Saturday, April 12, 2008

अब यह गॉड पार्टिकल क्या बला है

बड़ा हल्ला है कि यूरोप में कई अरब डॉलर खर्च करके तैयार की गई कई मील लंबी पार्टिकल कोलाइडर मशीन सीईआरएन अगले कुछ महीनों में ब्रह्मांड के कुछ बुनियादी रहस्य खोलने वाली है। काम बस इतना है कि बहुत लंबी सुरंग के दोनों तरफ से सोने के आयनों को लाकर बीच में इन्हें टकरा देना है। असली चमत्कार इनकी रफ्तार का होना है। इन्हें विद्युत चुंबकीय शक्ति से घुमाते हुए लगभग प्रकाश की गति तक पहुंचाया जाएगा और फिर आमने-सामने इनकी भिड़ंत करा दी जाएगी।

टक्कर एक बहुत ही नफीस (सॉफिस्टिकेटेड) किस्म के क्लाउड चैंबर में होगी, जहां टक्कर से पैदा हुए मलबे का बारीकी से अध्ययन किया जाएगा। फिर अगले कुछ महीनों में बहुत सारी ऐसी ही टक्करें और बहुत सारे उनके अध्ययन। पता करना है कि जब पदार्थ बहुत ही ऊंची ऊर्जा अवस्था में होता है तो उसका हाल ठीक-ठीक कैसा होता है, उसकी जब खील-खील बिखर गई होती है, तब दरअसल उसकी बिल्कुल बुनियादी खीलें क्या होती हैं।

इससे मिलती-जुलती लेकिन इससे कम ताकतवर एक मशीन अमेरिका में भी है, जिसने अबतक कई कमाल दिखाए हैं, लेकिन द्रव्य की बुनियाद तक पहुंचने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता महसूस की जा रही है, उसे दे पाने की औकात उसकी नहीं है। हल्ला तो यहां तक है कि कुछ वैज्ञानिकों ने अदालत में याचिका डाल रखी है कि इस प्रयोग पर रोक लगाई जाए क्योंकि इसके साथ संसार के नष्ट हो जाने की एक आशंका भी जुड़ी हुई है। वैसे यह याचिका एक तरह का वितंडावाद ही लगती है क्योंकि अमेरिकी मशीन इसके आस-पास के ऊर्जा स्तर पर ही काम करती है लेकिन वहां टकराहटों के बाद किसी तरह का चेन रिएक्शन देखने को नहीं मिला।

एक बवाल तथाकथित 'गॉड पार्टिकल' को लेकर भी है, जिसकी शिनाख्त सीईआरएन के प्रयोगों में हो पाने की उम्मीद की जा रही है। भौतिकी के हलकों में गॉड पार्टिकल को हिग्स पार्टिकल के रूप में भी जाना जाता है, जो इसकी प्रस्थापना देने वाले वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है।

यह प्रस्थापना पदार्थ के द्रव्यमान (मास) को लेकर है। मूलभूत स्तर पर पदार्थ की संरचना बताने के लिए अभी तक जिस स्टैंडर्ड मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें चीजों के वजन के लिए कुछ गहरी उलटबांसियों में जाने की जरूरत पड़ती है। मूल कणों (फंडामेंटल पार्टिकल्स) में कुछ ही ऐसे हैं, जो अपने भीतर द्रव्यमान का गुण प्रदर्शित करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि द्रव्यमान पदार्थ का मूल गुण नहीं है। हिग्स ने इसके लिए एक ऐसे फील्ड (चुंबकीय क्षेत्र जैसी तर्ज पर एक खास तरह का क्षेत्र) की परिकल्पना दी, जिससे अंतर्घात के क्रम में कोई मूल कण द्रव्यमान अर्जित करता है। प्रकाश कण फोटान जैसे कुछ मूलभूत कण इस फील्ड के साथ अंतर्घात नहीं करते, लिहाजा वे द्रव्यमान का गुण भी प्रदर्शित नहीं करते।

