिमा बताती है कि यह बात आप अच्छी तरह जानते हैं।
बहरहाल,
कहीं के भी हों, कुल मिलाकर हैं तो बाल ही-
ज्यादा तनतनाएंगे तो किसी दिन बिना शेविंग क्रीम लगाए काट दिए जाएंगे
पता भी नहीं चलेगा कि इतने भले बाल को किसने काटा, और आखिर क्यों।
4 comments:
गहरा है..
अरे? कबीता के कंधे पर दफ्तरी बालटिक्स के उस्तरे तेज़ करना, मतलब बन्नूक दागना, सोभा देता है? माने हिन्नी साहित्त का स्तर, जो कहीं नहिंये चहुंप पाया, उसको इस नीम्नस्तर पर उतार लेना, लेकिन, मगर? अरे? ओ कबी?
और हां, कबीमित्र, भूल गये कि आनन्न बच्छी पहले समझाइश दिये गये हैं, कि चूल आहिस्ता फेंको, चूल बड़े नाज़ुक होते हैं, नहीं?
और आप जो हैं एतना जोर-जोर से फेंक रहे हैं कि चूलखार घबराके देवार पर दौड़ने लगे, या भरभराके सीढ़ी पर गिर पड़े, और चट्ट देना कांड हो जाये, अरे?
अहा, आनन्दम...
आनन्दम...
Post a Comment