Tuesday, November 17, 2009

प्रलय का लोकल ब्रोडकास्ट

कोई तीस साल पहले की बात है। जैसे अभी हॉलिवुड की फार्म्युला फिल्म 2012 को लेकर उठे हल्ले ने कई लोगों की हालत खस्ता कर रखी है, कुछ-कुछ वैसा ही हाल हमारे गांव का था। रेडियो में बराबर खबरें आ रही थीं कि स्काईलैब नाम की कोई बड़ी भयानक चीज धरती पर गिरने वाली है। पूरी दुनिया में यह कहीं भी गिर सकती है और जहां भी गिरेगी उसके इर्द-गिर्द सैकड़ों मील का इलाका बंजर-वीरान हो जाएगा। लाखों लोग मारे जाएंगे, कोई पानी देने वाला, दिया जलाने वाला भी नहीं रह जाएगा। पास-पड़ोस के सभी गांवों से रेडियो-ट्रांजिस्टर की संख्या हमारे गांव में ज्यादा थी और खबरें सुनकर गपास्टक करने वाले लोग भी बहुतायत में थे, लिहाजा पूरे इलाके में प्रलय के लोकल ब्रॉडकास्ट का धर्म भी यहीं निभाया जा रहा था।

जैसा गांवों में चलन है, अंग्रेजी नामों का व्यवस्थित ढंग से बंटाधार करने का, वैसा ही कुछ स्काईलैब को लेकर भी हुआ। प्राथमिक श्रोताओं ने ही नाम में यथोचित सुधार करके इसे स्काईलैंप बना दिया। सहारनपुर की एक पेपर मिल से रिटायर होकर आए दिवाकर चाचा चिथरू के कुएं की जगत पर बैठे अपने उत्सुक श्रोतावर्ग को समझा रहे थे- वो क्या है कि आसमान में एक बहुत बड़ा लैंप टांगा गया था, जो टूट गया है और अब गिरने वाला है। ये जो साइंटिस्ट होते हैं, दिमाग तो इनके पास होता नहीं। चीजें बना देते हैं लेकिन जब वे तबाही फैलाने लगती हैं तो कंट्रोल नहीं कर पाते।

श्रोताओं में मौजूद बुद्धिमान लोगों ने, जिनके लिए स्काईलैंप भी काफी अटपटा शब्द था, इसे अपनी सुविधा के मुताबिक तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश की। अगले दिन से गांव में सकलंपू नाम की एक चीज का तहलका मचा हुआ था। पड़ोस के गांव में इस नाम के कई संस्करण चर्चा में थे, जिनमें एक बंपूक भी था। संभवत: इसे तीन खतरनाक चीजों बम, बंदूक और सकलंपू को मिलाकर बनाया गया था।

जाड़े के दिन थे। एक डूबती हुई बदराई शाम में हम लोग कोल्हू के पास बैठे गुड़ पका रहे थे। तभी कबिराज की मां आईं और भट्ठे के पास बैठ गईं। उनका इरादा आग तापने का नहीं, खुद को मथे जा रही एक चिंता में साझेदारी करने का था। कबिराज गांव से बहुत दूर लुधियाना में मजदूरी करने गए थे और पिछले छह महीनों से उनकी कोई चिट्ठी-पत्री नहीं आई थी। उनकी मां यह सोच-सोच कर परेशान थीं कि यह बंपूक या सकलंपू या जो भी चीज ऊपर से गिरने वाली है, वह कहीं लुधियाना में तो नहीं गिर जाएगी? सवाल सुनकर कड़ाह का भट्ठा झोंक रहे कुछ लोगों का धीरज छूट गया। यहां सबको अपनी जान की पड़ी है और इन्हें लुधियाना की सूझ रही है।

