सब ठीकठाक है
बस एक तकलीफ
जब-तब जीने नहीं देती
जानता नहीं कि यह क्या है
याद से जा चुकी
या किसी और जन्म में लगी
भीतर की कोई भोथरी गुमचोट
कोई अनुपस्थिति
कोई अभाव
कोई बेचारगी कि
हम अपने खयाल को सनम समझे थे
इस खयाल का कोई क्या करे
भीड़ भरी राहों में खोए
न जाने कितने
खयाली सनम
याद आते हैं
क्यूं न इक और बनाया जाए
भीतर इतनी खटर-पटर
इतनी आमदरफ्त
इतना शोर
ऐसा कोई ठंडा
पोशीदा कोना कहां है
जहां उसे ठहराया जाए
यह एक साफ-सुथरे
पागलपन की तलाश है
मुझे भी ऐसा लगता है
इस दर्द का इलाज मगर कहां से लाया जाए
2 comments:
दर्द को दर्द न समझा जाये, बस सह लिया जाये।
बहुत ही सुंदर टुकडा चंद्र भाई ।
Post a Comment