हिग्स फील्ड जैसी कोई चीज सचमुच होती है या नहीं, कोई नहीं जानता, लेकिन इससे उच्च ऊर्जा भौतिकी के कई सारे प्रेक्षणों की व्याख्या जरूर हो जाती है। इसके होने की पुष्टि हिग्स पार्टिकल की शिनाख्त हो जाने पर हो जाएगी- जो हिग्स की प्रस्थापना के मुताबिक हिग्स फील्ड का लाक्षणिक कण है। इसे गॉड पार्टिकल इसलिए कहते हैं कि प्रस्थापना के मुताबिक सारे मूल कणों को द्रव्यमान हिग्स फील्ड के जरिए ही हासिल होता है, यानी भगवान की तरह यह कण समूचे द्रव्य को द्रव्यमान प्रदान करता है।

यूरोप में अगले महीने अपने काम का श्रीगणेश करने वाला सीईआरएन सोने के कणों के टकराव से इतनी उच्च ऊर्जा पैदा करेगा कि सामान्य ऊर्जा स्तरों पर बेशिनाख्त रह जाने वाला हिग्स कण विखंडित हो जाएगा और शायद क्लाउड चैंबरों द्वारा उसकी शिनाख्त भी कर ली जाएगी।

सीमावर्ती उच्च ऊर्जा भौतिकी की हालत पिछले कई दशकों से अंधेरे में काली बिल्ली पकड़ने जैसी ही बनी हुई है, लिहाजा जानी-मानी विज्ञान शोध पत्रिकाओं के चीखते हुए शीर्षकों के बावजूद मैं उनमें ज्यादा रुचि नहीं ले पाता। लेकिन विज्ञान की कई शाखाओं में ब्रेकथ्रू कई बार कई सदियों का समय ले लेते हैं, लिहाजा छोटी-छोटी उपलब्धियों पर भी लगातार नजर रखनी होती है।

मेरा मानना है कि लोकप्रियतावाद की बीमारी अन्य पेशेवरों की तरह वैज्ञानिकों को भी जबर्दस्त तरीके से लग चुकी है। बिना अपने काम के सैद्धांतिक पक्ष को लेकर आश्वस्त हुए सिर्फ सरकारों से अपना बजट बढ़वा लेने या मीडिया के लाइमलाइट में आ जाने के लिए भी वे सनसनीखेज घोषणाएं करते रहते हैं। लिहाजा इनकी घोषणाओं को फेस वैल्यू पर तो कभी नहीं लेना चाहिए। बहरहाल, सैद्धांतिक भौतिकी फिलहाल जिस बुनियादी कन्फ्यूजन और उलझाव में फंसी हुई है, उससे सीईआरएन के प्रयोग उसे अगर थोड़ा-बहुत भी बाहर निकाल सके तो यह ज्ञान-विज्ञान की दुनिया पर बहुत बड़ा उपकार होगा।

8 comments:

PD said...

विज्ञान लेख अच्छा लगा..

अनामदास said...

मैं साइंस और नेचर जैसी पत्रिकाएँ बहुत शौक़ से पढ़ता हूं लेकिन उनमें भी सनसनीखेज़ किस्म के छिछोरे शोध छपने लगे हैं. वे या बेहूदा किस्म के सांख्यिक सर्वेक्षण होते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता जैसे कभी टमाटर खाने से कैंसर होता है और गाजर खाने से कैंसर नहीं होता है टाइप...या फिर कि पैसे से खुशी मिलती है और कभी कि नहीं मिलती है...विज्ञान को पठनीय बनाना ज़रूरी काम है लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप विज्ञान की परिभाषा ही बदल दें...हमेशा की तरह ज़ोरदार लिखा है आपने...

रवि रतलामी said...

विज्ञान संबंधी वैज्ञानिक लेख और वो भी रोचक और घोर पठनीय!
क्या बात है!

बलबिन्दर said...

विज्ञान तो अपनी गति से चलेगा ही, सर्वेक्षण अलग चीज है।
वैसे वैज्ञानिक जानकारियाँ रोचक और पठनीय तो होनी ही चाहिये
देखियेगा
यह लिंक

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छे आलेख के लिए बधाई। यह प्रयोग भौतिकी ही नहीं दर्शन पर भी गहरा प्रभाव उत्पन्न करेगा।

उन्मुक्त said...

विज्ञान पत्रिकारिता भी जरूरी है पढ़ कर अच्छा लगा

स्वप्नदर्शी said...

kya baat hai!!! chhaa gaye aap
bahut sateek jaankaaree.

azdak said...

कुछ भी नहीं समझा.. ओर बड़ा लल्‍लू-लल्‍लू सा फ़ील हो रहा है..