Friday, January 6, 2012

कबाड़ी और रफूगर

रफूगर घट रहे हैं, कबाड़ी बढ़ रहे हैं
कबाड़ी जितने बढ़ रहे हैं
रफूगर उतने ही घट रहे हैं
गणित का यह व्युत्क्रमानुपाती नियम
अब जिंदगी पर लागू हो रहा है

अलां-फलां चीज की मरम्मत
तसल्लीबख्श की जाती है
किसी ठीहे पर अब दिखते नहीं
जैसे-तैसे उकेरे गए ऐसे अटपटे वाक्य
अलबत्ता सड़क पर तैरते हुए
इससे भी अटपटे कबाड़ी सुर
गली के आखिरी मकान तक
बिल्कुल साफ पकड़ लिए जाते हैं

जिस तरह अच्छे लोग चिंतित हैं कि
उनका इस्तेमाल किया जाने लगा है
उसी तरह चीजें भी चिंतित हैं
कि उनका अच्छी तरह
इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है

चीजों का इस्तेमाल करें, लोगों से प्यार
यह सूत्रवाक्य बड़े जतन से लिखी गई
एक आधुनिक नीतिकथा में पढ़ा
जो असल में चीजों से प्यार
और लोगों का इस्तेमाल करने की
सोच के विरोध में लिखी गई थी

रफूगरों की कब्र पर खिले
कबाड़ियों के फूल बताते हैं कि
लोगों और चीजों का यह द्वैत बेमानी है
अपने भीतर का रफूगर हम जिंदा नहीं रखते
तो बेहतर होगा कि खुद को
कबाड़ी की ही शक्ल में देखने लगें

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वस्तुयें फेंकने को चलन बढ़ गया है।

Ek ziddi dhun said...

अच्छे लोग भी परेशान हैं कि इस्तेमाल के बाद उन्हें फेंक दिया जाता है। कोई खुद को रफू करना चाहे, इसकी भी इजाजत कहां हैं?

अनूप शुक्ल said...

बहुत संवेदनशील मन की बातें हैं ये।
आपको नया साल मुबारक हो! शुभ हो!

दीपिका रानी said...

रफूगरों की कब्र पर खिले कबाड़ियों के फूल.. बढ़िया है चंद्रभूषण जी। आज पहली बार आपके ब्लॉग से सामना हुआ। अच्छा लगा।