बहरहाल, ऐसा भी नहीं था कि सारे लोग स्काईलैब गिरने की खबर से दुखी ही हों। कुछ लोग इससे काफी संतुष्टि भी महसूस कर रहे थे। मसलन, एक थे मिलिटरी चाचा। फौज के रिटायर्ड सूबेदार थे और सरकारी कर्ज लेने में महारत हासिल कर चुके थे। अपनी थोड़ी सी अंग्रेजी के बल पर उन्हें भैंस खरीदने के लिए या मोमबत्ती बनाने के लिए कर्ज मिल जाता था, जिसका इस्तेमाल वे अपनी जीभ के चटखारे के लिए कर डालते थे। महीनों महंगी सब्जियां और पूड़ी-पकवान खा लेने के बाद जब वसूली के लिए अमीन दरवाजे पर दस्तक देता था तो वे कहला देते थे कि कहीं और गए हैं। और जब कुर्की-जब्ती के लिए सिपाही आते थे तो भाग कर ईख या अरहर के खेत में छिप जाते थे।

इन दिनों मिलिटरी चाचा यह सोच कर प्रसन्न चल रहे थे कि एक बार यह चीज गिर जाए, फिर तो वसूली की कोई चिंता ही नहीं रह जाएगी। गांव में जब कुछ बचेगा ही नहीं तो कुर्की वाले आते रहें। जिस रात स्काईलैब गिरने वाला था उस दिन टोले के लोगों ने साथ-साथ जागने का फैसला किया। कुछ लोग ढोलक-हारमोनियम निकाल लाए और गाने- बजाने का कार्यक्रम शुरू हो गया। इस हल्ले में देर रात तक लोगों की चिंता हवा हो गई और तीन बजते-बजते लोग ओसारे में ही लुढ़क गए। जब सुबह हुई तो रेडियो में खबर आई कि स्काईलैब बिना किसी को नुकसान पहुंचाए ऑस्ट्रेलिया के पास समुद्र में गिर गया।

6 comments:

आशुतोष उपाध्याय said...

प्रलय की कल्पना एक तरह से मनुष्य के अपराध बोध से जन्मती है। मनुष्य जब धरती पर कुदरत का खेल पूरी तरह बिगाड़ देता है तो वह बच्चे की तरह उसके रेत महल को जमींदोज कर देती है और एक बार फिर से निष्कलंक रचनाएं गढ़ती है। आज धरती के मालिकों का पाप का घड़ा भरता नजर आ रहा है। घरती के संसाधनों को बुरी तरह लूट लिया है। नाना प्रकार के आतंकवाद को पनपाया है। अन्याय का वीभत्स रेतमहल खड़ा किया है। साधन संपन्नों ने एक ऐसी आत्मकेन्द्रित और खाऊ जीवनशैली पैदा की है, जो अंतत: समष्टि विरोधी और कुंठा को जन्म देने वाली है। दूसरी तरफ बहुसंख्य लोगों के लिए देखने को भरपूर चमक-दमक है और जीने को नर्क। कुल मिलाकर आज प्रलय के लोकप्रिय मिथक के चल निकलने का बेहतरीन मनोवैज्ञानिक वातावरण बन रहा है। ऐसे में हॉलीवुड से बॉलीवुड तक प्रलय ही प्रलय होना है।

स्वप्नदर्शी said...

I do not remember details, but there is a vague memory in my brain, that people thought, 1980 is going to bring this pralay. I was in 2-3rd grade at that time. May be it got spiked due to political situation at that time.

मनोरमा said...

Aur in dino pralay ka national broadcast ho raha hain, Aajtak aur India TV uske sabse bade pairokaar bane huye hain, Mujhe to lagta hain koi depression ka mareej agar in channels ko dekhe to kal ke bajai aaj hi khudkushi ka man bana le.

अजित वडनेरकर said...

बढ़िया संस्मरण। आशुतोष भाई की बातों से पूरा इत्तेफाक रखता हूं।

L.Goswami said...

अच्छा लिखा आपने ..आशुतोष जी से सहमत हूँ.

अनिल कान्त said...

aise kai kisse aur baatein hoti hain
humne bhi is tarah ke kuchh wakye sune aur unka maza liya hai :)