Tuesday, February 12, 2008

यही सही

गाने के नाम पर मौके-बेमौके
गला फाड़ चिल्लाने का समय है
चमचों के एसएमएस गिनकर
महानायक चुनवाने का समय है

देखो हम कितने दुखी-दुखी-दुखी
और हम ही कितने सुखी-सुखी-सुखी
जूते पड़ने का खौफ खाए बगैर
घूम-घूम सबको बताने का समय है

ऐसे समय में नहीं जा पाए आगे
चुप रहे, पिछड़ गए, हो लिए किनारे
कबतक इसपर अफसोस करें
यही होना था अपने साथ, यही सही

कलम पकड़ाई गई जीने के लिए
कि बचा था बस यही एक जरिया
नहीं छाप पाया इससे नोट तो क्या-
शर्त भी ऐसी कोई तय नहीं थी

इन टुच्ची बातों में कहने को क्या है
पर फुरसत हो, कुछ कहने को न हो
और कविता की उठ जाए हौंस
तो बोलो झार के- यही, हां यही सही

3 comments:

azdak said...

वाह रजा, यही सही!

नीमनेश्‍वर न सही, नीमने सही..

इन्दु said...

यही सही, लगे रहो मुन्नाभाई

हरिमोहन सिंह said...

पता नहीं क्‍यो पर अच्‍छा लगा